HI/Prabhupada 0816 - यह शरीर एक मशीन है, लेकिन हम खुद को मशीन मान रहे हैं

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751015 - Lecture SB 01.07.05-6 - Johannesburg

यया सम्मोहितो जीव
अात्मानम त्रि गुणात्मकम
परो अपि मनुते अनर्थम
तत कृतम चाभीपद्यते
(श्रीमद भागवतम १.७.५)

तो हमारी वर्तमान स्थिति इस तरह से है, कि सम्मोहित, घबराए हुए, माया से हैरान । हम परमेश्वर के अंशस्वरूप हैं, लेकिन इस भौतिक शक्ति से मुग्ध होने के कारण, या भगवान की बहिरंग शक्ति से, हम स्वयं को भूल गए हैं, और अब हम उलझ गए हैं । हम हमारे जीवन का लक्ष्य भूल गए हैं । न ते विदु: स्वार्थ गतिम हि विष्णुम दुराशया ये बहिर अर्थ मानिन: (श्रीमद भागवतम ७.५.३१) | बद्ध आत्मा... बद्ध आत्मा मतलब जीव, अात्मा भौतिक प्रकृति के इन कानूनों से बद्ध है ।

भौतिक प्रकृति का नियम यह है की तुम्हे अपनी प्रवृत्ति के अनुसार एक खास प्रकार के शरीर को स्वीकार करना होगा । हम प्रवृत्ति को पैदा करते हैं । और कृष्ण इतने दयालु हैं की वे तुम्हे सुविधा देता हैं: "ठीक है ।" जैसे शेर, वह खून चूसना चाहता है । या कोई आदमी, अगर वह खून चूसना चाहता है, फिर उसे वह सुविधा दी जाएगी एक बाघ के शरीर की । अगर किसी मनुष्य को विवेक नहीं है खाने में - जो कुछ भी उपलब्ध है, वह खा सकता है - फिर उसे सुविधा दी जाएगी एक सुअर बनने की । मल तक, वह खा सकता है । तो इस भगवद गीता में बहुत स्पष्ट रूप से कहा गया है:

ईश्वर: सर्व भूतानाम
हृदेशे अर्जुन तिष्ठति
भ्रामयन सर्व भूतानि
यंत्ररूढानि मायया
भ.गी. १८.६१) ।

यह बहुत महत्वपूर्ण है । यंत्ररूढानि मायया । हम एक यंत्र पर सवारी कर रहे हैं । यह शरीर एक यंत्र है, लेकिन हम खुद को मशीन मान रहे हैं । इसे सम्मोहित कहा जाता है, "भ्रमित ।" यदि तुम एक गाडी पर सवार हो, अगर तुम सोचते हो "मैं गाडी हूँ," जैसे यह मूर्खता है, इसी तरह, मुझे यह यंत्र मिला है, मशीन, शरीर, और यह मेरी मौजूदगी के कारण चल रहा है, या मैं चला रहा हूँ, या कृष्ण मुझे बुद्धि दे रहे हैं कि कैसे चलाना है । लेकिन अगर मैं इस शरीर के साथ खुद की पहचान जोड़ दूँ, एक मूर्ख आदमी की तरह - वह गाडी चला रहा है, और अगर वह गाडी के साथ खुद की पहचान जोड़ देता है, तो वह एक मूर्ख आदमी है - तो यह सम्मोहित कहा जाता है । यया सम्मोहितो जीव ।

इसलिए यह उदाहरण, मैं कल बता रहा था... कल रात, की हम वाहन चालक को नहीं देखते हैं, अौर जब वाहन चालक चला जाता है, फिर हम देखते हैं कि कार चल नहीं रही है, और फिर मैं समझ सकता हूँ "ओह, वाहन चालक, मेरे पिता या मेरा पुत्र, चला गया हैं ।" हम कभी-कभी रोते हैं, "मेरा बेटा चला गया" "मेरे पिता चले गए,' लेकिन क्योंकि हम सम्मोहित हैं, हमने वास्तव में पिता और पुत्र को कभी नहीं देखा है । हमने इस कोट-पतलून वाले शरीर को स्वीकार कर लिया पिता और पुत्र के रूप में । यह सम्मोहित कहा जाता है, भ्रमित ।

यया सम्मोहितो जीव अात्मानम: आत्मा, अात्मानम त्र-गुणात्मकम... यह शरीर त्रि-गुणात्मकम है । शरीर भौतिक प्रकृति के तीन गुणोंं के अनुसार बना है । कारणम गुण संगो अस्य (भ.गी. १३.२२) । सब कुछ बहुत स्पष्ट रूप से भगवद गीता में समझाया गया है । यह अौर विकास है । भगवद गीता... अगर तुम भगवद गीता को समझते हो, और यदि तुम वास्तव में कृष्ण के प्रति समर्पण करते हो... कृष्ण का अंतिम शब्द है सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भ.गी. १८.६६) | अगर तुम वास्तव में भगवद गीता समझते हो, यह परिणाम होगा । और श्रीमद-भागवतम में यह कहा जाता है कि त्यक्त्वा स्व धर्मम चरणाम्बुजम हरे: (श्रीमद भागवतम १.५.१७) | स्व-धर्म । कृष्ण कहते हैं सर्व-धर्मान परित्यज्य ।

तो इसका मतलब है हम में से हर एक... धर्म का मतलब है व्यावसायिक कर्तव्य । यही धर्म है, लक्षण । तो कृष्ण आदेश देते हैं, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भ.गी. १८.६६) | अगर हम यह स्वीकार करते हैं, भावुकता से भी... इसकी श्रीमद-भागवतम में पुष्टि की गई है । त्यक्त्वा स्व धर्मम चरणाम्बुजम हरे: पतेत ततो यदि, भजन्न अपक्वो अथ | नारद मुनि कहते हैं कि "अगर कोई, भावुकता से भी - 'ठीक है, कृष्ण कहते हैं, सर्व-धर्मान परित्यज्य । सब काम छोड़ो, कृष्ण भावनाभावित बनो' - भावुकता से भी कोई अपनाता हैं, अच्छी तरह से समझे बिना, वह भी भाग्यशाली है ।"

वह भी भाग्यशाली है क्योंकि वह सही बात को स्वीकार कर रहा है । इसलिए नारद मुनि नें कहा कि "भावुकता में स्वीकार कर के भी, अौर बाद में," भजन अपक्वो अथ, "उसकी भक्ति सेवा का निष्पादन परिपक्व नहीं है, और वह नीचे गिर जाता है, फिर, "नारद मुनि कहते हैं, यत्र क्व वाभद्रम अभूद अमुष्य किम, "उस व्यक्ति के लिए नुकसान कहाँ है ? और दूसरी ओर, जिस किसी नें यह स्वीकार नहीं किया है - वह बहुत ही नियमित रूप से अपनी ज़िम्मेदारी को निष्पादित कर रहा है... भौतिक ज़िम्मेदारी - उसे क्या हासिल होता है ?" यह विचार है । "अगर कृष्ण भावनामृत स्वीकार किया जाता है भावुकता से भी, और उसके बाद, अगर वह नीचे गिर जाता है, कोई नुकसान नहीं है । और अगर हम अपनी भौतिक कर्तव्यों के प्रति बहुत वफादार हैं," फिर नारद मुनि कहते हैं, "हमें उस से क्या लाभ होता है ?" इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण बात है ।