HI/Prabhupada 0784 - अगर हम भगवान के लिए काम नहीं करते हैं तो हम माया के चंगुल में रहेंगे
Lecture on SB 6.1.44 -- Los Angeles, July 25, 1975
तो जिसे भोतिक सामग्री शरीर मिला है, वह एक पल के लिए भी नहीं रोक सकता है कुछ काम करना । न हि अकर्म कृत । यह प्रकृति है। उसे करना... बच्चे की तरह । बच्चे हमेशा बेचैन रहते हैं । इसी प्रकार ... "बालक आदमी का पिता है।" कोई पिता बनता है, वही बेचैनी, क्योंकि यह प्रकृति है। न जि देहवान अकर्म-कृत । तो अगर तुम अच्छे काम में नहीं लगे हो, तो तुम्हे बुरे कार्य करने पड़ेंगे । यह स्वाभाविक है । तुम्हे काम करना होगा । इसलिए निष्क्रिय मस्तिष्क शैतान की कार्यशाला है। अगर तुम आलस्य से बैठे हो, तो मस्तिष्क काम करेगा , मन भी काम करेगा । शारीरिक कार्य नहीं होंगे । तो अगर तुम अच्छे काम में नहीं संलग्न हो, तो तुम बुरे काम में रहोगे । और अगर तुम अच्छे काम में लगे नहीं हो और अगर तुम लगे हुए हो ... दो बातें हैं अच्छा या बुरा । तो उनमें से एक में हमें लगना पड़ता है । तो अगर हमें बताया नहीं जाता है या प्रशिक्षित नहीं किया जाता है अच्छे काम में, तो हमें बुरे काम करने होंगे । बुरा काम का मतलब है माया और अच्छा काम का मतलब है भगवान । भगवान और माया: दो बातें हैं। अगर हम भगवान के लिए काम नहीं करते हैं तो हम माया के चंगुल में रहेंगे । यह चैतन्य-चरितामृत में विस्तार से बताया गया है, एक बहुत ही सरल श्लोक में हैया मायार दास करि नान अभिलाष, "जैसे ही मैं माया का दास बन जाता हूँ तो मैं कितने ही धूर्त चीज़ें पैदा करता हूँ दर्शन और विज्ञान के नाम पर ।" यह चल रहा है। तथाकथित दर्शन और विज्ञान का मतलब है धूर्तता, बुरा काम । यह बहुत चुनौतीपूर्ण शब्द है, लेकिन यह तथ्य है। अगर हम ... उदाहरण के लिए, इतने सारे वैज्ञानिक, कई दार्शनिक और कई हिप्पी, एलएसडी आदमी भी हैं। ऐसा क्यों हुआ है? कोई अच्छे काम में कोई लगा नहीं है । कुछ तथाकथित वैज्ञानिक और तथाकथित दार्शनिक के नाम से जाने जाते हैं और उनमें से कुछ हिप्पी हैं, लेकिन उनमें से सभी बुरे कामों में लगे हुए हैं, असत । असत अौर सत । सत का मतलब है स्थायी, और असत का मतलब है अस्थायी । तो हम अपनी संवैधानिक स्थिति क्या है यह पता होना चाहिए। हम नहीं जानते हैं । हम सत हैं, अनन्त ; इसलिए हमें इस तरह से कार्य करना चाहिए जिससे मेरे अनन्त जीवन को फायदा होगा । यही सत है । इसलिए वेद कहते हैं असतो मा सद गम: "किसी अस्थायी गतिविधियों में लिप्त मत रहना, शारीरिक ..." शारीरिक आवश्यकताओं का मतलब है अस्थायी। अगर मैं बच्चा हूँ, तो मेरा शरीर एक बच्चे के शरीर है, फिर मेरे आवश्यकताएं मेरे पिता की आवश्यकताओं से अलग हैं। तो हर कोई शारीरिक आवश्यकताओं में लगा हुअा है। इसलिए यह कहा जाता है, देहवान न हि अकर्म कृत । अौर कारनिणाम गुण संगो अस्ति । संक्रमण । हमें यह व्यावहारिक समझ है। अगर तुम्हारा शरीर रोग संक्रमित करता है, तो तुम्हे भुगतना होगा । अौर अगर तुम्हारा शरीर अप्रभावित, असंक्रमित रहता है किसी भी जहरीला पदार्थ से , तो तुम स्वस्थ रहोगे । इसलिए यह कहा गया है, सम्भवन्ति हि भद्राणि विपरीतानि च अनघ: विपरीतानि । विपरी मतलब विपरीत । सम्भवन्ति भद्राणि । एक शुभता में काम करना है, और एक विपरीतानि में, केवल विपरीत, अशुभ । इस तरह से हम जीवन में उलझते जा रहे हैं, हर जन्म में ।