HI/Prabhupada 0844 - केवल राजा को प्रसन्न करके, तुम भगवान को प्रसन्न कर सकते हो

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731216 - Lecture SB 01.15.38 - Los Angeles

तो पूर्व में, पूरा ग्रह, भारतवर्ष ... यह भारतवर्ष नामित किया गया था। और यह एक सम्राट द्वारा नियंत्रित किया जा रहा था। इसलिए यहाँ कहा जाता है, स्वराट । स्वराट मतलब पूरी तरह से स्वतंत्र । महाराज युधिष्ठिर किसी भी अन्य राजा या किसी भी अन्य राज्य पर निर्भर नहीं थे । वे पूरी तरह से स्वतंत्र थे । जो वे चाहते, वे कर सकते थे । यही राजा है। यही सम्राट है। अगर तथाकथित राजा या राष्ट्रपति वोट पर निर्भर है कुछ धूर्त मतदाताओं के, तो किस तरह का वह स्वराट है ? वर्तमान समय में, तथाकथित राष्ट्रपति कुछ धूर्तों के वोट पर निर्भर है । बस । धूर्त, वे जानते नहीं है किसे वोट करना है, और इसलिए एक और धूर्त चुना जाता है, अौर जब वह अच्छी तरह से काम नहीं करता है, वे रोते हैं । तुमने चुना है । क्यों तुम अब रो रहे हो ? क्योंकि वे धूर्त हैं। वे नहीं जानते। तो यह चल रहा है। लेकिन वास्तव में, राज्य के प्रमुख को होना चाहिए स्वराट, पूरी तरह से स्वतंत्र। न की प्रजा के वोट पर। वह केवल श्री कृष्ण पर ही निर्भर है, महाराज युधिष्ठिर की तरह । सभी पांडव, वे श्री कृष्ण के आदेश के थे । तो राजा या सम्राट, श्री कृष्ण का प्रतिनिधि है। इसलिए वह सम्मानित किया जाता है, नरदेव । राजा का दूसरा नाम है नरदेव, " भगवान, एक इंसान के रूप में ।" "भगवान, इंसान के रूप में " राजा को इतना सम्मान दिया जाता है। क्योंखि वह कृष्ण का प्रतिनिधि है। श्री कृष्ण का कोई भी प्रतिनिधि ... जैसे राजा ... वर्तमान राजा या राष्ट्रपति नहीं, लेकिन यह आदर्श है । तो उसे उत्तम प्रतिनिधि होना चाहिए ... यह विश्वनाथ चक्रवर्ति ठाकुर का कहना है कि, यस्य प्रसादाद भगवत प्रसाद: अगर राजा भगवान का असली प्रतिनिधि है, तो केवल राजा को प्रसन्न करके, तुम भगवान को प्रसन्न कर सकते हो । . तो क्यों श्री कृष्ण सिंहासन पर महाराज युधिष्ठिर को स्थापित करने के लिए कुरुक्षेत्र की यह लड़ाई चाहते थे ? क्योंकि वे जानत थे कि "वह मेरी सही प्रतिनिधि है, दुर्योधन नहीं । इसलिए लड़ाई होनी चाहिए, और यह दुर्योधन और कंपनी समाप्त कर दिए जाने चाहिए और युधिष्ठिर को स्थापित किया जाना चाहिए। " तो चयन ... यह परम्परा है। तो युधिष्ठिर की जिम्मेदारी है कि अगला राजा ... क्योंकि वह रिटायर होने वाले थे । "तो अगला सम्राट, "वह भी मेरी ही तरह योग्य होना चाहिए।" इसलिए यह कहा गया है कि सुसमम् गुणै: । सुसमम " वास्तव में मेरा प्रतिनिधि। वह है ... मेरा पोता, परिक्षित, उसकी योग्यता समान है। इसलिए वह स्थापित किया जाना चाहिए " कोई आवारा नहीं । नहीं । यह नहीं हो सकता। जब महाराज परिक्षित पैदा हुए थे, वह पूरे कुरु परिवार के एकमात्र बच्चे थे । सभी दूसरे लड़ाई में मारे गए थे । नहीं । वे भी मरणोपरांत बच्चे थे । वह अपनी मां के गर्भ के भीतर थे । उसकी माँ गर्भवती थी। उनके पिता, सोलह साल के थे, अभिमन्यु, अर्जुन के पुत्र, वह लड़ाई में लड़ने के लिए चले गए । वे इतने महान योद्धा था । तो सात बड़े आदमी लगे उन्हे मारने के लिए : भीष्म, द्रोण, कर्ण, दुर्योधन, उस तरह, सभी एक साथ संयुक्त। तो कोई दया नहीं है। यह अभिमन्यु पौत्र, प्रपौत्र सभी नायकों का, जिन्होंने उन्हे मारने के लिए घेरा । बहुत प्यारा पौत्र या प्रपौत्र ... भीष्म का प्रपौत्र, दुर्योधन का पोता । लेकिन यह लड़ाई है क्षत्रिय । जब तुम लड़ने के लिए आते हो, तो तुम्हे विरोधि दल को मारना है । कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह वह मेरा प्रिय पुत्र या पौत्र या प्रपौत्र है । यह कर्तव्य है।