HI/Prabhupada 0786 - यमराज द्वारा सजा का इंतजार कर रहा है: Difference between revisions

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प्रभुपाद: ब्रह्मचारी को गुरुकुल में रहना चाहिए, पच्चीसवें साल तक । वे प्रशिक्षित हैं । फीर अगर गुरु को लगता है कि उसका शादी करना आवश्यकता है, फिर वह घर जाता है और वह शादी करता है । अन्यथा, शिक्षण यह है कि पूरा जीवन ब्रह्मचारी रहे । प्रवेश करने की कोई जरूरत नहीं है ... क्योंकि यह मानव जीवन भगवान प्राप्ति के लिए है । यह सेक्स भोग या इन्द्रिय संतुष्टि के लिए नहीं है। यह बस है ... यहाँ एक अवसर है अपनी संवैधानिक स्थिति को समझना, कि वह आत्मा है । और श्री कृष्ण, या भगवान, भी आत्मा हैं । तो आत्मा, व्यक्तिगत आत्मा, कृष्ण का अंशस्वरूप है। इसलिए उसका कर्तव्य है कि पूर्ण के साथ रहे । जैसे एक यांत्रिक हिस्सा, एक टाइपराइटर मशीन में एक पेंच : अगर पेंच मशीन के साथ रहता है, तो मूल्य है उसका । और पेंच मशीन के बिना रहता है, उसका कोई मूल्य नहीं है । कौन एक छोटे से पेंच की परवाह करता है? लेकिन जब उस पेंच की एक मशीन में अावश्यक्त होती है, तुम खरीदने जाते हो.... वे पाँच डॉलर लेते हैं । क्यूँ? जब यह मशीन के साथ जुड़ेगा तो उसका मूल्य है। इतने सारे उदाहरण हैं । जैसे आग की चिंगारी । जब आग जलती है, तुम छोटे चिंगारी पाअोगे "फट! फट!!" इस के साथ । बहुत सुंदर है । यह यह बहुत सुंदर है क्योंकि यह आग के साथ है । और जैसे ही चिंगारी आग से नीचे गिर जाती है, तो उसका कोई मूल्य नहीं है । कोई भी उस की परवाह नहीं करता है। यह समाप्त हो जाता है। इसी तरह, जब तक हम श्री कृष्ण के साथ हैं, श्री कृष्ण के अंशस्वरूप, हमारा मूल्य है। और जैसे ही हम श्री कृष्ण के संपर्क से अलग हैं, तो हमारा कोई मूल्य नहीं है । हमें यह समझना चाहिए। तो कैसे हम श्री कृष्ण के साथ हमेशा जुड़े रहें, यह मानव जीवन का उद्देश्य है। अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो यह पाप है। तो फिर हम दंडनीय बन जाते हैं, कि "तुम्हे अपने आप को समझने के लिए मौका दिया गया श्री कृष्ण और तुम्हारा श्री कृष्ण के साथ तुम्हारा रिश्ता । तुमने यह मौका नहीं लिया । " ओह, वह दंडित किया जाता है: "ठीक है, तुम फिर जानवर बन जाअो, फिर से जन्म और मृत्यु के चक्र में ।" इसलिए हमें बहुत, बहुत सावधान रहना चाहिए। मत सोचो कि, कि "हम स्वतंत्र हैं, और हम जो चाहे कर सकते हैं ।" यह बहुत जोखिम भरा जीवन है । मत सोचो, मूर्खतापूर्वक । एक नियमित है..... यमराज हैं । क्योंकि हम श्री कृष्ण के पुत्र हैं ... श्री कृष्ण चाहते हैं, कि "ये मेरे बेटे, धूर्त, इस भौतिक दुनिया में पीड़ित हैं। "उन्हें घर वापस आने दो," इसलिए वे व्यक्तिगत रूप से आते हैं, यदा यदा हि धर्मस्य ग्रानिर भवति भारत तदात्मानम सृजाम्यहम ([[Vanisource:BG 4.7|भ गी ४।७]]) वे चाहते हैं,कि, "ये धूर्त, वे इस भौतिक दुनिया में सड़ रहे हैं, हर जन्म में । उन्हें वापस आने दो ।" क्योंकि वे बहुत स्नेही है। तो ... और अगर वह मानव जीवन का उपयोग नहीं करता है, लाभ नहीं लेते है घर वापस जाने के लिए, वापस देवत्व को, यह पापा है। फिर उसे सजा दी जाती है।
प्रभुपाद: ब्रह्मचारी को गुरुकुल में रहना चाहिए, पच्चीसवें साल तक । वे प्रशिक्षित हैं । फीर अगर गुरु को लगता है कि उसका शादी करना आवश्यक है, फिर वह घर जाता है और वह शादी करता है । अन्यथा, शिक्षण यह है कि पूरा जीवन ब्रह्मचारी रहे । प्रवेश करने की कोई जरूरत नहीं है... क्योंकि यह मानव जीवन भगवद साक्षात्कार के लिए है । यह यौन भोग या इन्द्रिय संतुष्टि के लिए नहीं है । यह बस है... यहाँ एक अवसर है अपनी संवैधानिक स्थिति को समझना, कि वह आत्मा है । और कृष्ण, या भगवान, भी आत्मा हैं । तो आत्मा, व्यक्तिगत आत्मा, कृष्ण का अंशस्वरूप है । इसलिए उसका कर्तव्य है कि पूर्ण के साथ रहे ।  


