HI/Prabhupada 0823 - यह जन्मसिद्ध अधिकार है भारत में, वे स्वत ही कृष्ण भावनाभावित हैं: Difference between revisions

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Harikeśa: अनुवाद: "प्रभु के शाश्वत रूप पर अपने मन को स्थिर करने में, योगी को एक सामूहिक दृश्य नहीं लेना चाहिए उनके सभी अंगों का, लेकिन प्रभु के प्रत्येक व्यक्तिगत अंग पर मन को स्थिर करना चाहिए। "  
हरिकेश: अनुवाद: "प्रभु के शाश्वत रूप पर अपने मन को स्थिर करने में, योगी को एक सामूहिक दृश्य नहीं लेना चाहिए उनके सभी अंगों का, लेकिन प्रभु के प्रत्येक व्यक्तिगत अंग पर मन को स्थिर करना चाहिए ।"  


प्रभुपाद:
प्रभुपाद:  


:तस्मिल लब्धा पदम् चित्तम्
:तस्मिल लब्ध-पदम चित्तम
:सर्वावयव सम्स्थितम
:सर्वावयव संस्थितम
:विलक्षयैकत्र सम्युज्याद
:विलक्श्यैक संयुज्याद
:अंगे भगवतो मुनि:  
:अंगे भगवतो मुनि:  
:([[Vanisource:SB 3.28.20|श्री ३।२८।२०]])
:([[Vanisource:SB 3.28.20|श्रीमद भागवतम ३.२८.२०]])  


तो जैसा कि हमने कई बार समझाया कि यह अर्च-मूर्ति ... धूर्त पुरुष, वे अर्च-मूर्ति नहीं समझ सकते हैं । वे सोचते हैं कि, "वे पत्थर की पूजा कर रहे हैं।" यहां तक ​​कि हिंदुओं में भी वेदों के तथाकथित अनुयायि हैं, उनका कहना है कि "क्या आवश्यकता है मंदिर में अर्च विग्रह की पूजा करने की?" उन्होंने मंदिर में पूजा को रोकने के लिए भारत में बहुत जोरदार प्रचार किया है। थोड़े समय के लिए कुछ प्रतिक्रिया हुई, लेकिन अब यह समाप्त हो गया है। यह है ... यह धूर्त प्रचार मंदिर में अर्च विग्रह की पूजा को समाप्त करने की खत्म हो गई है । कोई भी उसकी परवाह नहीं करता है। वे सोचते हैं कि भगवान हर जगह है - मंदिर में छोड़कर । (हंसी) यही उनका विचार है। और भगवान हर जगह हैं; क्यों नहीं मंदिर में? नहीं, यह ज्ञान की कमी है। वे समझ नहीं सकते। नहीं । भगवान हर जगह है , लेकिन बल्कि मंदिर में नहीं । यह उनकी बुद्धि है, धूर्त । तो हमें इसलिए आचार्य का अनुसरण करना चाहिए । अाचार्यवान पुरुषो वेद ( छांदोग्य उपनिषद ६।१४।२) : जिसने आचार्य को स्वीकार किया है, ... जो शास्त्र जानता है अौर शास्त्र के निषेध के अनुसार कार्य करता है, वह आचार्य कहा जाता है। अनिनोति शास्त्रार्थ: । तो सभी अाचार्य ... भारत में हजारों मंदिर हैं, बहुत, बहुत बड़े, विशेष रूप से दक्षिण भारत में । उनमें से कुछ तुमने देखा है। प्रत्येक मंदिर एक बड़े किले की तरह है। इसलिए ये सभी मंदिर अाचर्तयों द्वारा स्थापित किए गए थे, एसा नहीं कि लोगों ने अपने हिसाब से स्थापित किया । नहीं । अभी भी बहुत प्रमुख मंदिर हैं, बालाजी मंदिर, तिरुपति, तिरुमलई । लोग जा रहे हैं, और दैनिक संग्रह एक लाख रुपये से अधिक है। हालांकि प्रचार है मंदिरों में ना जाने के लिए, लेकिन लोग..... ... यह जन्मसिद्ध अधिकार है भारत में - वे स्वत: ही कृष्ण भावनाभावित हैं । स्वचालित रूप से। इसलिए सभी देवता, वे भी भारत में जन्म लेने की इच्छा करते हैं । स्वचालित रूप से। तो मंदिर में पूजा आवश्यक है । तो जो मंदिर में पूजा के खिलाफ हैं, अर्च विग्रह की पूजा, वे बहुत बुद्धिमान वर्ग नहीं हैं - मूर्ख, मूढा । फिर, वही शब्द।
तो जैसा की हमने कई बार समझाया है की यह अर्च-मूर्ति... धूर्त पुरुष, वे अर्च-मूर्ति नहीं समझ सकते हैं । वे सोचते हैं की, "वे पत्थर की पूजा कर रहे हैं ।" यहां तक ​​की हिंदुओं में भी वेदों के तथाकथित अनुयायी हैं, उनका कहना है कि "क्या आवश्यकता है मंदिर में अर्च विग्रह की पूजा करने की ?" उन्होंने मंदिर में पूजा को रोकने के लिए भारत में बहुत जोरदार प्रचार किया है । थोड़े समय के लिए कुछ प्रतिक्रिया हुई, लेकिन अब यह समाप्त हो गया है । यह है... यह मंदिर में अर्च विग्रह की पूजा को समाप्त करने का धूर्त प्रचार खत्म हो गया है । कोई भी उसकी परवाह नहीं करता है । वे सोचते हैं की भगवान हर जगह है - मंदिर में छोड़कर । (हंसी)  
 
