HI/Prabhupada 0776 - अगर मैं एक कुत्ता बना तो गलत क्या है', यह शिक्षा का परिणाम है: Difference between revisions

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तो यह सलाह दी गई है अधयो व्याधय: । तीन प्रकार की दयनीय हालत होती है - सब के लिए, एक विशेष व्यक्ति के लिए ही नहीं । अध्यात्मिक, अधिभौतिक, अधिदैविक । और जैसे ही तुम्हे यह भौतिक शरीर मिलता है, तुम्हे भुगतना पड़ेगा । तो अगर तुम इस पीड़ा को बंद करना चाहते हो, तो तुम्हे नियामक जीवन जीना होगा । नियामक जीवन की अगली श्लोक में सिफारिश की गई है:  
तो यह सलाह दी गई है अधयो व्याधय: । तीन प्रकार की दयनीय हालत होती है - सब के लिए, एक विशेष व्यक्ति के लिए नहीं । अध्यात्मिक, अधिभौतिक, अधिदैविक । और जैसे ही तुम्हे यह भौतिक शरीर मिलता है, तुम्हे भुगतना पड़ेगा । तो अगर तुम इस पीड़ा को बंद करना चाहते हो, तो तुम्हे नियामक जीवन जीना होगा । नियामक जीवन की अगली श्लोक में सिफारिश की गई है:  


तपसा ब्रह्मचर्येण  
:तपसा ब्रह्मचर्येण  
शमेन च दमेन च  
:शमेन च दमेन च  
त्यागेन स्तय शौचाभ्यम  
:त्यागेन स्तय शौचाभ्यम  
यमेन नियमेन चा
:यमेन नियमेन वा
:([[Vanisource:SB 6.1.13|श्री ६।१।१३]])
:([[Vanisource:SB 6.1.13-14|श्रीमद भागवतम ६.१.१३]])  


मनुष्य के कर्तव्य निर्धारित हैं। निर्धारित कर्तव्य क्या हैं ? पहला निर्धारित कर्तव्य है तपसा : उन्हे तपस्या करनी चाहिए। यह मानव जीवन है । यही हर जगह सिफारिश किया गया है। ऋषभदेव नें भी सिफारिश की, तपो दिव्यम् पुत्रका येन शुद्धयेद सत्तवा : "मेरे प्यारे लड़कों, बिल्लियों और कुत्तों और सुअरों की तरह मत रहो," उन्होंने सलाह दी । नायम देहो देह भाजाम नृलोके कष्टान मामान अर्हते विड भूजाम ये ([[Vanisource:SB 5.5.1|श्री भ ५।५।१]]) " अगर मैं कड़ी मेहनत से काम नहीं करता हूँ, "कैसे मैं अपने इन्द्रियों खो संतुष्ट करूँगा ? रात में मुझे नशा करना है, यह औरत, यह क्लब, यह ... अगर मैं कड़ी मेहनत से काम नहीं करता हूँ, तो कैसे मुझे आनंद प्राप्त होगा ? " तो ऋषभदेव कहते हैं, " इस तरह का आनंद सुअर को भी उपलब्ध है, यह आनंद का बहुत अच्छी तरीका नहीं है, इन्द्रिय संतुष्टि । " नायम देहो देह भाजाम नृलोके कष्टान मामान अर्हते विड भूजाम ये विड भुजाम का मतलब है मल-भक्षक । तो वे भी आनंद ले रहे हैं, मल खाकर और बिना किसी भेदभाव के यौन संबंध रख कर, माँ की, बहन की परवाह नहीं करते हैं । तो इस तरह का इन्द्रिय संतुष्टि की सभ्यता कुत्तों और सुअरों में भी होती है, लेकिन मानव जीवन इसके लिए नहीं है । मानव जीवन तपस्या के लिए है, तपस्या, ताकि मानव जीवन में तुम जन्म और मृत्यु के अपने पुनरावृत्ति को रोक सको और अपने अनन्त जीवन में अाअो और ज्ञान के आनंदित अनन्त जीवन का आनंद लो । यही जीवन का उद्देश्य है। ऐसा नहीं कि "कोई बात नहीं।" शिक्षा यह है कि एक विश्वविद्यालय का छात्र, अगर उससे कहा जाए, उसे बताया जाता है, कि "अगर तुम गैर जिम्मेदाराना रहते हो, तो तुम अगले जन्म में कुत्ता बन सकते हो," तो वह कहते हैं, "अगर मैं एक कुत्ता बना तो गलत क्या है ?" (हंसी) यह शिक्षा का परिणाम है । वह परवाह नहीं करता है । वह सोच रहा है, , "अगर मुझे एक कुत्ते का जीवन मिलता है, तो मुझ पर सड़क पर सेक्स जीवन का कोई प्रतिबंध नहीं होगा ।" बस । वह सोच रहा है कि यह प्रगति है। "अगर अब प्रतिबंध है, अब बिना प्रतिबंध के अगर मुझै सड़क पर सेक्स जीवन मिलता है ..." और वे धीरे-धीरे वहॉ पहुँच रहे हैं, यह उन्नति । तो यह स्थिति है । तो वे अगले जीवन में विश्वास नहीं करते हैं , और बिल्लियों और कुत्तों 'जीवन की बात क्या करें । "कोई बात नहीं।" सब कुछ बहुत अंधेरा है । इसलिए जब तक हम कृष्ण भावनामृत आंदोलन को अपनाते नहीं, मानव सभ्यता बर्बाद है। यह मानव सभ्यता नहीं है । मानव सभ्यता जिम्मेदारी का जीवन है । असल में, हमें शिक्षित किया जा रहा है, हम जिम्मेदार आदमी बनने के लिए, कॉलेज, स्कूल जाते हैं । तो यह जिम्मेदारी होनी चाहिए, "कैसे जन्म के इस पुनरावृत्ति को रोकूँ ।" कई स्थानों में यह सलाह दी गई है। और यही मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य है । पुनर जन्म जयाय ।
मनुष्य के कर्तव्य निर्धारित हैं । निर्धारित कर्तव्य क्या हैं ? पहला निर्धारित कर्तव्य है तपसा: उन्हे तपस्या करनी चाहिए । यह मानव जीवन है । यही हर जगह सिफारिश की गई है । ऋषभदेव नें भी सिफारिश की, तपो दिव्यम पुत्रका येन शुद्धयेद सत्त्व: "मेरे प्यारे लड़कों, बिल्लियों और कुत्तों और सुअरों की तरह मत रहो," उन्होंने सलाह दी । नायम देहो देह भाजाम नृलोके कष्टान मामान अर्हते विड भूजाम ये ([[Vanisource:SB 5.5.1|श्रीमद भागवतम ५.५.१]]) | "अगर मैं कड़ी मेहनत से काम नहीं करता हूँ, कैसे मैं अपने इन्द्रियों को संतुष्ट करूँगा ? रात में मुझे नशा करना है, यह औरत, यह क्लब, यह... अगर मैं कड़ी मेहनत से काम नहीं करता हूँ, तो कैसे मुझे आनंद प्राप्त होगा ?" तो ऋषभदेव कहते हैं, "इस तरह का आनंद सुअर को भी उपलब्ध है | यह आनंद का बहुत अच्छी तरीका नहीं है, इन्द्रिय संतुष्टि ।" नायम देहो देह भाजाम नृलोके कष्टान मामान अर्हते विड भूजाम ये | विड भुजाम का मतलब है मल-भक्षक । तो वे भी आनंद ले रहे हैं, मल खाकर, और बिना किसी भेदभाव के यौन संबंध रख कर, माँ की, बहन की परवाह नहीं करते हैं ।  
 
