HI/Prabhupada 0822 - तुम पवित्र बनते हो केवल कीर्तन करने से
Lecture on SB 3.28.18 -- Nairobi, October 27, 1975
हारिकेश: अनुवाद: "प्रभु की महिमा हमेशा गायन के योग्य है, क्योंकि उनकी महिमा उनके भक्तों की महिमा को बढ़ाती है । इसलिए हमें भगवान पर ध्यान करना चाहिए अौर उनके भक्तों पर । हमें ध्यान करना है भगवान के शाश्वत रूप पर जब तक मन स्थिर नहीं हो जाता है।"
प्रभुपाद:
- कीर्तन्य तीर्थ पशसम्
- पुण्य श्लोक यशस्करम
- ध्यायेद देवम् समग्रांगम्
- यावन च च्यवते मन:
- (श्री ३।२८।१८)
यही ध्यान कहा जाता है। यावन - जब तक मन परेशान है और ध्यान के हमारे विषय से भटक जाता है, हमें इस कीर्तन का अभ्यास करना चाहिए। कीर्तनीय: सदा हरि" (चै च अादि १७।३१) चैतन्य महाप्रभु सलाह देते हैं कि भक्त को हमेशा चौबीस घंटे जाप करना चाहिए । कीर्तन्य: "यह गायन के योग्य है।" यह गायन के योग्य है, क्यों? पुण्य श्लोक्सय । पुण्य श्लोक्सय .... पुण्य श्लोक्सय तशस्करम यदि तुम अपने मन को स्थिर नहीं करते हो- कीर्तन का अर्थ है अपने मन को स्थीर करना - लेकिन अगर तुम अपने मन को स्थिर नहीं करते हो, फिर भी तुम फायदे में हो । जितना अधिक तुम प्रभु की महिमा करते हो, तुम पवित्र बनते हो केवल कीर्तन करने से । यह जरूरी नहीं है कि तुम समझो लेकिन अगर तुम हरे कृष्ण महा-मंत्र का जप करते रहो, तो तुम पवित्र हो जाते हो । पुण्य-श्लोक । श्री कृष्ण का दूसरा नाम है पुण्य श्लोक, उत्तम-श्लोक । केवल " कृष्ण " जपने से, तुम पवित्र हो जाते हो । तो ध्यायेद देवम् समाग्रांगम ध्यान, ध्यान, चरण कमलों से शुरू करना चाहिए। जैसे ही तुम कीर्तन शुरू करते होते, सब से पहले चरण कमलों में अपने मन को केंद्रित करो, यह नहीं कि मुख पर अचानक से कूद पड़ो । अभ्यास करो चरण कमलों का ध्यान करने में, फिर उससे उपर, घुटने, फिर जांघें, फिर पेट, फिर छाती । इस तरह से अाखरी में मुख । यह प्रक्रिया है। यह दूसरा सर्ग में वर्णित है। प्रक्रिया है कि कैसे श्री कृष्ण के बारे में सोचें, मन मना भव मद भक्त: (भ गी १८।६५) यह ध्यान है। तो यह ... कीर्तन करके यह बहुत आसान हो जाता है। अगर तुम हरिदास ठाकुर की तरह हरे कृष्ण महा-मंत्र चौबीस घंटे जाप करते हो ... यह संभव नहीं है। तो जितना हो सके उतना करो । तीर्थ-यशस । कीर्तन ... यह भी कीर्तन है। हम श्री कृष्ण के बारे में बात कर रहे हैं, श्री कृष्ण के बारे में पढ़ रहे हैं, भगवद गीता में श्री कृष्ण के निर्देश पढ़ रहे हैं, या श्रीमद-भागवतम में श्री कृष्ण की महिमा को पढ़ रहे हैं । ये सभी कीर्तन हैं । यह नहीं कि जब हम संगीत उपकरण के साथ गाते हैं, वह कीर्तन है । नहीं । जो भी तुम श्री कृष्ण के बारे में बात करते हो, वह कीर्तन है ।