यही उनका विचार है । और भगवान हर जगह हैं; क्यों मंदिर में नहीं है ? नहीं, यह ज्ञान की कमी है। वे समझ नहीं सकते । नहीं । भगवान हर जगह है, लेकिन मंदिर में नहीं । यह उनकी बुद्धि है, धूर्त । तो हमें इसलिए आचार्य का अनुसरण करना चाहिए । अाचार्यवान पुरुषो वेद (चांदोग्य उपनिषद ६.१४.२): जिसने आचार्य को स्वीकार किया है... जो शास्त्र जानता है अौर शास्त्र के निषेध के अनुसार कार्य करता है, वह आचार्य कहा जाता है । अचीनोति शास्त्रार्थ: ।  
 
तो सभी अाचार्य... भारत में हजारों मंदिर हैं, बहुत, बहुत बड़े, विशेष रूप से दक्षिण भारत में । उनमें से कुछ तुमने देखा है । प्रत्येक मंदिर एक बड़े किले की तरह है । तो ये सभी मंदिर आचार्यो द्वारा स्थापित किए गए थे, एसा नहीं कि लोगों ने अपने हिसाब से स्थापित किया । नहीं । अभी भी बहुत प्रमुख मंदिर हैं, बालाजी मंदिर, तिरुपति, तिरुमलई । लोग जा रहे हैं, और दैनिक संग्रह एक लाख रुपये से अधिक है । हालांकि प्रचार है मंदिरों में जाने के लिए, लेकिन लोग... यह जन्मसिद्ध अधिकार है भारत में - वे स्वत: ही कृष्ण भावनाभावित हैं । स्वचालित रूप से । इसलिए सभी देवता, वे भी भारत में जन्म लेने की इच्छा करते हैं । स्वचालित रूप से । तो मंदिर में पूजा आवश्यक है । तो जो मंदिर में पूजा के, अर्च विग्रह की पूजा के, खिलाफ हैं, वे बहुत बुद्धिमान वर्ग नहीं हैं - मूर्ख, मूढ । फिर, वही शब्द ।


:न माम दुष्कृतिनो मूढा:  
:न माम दुष्कृतिनो मूढा:  
:प्रपद्यन्ते नराधमा:  
:प्रपद्यन्ते नराधमा:  
:माययापहृत ज्ञाना  
:माययापहृत ज्ञाना  
:असुरि भावम अाश्रित:  
:आसुरी भावम अाश्रित:  
:([[Vanisource:BG 7.15|भ गी ७।१५]])  
:([[HI/BG 7.15|भ.गी. ७.१५]]) |


माययापहृत ज्ञाना: । वे बहुत बड़ी, बड़ी बातें कर रहे हैं "भगवान हर जगह हैं", लेकिन वे मंदिर में पूजा मना कर रहे हैं । अपहृत-ज्ञान । ज्ञान अपूर्ण है । एक आम आदमी कह सकता है "अगर भगवान हर जगह हैं, तो क्यों नहीं मंदिर में ?"
माययापहृत ज्ञाना: । वे बहुत बड़ी, बड़ी बातें कर रहे हैं "भगवान हर जगह हैं," लेकिन वे मंदिर में पूजा मना कर रहे हैं । अपहृत-ज्ञान । ज्ञान अपूर्ण है । एक आम आदमी कह सकता है "अगर भगवान हर जगह हैं, तो मंदिर में क्यों नहीं है ?"  
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Latest revision as of 19:20, 17 September 2020