तो निष्कर्ष यह है कि हर किसी को कृष्ण भावनामृत आंदोलन को अपनाना चाहिए अन्यथा, वह यमराज द्वारा सजा का इंतजार कर रहा है ।  
जैसे एक यांत्रिक हिस्सा, एक टाइपराइटर मशीन में एक पेंच: अगर पेंच मशीन के साथ रहता है, तो मूल्य है उसका । और पेंच मशीन के बिना रहता है, उसका कोई मूल्य नहीं है । कौन एक छोटे से पेंच की परवाह करता है ? लेकिन जब उस पेंच की एक मशीन में अावश्यकता होती है, तुम खरीदने जाते हो... वे पाँच डॉलर लेते हैं । क्यों ? जब यह मशीन के साथ जुड़ेगा तो उसका मूल्य है । इतने सारे उदाहरण हैं । जैसे आग की चिंगारी । जब आग जलती है, तुम छोटी चिंगारी पाअोगे, "फट! फट!" इस के साथ । बहुत सुंदर है । यह बहुत सुंदर है क्योंकि यह आग के साथ है । और जैसे ही चिंगारी आग से नीचे गिर जाती है, तो उसका कोई मूल्य नहीं है । कोई भी उस की परवाह नहीं करता है । यह समाप्त हो जाता है ।
 
इसी तरह, जब तक हम कृष्ण के साथ हैं, कृष्ण के अंशस्वरूप, हमारा मूल्य है । और जैसे ही हम कृष्ण के संपर्क से अलग हैं, तो हमारा कोई मूल्य नहीं है । हमें यह समझना चाहिए । तो कैसे हम कृष्ण के साथ हमेशा जुड़े रहें, यह मानव जीवन का उद्देश्य है । अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो यह पाप है । तो फिर हम दंडनीय बन जाते हैं, की "तुम्हे अपने आप को समझने के लिए मौका दिया गया, कृष्ण और तुम्हारा कृष्ण के साथ तुम्हारे रिश्ते को समझने का । तुमने यह मौका नहीं लिया ।" ओह, वह दंडित किया जाता है: "ठीक है, तुम  फिर जानवर बन जाअो, फिर से जन्म और मृत्यु के चक्र में ।" इसलिए हमें बहुत, बहुत सावधान रहना चाहिए । मत सोचो, की "हम स्वतंत्र हैं, और हम जो चाहे कर सकते हैं ।" यह बहुत जोखिम भरा जीवन है । मत सोचो, मूर्खतापूर्वक ।
 
एक नियमित है... यमराज हैं । क्योंकि हम कृष्ण के पुत्र हैं... कृष्ण चाहते हैं, की "ये मेरे बेटे, धूर्त, इस भौतिक दुनिया में पीड़ित हैं । उन्हें घर वापस आने दो," इसलिए वे व्यक्तिगत रूप से आते हैं, यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानीर भवति भारत, तदात्मानम सृजाम्यहम ([[HI/BG 4.7|भ.गी. ४.७]]) | वे चाहते हैं,कि, "ये धूर्त, वे इस भौतिक दुनिया में सड़ रहे हैं, हर जन्म में । उन्हें वापस आने दो ।" क्योंकि वे बहुत स्नेही है । तो... और अगर वह मानव जीवन का उपयोग नहीं करता है, लाभ नहीं लेते है घर वापस जाने के लिए, वापस भगवद धाम, यह पाप है । फिर उसे सजा दी जाती है ।
 
तो निष्कर्ष यह है कि हर किसी को कृष्ण भावनामृत आंदोलन को अपनाना चाहिए; अन्यथा, वह यमराज द्वारा सजा का इंतजार कर रहा है ।  


बहुत बहुत धन्यवाद ।  
बहुत बहुत धन्यवाद ।  


भक्त: जय श्रील प्रभुपाद ।
भक्त: जय श्रील प्रभुपाद ।  
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Latest revision as of 19:16, 17 September 2020



