HI/Prabhupada 0785 - तो तानाशाही अच्छा है, अगर तानाशाह अत्यधिक योग्य है आध्यात्म में ।

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Press Conference at Airport -- July 28, 1975, Dallas

प्रभुपाद: तुम भौतिक रूप से अग्रिम हो सकते हो लेकिन अगर तुम भगवान भावनामृत, या कृष्ण भावनामृत को नहीं अपनाते हो, तो इस भौतिक उन्नति का मूल्य शून्य के बराबर है । कोई भी संतुष्ट नहीं होगा । तो इसलिए यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए । यह अाखरी कड़ी है अमेरिकी उन्नति में भौतिक आराम के लिए । फिर लोग बहुत खुश हो जाएँगे । और अमेरिका पहले से ही दुनिया का नेता है। वे प्रथम श्रेणी के नेता होंगे । दुनिया लाभान्वित होगी, और तुमको लाभ होगा, और मेरे प्रयास भी सफल हो जाएगा । शून्य में खुद को न रखें । एक को लो । तो यह बहुत अच्छा होगा । जैसे ... तुम बहुत आसानी से समझ सकते हो । यह जीवन, बहुत महत्वपूर्ण आदमी, लेकिन अगर कोई आत्मा नहीं है, यह शून्य है। इसका कोई मूल्य नहीं है । कितना भी महत्वपूर्ण आदमी क्यों न हो, जब आत्मा शरीर से निकल जाती है, यह पदार्थ हो जाता है ; इसका कोई मूल्य नहीं है । कुछ भी तुम ले लो - यह मशीन, वह मशीन, कोई भी मशीन- अगर कोई, कोई आध्यात्मिक जीव, कोई जीव उसको चला नहीं रहा, तो मूल्य क्या है उसका ? कोई मूल्य नहीं। इसलिए, हर जगह यह आध्यात्मिक चेतना होनी चाहिए । अन्यथा यह शून्य है ।

महिला रिपोर्टर: मेरा एक सवाल है। क्या अाप भारत में अभी की राजनीतिक स्थिति पर टिप्पणी करेंगे? आप श्रीमती गांधी के बारे में क्या सोचते हैं ?

प्रभुपाद: जी, हमारा सरोकार नहीं है बहुत ज्यादा राजनीतिक स्थिति के साथ । लेकिन हमारा प्रस्ताव - या राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक या दार्शनिक, कुछ भी - श्री कृष्ण के बिना, यह सब शून्य है । जहॉ तक श्रीमती गांधी का सवाल है, वे कुछ इच्छुक है आध्यात्मिक समझ के लिए । तो वास्तव में अगर वह आध्यात्म में उन्नत बन जाती है, तो इस आपात स्थिति में सुधार होगा । अन्यथा ... और यह लोकतंत्र के खिलाफ जनता की राय है। तो लोकतंत्र बहुत ज्यादा फायदेमंद नहीं है । कहीं भी और हर जगह ... अापके देश में भी, आपने मतदान किया श्री निक्सन, लोकतंत्र, लेकिन अाप उसके साथ संतुष्ट नहीं थे । इसका मतलब है, लोकतंत्र, आम आदमी वे किसी का भी चयन करेगा और फिर वे उसे नीचे लाने का प्रयास करेंगे । क्यूँ ? जब वह चुना गया था, इसका मतलबा है यह एक गलती थी । तो वैदिक सभ्यता के अनुसार, लोकतंत्र ऐसी कोई बात नहीं थी। यह राजतंत्र था, लेकिन राजशाही का मतलब है कि राजा बहुत अत्यधिक आध्यात्मिक उन्नत था । राजा को राजर्षि कहा जाता है, मतलब की राजा अौर साधु एक ही समय । हमारे देश में एक और उदाहरण है -गांधी । जब वे राजनीतिक नेता थे, वे व्यावहारिक रूप से तानाशाह थे, लेकिन क्योंकि वे बहुत ही उच्च नैतिक चरित्र के आदमी थे, लोगों नें अपनाया, उन्हें स्वीकार किया तानाशाह के रूप में । तो तानाशाही अच्छा है, अगर तानाशाह अत्यधिक योग्य है आध्यात्म में । यही वैदिक फैसला है। कुरुक्षेत्र की लड़ाई की वजह थी भगवान कृष्ण चाहते थे कि राजर्षि, युधिष्ठिर, राज करें । तो राजा भगवान का प्रतिनिधि माना जाता है। इसलिए उसे को धर्मपरायण व्यक्ति होना चाहिए । तो यह सफल होगा ।