Lecture on SB 3.28.20 -- Nairobi, October 30, 1975

हरिकेश: अनुवाद: "प्रभु के शाश्वत रूप पर अपने मन को स्थिर करने में, योगी को एक सामूहिक दृश्य नहीं लेना चाहिए उनके सभी अंगों का, लेकिन प्रभु के प्रत्येक व्यक्तिगत अंग पर मन को स्थिर करना चाहिए ।"

प्रभुपाद:

तस्मिल लब्ध-पदम चित्तम
सर्वावयव संस्थितम
विलक्श्यैक संयुज्याद
अंगे भगवतो मुनि:
(श्रीमद भागवतम ३.२८.२०)

तो जैसा की हमने कई बार समझाया है की यह अर्च-मूर्ति... धूर्त पुरुष, वे अर्च-मूर्ति नहीं समझ सकते हैं । वे सोचते हैं की, "वे पत्थर की पूजा कर रहे हैं ।" यहां तक ​​की हिंदुओं में भी वेदों के तथाकथित अनुयायी हैं, उनका कहना है कि "क्या आवश्यकता है मंदिर में अर्च विग्रह की पूजा करने की ?" उन्होंने मंदिर में पूजा को रोकने के लिए भारत में बहुत जोरदार प्रचार किया है । थोड़े समय के लिए कुछ प्रतिक्रिया हुई, लेकिन अब यह समाप्त हो गया है । यह है... यह मंदिर में अर्च विग्रह की पूजा को समाप्त करने का धूर्त प्रचार खत्म हो गया है । कोई भी उसकी परवाह नहीं करता है । वे सोचते हैं की भगवान हर जगह है - मंदिर में छोड़कर । (हंसी)

यही उनका विचार है । और भगवान हर जगह हैं; क्यों मंदिर में नहीं है ? नहीं, यह ज्ञान की कमी है। वे समझ नहीं सकते । नहीं । भगवान हर जगह है, लेकिन मंदिर में नहीं । यह उनकी बुद्धि है, धूर्त । तो हमें इसलिए आचार्य का अनुसरण करना चाहिए । अाचार्यवान पुरुषो वेद (चांदोग्य उपनिषद ६.१४.२): जिसने आचार्य को स्वीकार किया है... जो शास्त्र जानता है अौर शास्त्र के निषेध के अनुसार कार्य करता है, वह आचार्य कहा जाता है । अचीनोति शास्त्रार्थ: ।

तो सभी अाचार्य... भारत में हजारों मंदिर हैं, बहुत, बहुत बड़े, विशेष रूप से दक्षिण भारत में । उनमें से कुछ तुमने देखा है । प्रत्येक मंदिर एक बड़े किले की तरह है । तो ये सभी मंदिर आचार्यो द्वारा स्थापित किए गए थे, एसा नहीं कि लोगों ने अपने हिसाब से स्थापित किया । नहीं । अभी भी बहुत प्रमुख मंदिर हैं, बालाजी मंदिर, तिरुपति, तिरुमलई । लोग जा रहे हैं, और दैनिक संग्रह एक लाख रुपये से अधिक है । हालांकि प्रचार है मंदिरों में न जाने के लिए, लेकिन लोग... यह जन्मसिद्ध अधिकार है भारत में - वे स्वत: ही कृष्ण भावनाभावित हैं । स्वचालित रूप से । इसलिए सभी देवता, वे भी भारत में जन्म लेने की इच्छा करते हैं । स्वचालित रूप से । तो मंदिर में पूजा आवश्यक है । तो जो मंदिर में पूजा के, अर्च विग्रह की पूजा के, खिलाफ हैं, वे बहुत बुद्धिमान वर्ग नहीं हैं - मूर्ख, मूढ । फिर, वही शब्द ।

न माम दुष्कृतिनो मूढा:
प्रपद्यन्ते नराधमा:
माययापहृत ज्ञाना
आसुरी भावम अाश्रित:
(भ.गी. ७.१५) |

माययापहृत ज्ञाना: । वे बहुत बड़ी, बड़ी बातें कर रहे हैं "भगवान हर जगह हैं," लेकिन वे मंदिर में पूजा मना कर रहे हैं । अपहृत-ज्ञान । ज्ञान अपूर्ण है । एक आम आदमी कह सकता है "अगर भगवान हर जगह हैं, तो मंदिर में क्यों नहीं है ?"