तो इस तरह की इन्द्रिय संतुष्टि की सभ्यता कुत्तों और सुअरों में भी होती है, लेकिन मानव जीवन इसके लिए नहीं है । मानव जीवन तपस्या के लिए है, ताकि मानव जीवन में तुम जन्म और मृत्यु के अपने पुनरावृत्ति की रोक सको और अपने शाश्वत जीवन में अाअो और ज्ञान के आनंदित अनन्त जीवन का आनंद लो । यही जीवन का उद्देश्य है । ऐसा नहीं की "कोई बात नहीं ।" शिक्षा यह है कि एक विश्वविद्यालय का छात्र, अगर उससे कहा जाए, उसे बताया जाता है, की "अगर तुम गैर जिम्मेदाराना रहते हो, तो तुम अगले जन्म में कुत्ता बन सकते हो," तो वह कहते हैं, "अगर मैं एक कुत्ता बना तो गलत क्या है ?" (हंसी) यह शिक्षा का परिणाम है । वह परवाह नहीं करता है ।  
 
वह सोच रहा है, "अगर मुझे एक कुत्ते का जीवन मिलता है, तो मुझे पर सड़क पर यौन जीवन का कोई प्रतिबंध नहीं होगा ।" बस । वह सोच रहा है कि यह प्रगति है । "अगर अभी प्रतिबंध है, अभी बिना प्रतिबंध के अगर मुझै सड़क पर यौन जीवन मिलता है..." और वे धीरे-धीरे वहॉ पहुँच रहे हैं, यह उन्नति । तो यह स्थिति है । तो वे अगले जीवन में विश्वास नहीं करते हैं, और बिल्लियों और कुत्तों के जीवन की बात क्या करें । "कोई बात नहीं ।" सब कुछ बहुत अँधेरे में है । इसलिए जब तक हम कृष्ण भावनामृत आंदोलन को अपनाते नहीं, मानव सभ्यता बर्बाद है । यह मानव सभ्यता नहीं है । मानव सभ्यता जिम्मेदारी का जीवन है । असल में, हमें शिक्षित किया जा रहा है, हम जिम्मेदार आदमी बनने के लिए, कॉलेज, स्कूल जाते हैं । तो यह जिम्मेदारी होनी चाहिए, "कैसे जन्म की इस पुनरावृत्ति को रोकूँ ।" कई स्थानों में यह सलाह दी गई है । और यही मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य है । पुनर जन्म जयाय ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on SB 6.1.12 -- Los Angeles, June 25, 1975

