HI/Prabhupada 0832 - शुद्धता धर्मपरायण के साथ ही होती है
Lecture on SB 3.25.16 -- Bombay, November 16, 1974
प्रक्रिया यह है कि मन का शुद्धिकरण होना है बेकार की बातों से । मन दोस्त है; मन हर किसी का दुश्मन है। अगर यह शुद्ध होता है, तो यह दोस्त है, और अगर यह मलीन है ... जैसे कि अगर तुम खुद को अशुद्ध रखते हो तो तुम किसी रोग का शिकार हो जाते हो । अौर अगर तुम खुद को साफ रखते हो तो तुम दूषित नहीं होते । अगर तुम एहतियात बरतते हो....... इसलिए वैदिक सभ्यता के अनुसार, हमें खुद को तीन बार एक दिन में शुद्ध करना चाहिए, त्रि संध्या । सुबह, भोर में, फिर दोपहर में, फिर शाम में। jo सख्ती से ब्राह्मणवादी नियमों और विनियमों का पालन कर रहे हैं, वैशणव भी । वैशणव मतलब वह पहले से ही ब्राह्मण है । तो उसे नियमों का पालन करना चाहिए और ... सत्यम शमो दमस तितिक्षा अार्जवम ज्ञानम विज्ञानम अास्तिक्यम (भ गी १८।४२)
तो शुद्धता धर्मपरायण के साथ ही होती है । इतना ... दरअसल, हमारी भौतिक बद्ध जीवन का मतलब है कि मन मलीन है, सभी अशुद्ध, गंदी बातें । यही बीमारी है । जब हम तमो-गुण और रजो-गुण में होते हैं, ये गंदी बातें बहुत ज्यादा प्रमुख होती हैं । इसलिए हमें अपने अाप को सत्त्व-गुण तक उठाना होगा, तमो गुण अौर रजो गुण से । प्रक्रिया दी गई हैं, कैसे मन को शुद्ध करें : श्रण्वताम् स्व कथा: कृष्ण: पण्य श्रवण कीर्तन: (श्री भ १।२।१७) हमें कृष्ण-कथा को सुनना होगा । श्री कृष्ण हर किसी के ह्दय में हैं, अौर जब वे देखते हैं कि बद्ध जीव... क्योंकि जीवात्मा श्री कृष्ण का अंशस्वरूप है, श्री कृष्ण चाहते हैं कि "यह जीवात्मा, धूर्त, वह अासक्त है भौतिक अानंद से, जो उसके बंधन, जन्म और मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी का कारण है, और वह इतना मूर्ख है कि वह सोचता नहीं है कि 'मैं क्यों जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी की पुनरावृत्ति के अधीन रहूँ ?' "वह इतना मूर्ख हो गया है। मूढा । इसलिए वे वर्णित किए गए हैं: मूढा, गधा। गधा.... जैसे गधे को पता नहीं है कि वह इतना भार क्यों ढो रहा है, धोबी के इतने कपड़े । किस लिए ? उसे कोई लाभ नहीं है। कोई भी कपड़े उसका नहीं है। धोबी थोडी सी घास देता है, जो हर जगह उपलब्ध है अगर ... लेकिन गधा सोचता है कि "घास का यह निवाला धोबी द्वारा दिया गया इसलिए मुझे यह भारी बोझ उठाना होगा, हालांकि एक भी कपड़ा मेरा नहीं है ।" यही कर्मी कहा जाता है। कर्मी, ये सभी बड़े, बड़े कर्मी, बड़े, बड़े करोड़पती, वे गधे की तरह हैं, क्योंकि वे इतनी मेहनत से काम कर रहे हैं । केवल बड़े हइ नहीं - छोटे भी । दिन और रात । लेकिन दो चपाती या तीन चपाती या ज़्यादा से ज़्यादा चार चपाती खाते हैं । लेकिन वह इतनी मेहनत, कड़ी मेहनत कर रहा है। ये तीन-चार चपाती तो सबसे गरीब आदमी भी आसानी से कमा सकता है, लेकिन वह क्यों इतनी मेहनत से काम कर रहा है? क्योंकि वह सोच रहा है , "मैं जिम्मेदार हूँ इस बड़े परिवार के पोषण के लिए ।" इसी तरह, एक नेता भी, जनता का नेता, एक राजनीतिज्ञ, वह भी ऐसा सोच रहा है, कि, "मेरे बिना, मेरे राष्ट्र के सरी जनता मर जाएगी । तो मुझे दिन और रात काम करने दो ।" मेरी मौत तक या जब तक मैं किसी के द्वारा मारा न जाऊँ मुझे इतनी मेहनत से काम करना है। " ये ही बेकार की बातें हैं। अहम ममेति (श्री भ ५।५।८) । अहम ममेति । अहम् ममाभिमानोथै: ये मलीन बातें........व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनीतिक, साम्प्रदायिक, या राष्ट्रीय । किसी भी तरह से। ये दो चीजें, अहम् ममेति (श्री भ ५।५।८) बहुत महत्वपूर्ण हैं । "मैं इस परिवार से हूँ। मैं इस देश के हैं। मैं इस समुदाय से हूँ । मेरा यह कर्तव्य है ।" लेकिन वह जानता नहीं है कि सब झूठी उपाधीयॉ हैं । यही अज्ञानता कहा जाता है। चैतन्य महाप्रभु इसलिए अपनी शिक्षा प्रारंभ करते हैं, कि जीवेर स्वरूप हय नित्य कृष्ण दास (चै च मध्य २०।१०८-१०९) वास्तविक स्थिति है श्री कृष्ण के अनन्त दास की । यही वास्तविक स्थिति है। लेकिन वह सोच रहा है कि "मैं इस परिवार का दास हूं । मैं इस देश का दास हूं । मैं इस समुदाय का नौकर हूँ, नौकर ... " इतने सारे। अहम् ममेति (श्री भ ५।५।८) यह अज्ञानता के कारण है, तमो-गुण । तमो-गुण ।