HI/Prabhupada 0833 - तुम कृष्ण, वैष्णव, गुरु और अग्नि के सामने प्रतिज्ञा ले रहे हो, सेवा के लिए ।

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Sannyasa Initiation -- Bombay, November 18, 1975

हमारे संन्यासी, वे कड़ी मेहनत करते हैं, प्रचार, धन इकट्ठा करना - लेकिन खुद के लिए एक पैसा नहीं । सब से पहले, ब्रह्मचारी को प्रशिक्षित किया जाता है । ब्रह्मचारी गुरु-कुले वासन दांतो गुरोर हितम (श्रीमद भागवतम ७.१२.१) | ब्रह्मचारी को प्रशिक्षित किया जाता है गुरु के लाभ के लिए गुरु के साथ रहने के लिए । वही सिद्धांत, जब वह परिपक्व हो जाता है, और जब कोई कृष्ण के लाभ के लिए अपने जीवन को समर्पित करता है...

कृष्ण का लाभ मतलब पूरी दुनिया का लाभ । कृष्ण चाहते हैं सर्व-धर्मान परित्ज्य माम एकम शरणम व्रज ((भ.गी. १८.६६)) | एक सन्यासी को दर दर जाना चाहिए । महद विचलनम नृणाम गृहीणाम दीन चेतसाम (श्रीमद भागवतम १०.८.४) । एक सन्यासी को महात्मा कहा जाता है । क्यों वह महात्मा है ? उसकी आत्मा अब व्यापक है । गृहीणाम दीन चेतसाम । महद विचलनम |

महात्मा यात्रा करता है या घूमता है देश से देश, घर घर जाकर - महद विचलनम नृणाम गृहीणाम - विशेष रूप से गृहस्थों के लिए, दीन चेतसाम, जिनकी चेतना छोटी है । वे दीन-चेतसाम हैं । ये सभी भौतिकवादी व्यक्ति, वे केवल इन्द्रिय आनंद कैसे करें बस इसमें रुचि रखते हैं; इसलिए वे कहे जाते हैं दीन-चेतसाम, छोटी बुद्धि वाले । उन्हे पता ही नहीं है । तो उनको समझाना सन्यासी का कर्तव्य है घर घर में जाकर, देश देश में, केवल जीवन के उद्देश्य के बारे में उन्हें सिखाने के लिए । यह अभी भी भारत में चल रहा है । अभी भी, अगर एक सन्यासी एक गांव में चला जाता है, लोग उसे आमंत्रित करने के लिए आते हैं, उससे सुनने का प्रयास करते हैं ।

तो तुम कृष्ण, वैष्णव, गुरु और अग्नि के सामने प्रतिज्ञा ले रहे हो, सेवा के लिए । तो तुम्हे बहुत ज्यादा सतर्क रहना होगा अपने कर्तव्य को न भूलने का । तुम्हे अच्छा मौका मिला है । तुम अफ्रीका जा रहे हो इन व्यक्तियों के उद्धार के लिए । शुकदेव गोस्वामी कहते हैं, किरात हुणान्ध्र पुलिंद पुल्कशा अाभीर शूम्भा यवना: खसादय: ये अन्ये च पापा ((श्रीमद भागवतम २.४.१८)) | ये पुरुषों का समूहों बहुत गिरा हुअा माना जाता है, किरात, काले पुरुष | वे निषाद कहे जाते हैं । निषाद का जन्म हुअा है राजा वेन से । तो वे आदी हैं चोरी करने के लिए; इसलिए उन्हे एक अलग जगह दी गई है, अफ्रीकी जंगलों में । यही भागवतम में है ।

तो... लेकिन हर किसी का उद्धार हो सकता है । किरात हुणान्ध्र पुलिंद पुल्कशा अाभीर शूम्भा यवना: खसादय: ये अन्ये च पापा | ये पापी जीवन जाना जाता है । लेकिन शुकदेव गोस्वामी कहते हैं "कुछ दूसरे भी हो सकते हैं जिनका यहाँ उल्लेख नहीं है ।" ये अन्ये च पाप यद अपाश्रयाश्रया: | "अगर वे एक वैष्णव की शरण लेते हैं," शूद्धयन्ति, "वे शुद्ध हो जाते हैं ।" तो तुम्हे एक चुस्त वैष्णव बनना होगा, फिर तुम उनका उद्धार कर सकोगे । शुद्धयन्ति । कैसे वे एक और जन्म लिए बिना शुद्ध किए जा सकते हैं ? हाँ । प्रभविष्णवे नमः। क्योंकि वैष्णव उनका उद्धार करने वाला है, विष्णु की शक्ति से वे शक्ति पाते हैं ।

तो व्यावहारिक रूप से हमने पिछली बार देखा है जब मैं नैरोबी गया था, इतने सारे, ये अफ्रीकी, वे बहुत अच्छी तरह से प्रगति कर रहे हैं । वे अच्छे सवाल कर रहे हैं । वे नियम और विनियमन का अनुसरण कर रहे हैं । तो अफ्रीकी लोग, वे इतने परिष्कृत नहीं है, या तथाकथित सभ्य, वे भगवान को भूल जाते हैं । लेकिन अगर तुम ईमानदारी से काम करते हो और अगर तुम केवल एक व्यक्ति का उद्धार करते हो अपने प्रयास से, तो तुम्हे तुरंत मान्यता प्राप्त हो जाती है, कृष्ण से । न च तस्मान मनुष्येषु कश्चिन मे प्रिय कृत्तम: (भ.गी. १८.६९) | यही कृष्ण द्वारा मान्यता प्राप्त करने का सबसे तेज़ तरीका है, प्रचार करके ।