Lecture on SB 6.1.48 -- Dallas, July 30, 1975

प्रभुपाद: ब्रह्मचारी को गुरुकुल में रहना चाहिए, पच्चीसवें साल तक । वे प्रशिक्षित हैं । फीर अगर गुरु को लगता है कि उसका शादी करना आवश्यक है, फिर वह घर जाता है और वह शादी करता है । अन्यथा, शिक्षण यह है कि पूरा जीवन ब्रह्मचारी रहे । प्रवेश करने की कोई जरूरत नहीं है... क्योंकि यह मानव जीवन भगवद साक्षात्कार के लिए है । यह यौन भोग या इन्द्रिय संतुष्टि के लिए नहीं है । यह बस है... यहाँ एक अवसर है अपनी संवैधानिक स्थिति को समझना, कि वह आत्मा है । और कृष्ण, या भगवान, भी आत्मा हैं । तो आत्मा, व्यक्तिगत आत्मा, कृष्ण का अंशस्वरूप है । इसलिए उसका कर्तव्य है कि पूर्ण के साथ रहे ।

जैसे एक यांत्रिक हिस्सा, एक टाइपराइटर मशीन में एक पेंच: अगर पेंच मशीन के साथ रहता है, तो मूल्य है उसका । और पेंच मशीन के बिना रहता है, उसका कोई मूल्य नहीं है । कौन एक छोटे से पेंच की परवाह करता है ? लेकिन जब उस पेंच की एक मशीन में अावश्यकता होती है, तुम खरीदने जाते हो... वे पाँच डॉलर लेते हैं । क्यों ? जब यह मशीन के साथ जुड़ेगा तो उसका मूल्य है । इतने सारे उदाहरण हैं । जैसे आग की चिंगारी । जब आग जलती है, तुम छोटी चिंगारी पाअोगे, "फट! फट!" इस के साथ । बहुत सुंदर है । यह बहुत सुंदर है क्योंकि यह आग के साथ है । और जैसे ही चिंगारी आग से नीचे गिर जाती है, तो उसका कोई मूल्य नहीं है । कोई भी उस की परवाह नहीं करता है । यह समाप्त हो जाता है ।

इसी तरह, जब तक हम कृष्ण के साथ हैं, कृष्ण के अंशस्वरूप, हमारा मूल्य है । और जैसे ही हम कृष्ण के संपर्क से अलग हैं, तो हमारा कोई मूल्य नहीं है । हमें यह समझना चाहिए । तो कैसे हम कृष्ण के साथ हमेशा जुड़े रहें, यह मानव जीवन का उद्देश्य है । अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो यह पाप है । तो फिर हम दंडनीय बन जाते हैं, की "तुम्हे अपने आप को समझने के लिए मौका दिया गया, कृष्ण और तुम्हारा कृष्ण के साथ तुम्हारे रिश्ते को समझने का । तुमने यह मौका नहीं लिया ।" ओह, वह दंडित किया जाता है: "ठीक है, तुम फिर जानवर बन जाअो, फिर से जन्म और मृत्यु के चक्र में ।" इसलिए हमें बहुत, बहुत सावधान रहना चाहिए । मत सोचो, की "हम स्वतंत्र हैं, और हम जो चाहे कर सकते हैं ।" यह बहुत जोखिम भरा जीवन है । मत सोचो, मूर्खतापूर्वक ।

एक नियमित है... यमराज हैं । क्योंकि हम कृष्ण के पुत्र हैं... कृष्ण चाहते हैं, की "ये मेरे बेटे, धूर्त, इस भौतिक दुनिया में पीड़ित हैं । उन्हें घर वापस आने दो," इसलिए वे व्यक्तिगत रूप से आते हैं, यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानीर भवति भारत, तदात्मानम सृजाम्यहम (भ.गी. ४.७) | वे चाहते हैं,कि, "ये धूर्त, वे इस भौतिक दुनिया में सड़ रहे हैं, हर जन्म में । उन्हें वापस आने दो ।" क्योंकि वे बहुत स्नेही है । तो... और अगर वह मानव जीवन का उपयोग नहीं करता है, लाभ नहीं लेते है घर वापस जाने के लिए, वापस भगवद धाम, यह पाप है । फिर उसे सजा दी जाती है ।

तो निष्कर्ष यह है कि हर किसी को कृष्ण भावनामृत आंदोलन को अपनाना चाहिए; अन्यथा, वह यमराज द्वारा सजा का इंतजार कर रहा है ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।

भक्त: जय श्रील प्रभुपाद ।