तो यह सलाह दी गई है अधयो व्याधय: । तीन प्रकार की दयनीय हालत होती है - सब के लिए, एक विशेष व्यक्ति के लिए नहीं । अध्यात्मिक, अधिभौतिक, अधिदैविक । और जैसे ही तुम्हे यह भौतिक शरीर मिलता है, तुम्हे भुगतना पड़ेगा । तो अगर तुम इस पीड़ा को बंद करना चाहते हो, तो तुम्हे नियामक जीवन जीना होगा । नियामक जीवन की अगली श्लोक में सिफारिश की गई है:

तपसा ब्रह्मचर्येण
शमेन च दमेन च
त्यागेन स्तय शौचाभ्यम
यमेन नियमेन वा
(श्रीमद भागवतम ६.१.१३)

मनुष्य के कर्तव्य निर्धारित हैं । निर्धारित कर्तव्य क्या हैं ? पहला निर्धारित कर्तव्य है तपसा: उन्हे तपस्या करनी चाहिए । यह मानव जीवन है । यही हर जगह सिफारिश की गई है । ऋषभदेव नें भी सिफारिश की, तपो दिव्यम पुत्रका येन शुद्धयेद सत्त्व: "मेरे प्यारे लड़कों, बिल्लियों और कुत्तों और सुअरों की तरह मत रहो," उन्होंने सलाह दी । नायम देहो देह भाजाम नृलोके कष्टान मामान अर्हते विड भूजाम ये (श्रीमद भागवतम ५.५.१) | "अगर मैं कड़ी मेहनत से काम नहीं करता हूँ, कैसे मैं अपने इन्द्रियों को संतुष्ट करूँगा ? रात में मुझे नशा करना है, यह औरत, यह क्लब, यह... अगर मैं कड़ी मेहनत से काम नहीं करता हूँ, तो कैसे मुझे आनंद प्राप्त होगा ?" तो ऋषभदेव कहते हैं, "इस तरह का आनंद सुअर को भी उपलब्ध है | यह आनंद का बहुत अच्छी तरीका नहीं है, इन्द्रिय संतुष्टि ।" नायम देहो देह भाजाम नृलोके कष्टान मामान अर्हते विड भूजाम ये | विड भुजाम का मतलब है मल-भक्षक । तो वे भी आनंद ले रहे हैं, मल खाकर, और बिना किसी भेदभाव के यौन संबंध रख कर, माँ की, बहन की परवाह नहीं करते हैं ।

तो इस तरह की इन्द्रिय संतुष्टि की सभ्यता कुत्तों और सुअरों में भी होती है, लेकिन मानव जीवन इसके लिए नहीं है । मानव जीवन तपस्या के लिए है, ताकि मानव जीवन में तुम जन्म और मृत्यु के अपने पुनरावृत्ति की रोक सको और अपने शाश्वत जीवन में अाअो और ज्ञान के आनंदित अनन्त जीवन का आनंद लो । यही जीवन का उद्देश्य है । ऐसा नहीं की "कोई बात नहीं ।" शिक्षा यह है कि एक विश्वविद्यालय का छात्र, अगर उससे कहा जाए, उसे बताया जाता है, की "अगर तुम गैर जिम्मेदाराना रहते हो, तो तुम अगले जन्म में कुत्ता बन सकते हो," तो वह कहते हैं, "अगर मैं एक कुत्ता बना तो गलत क्या है ?" (हंसी) यह शिक्षा का परिणाम है । वह परवाह नहीं करता है ।

वह सोच रहा है, "अगर मुझे एक कुत्ते का जीवन मिलता है, तो मुझे पर सड़क पर यौन जीवन का कोई प्रतिबंध नहीं होगा ।" बस । वह सोच रहा है कि यह प्रगति है । "अगर अभी प्रतिबंध है, अभी बिना प्रतिबंध के अगर मुझै सड़क पर यौन जीवन मिलता है..." और वे धीरे-धीरे वहॉ पहुँच रहे हैं, यह उन्नति । तो यह स्थिति है । तो वे अगले जीवन में विश्वास नहीं करते हैं, और बिल्लियों और कुत्तों के जीवन की बात क्या करें । "कोई बात नहीं ।" सब कुछ बहुत अँधेरे में है । इसलिए जब तक हम कृष्ण भावनामृत आंदोलन को अपनाते नहीं, मानव सभ्यता बर्बाद है । यह मानव सभ्यता नहीं है । मानव सभ्यता जिम्मेदारी का जीवन है । असल में, हमें शिक्षित किया जा रहा है, हम जिम्मेदार आदमी बनने के लिए, कॉलेज, स्कूल जाते हैं । तो यह जिम्मेदारी होनी चाहिए, "कैसे जन्म की इस पुनरावृत्ति को रोकूँ ।" कई स्थानों में यह सलाह दी गई है । और यही मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य है । पुनर जन्म जयाय ।