HI/Prabhupada 0848 - कोई भी गुरु नहीं बन सकता जब तक वह कृष्ण तत्त्व नहीं जानता हो

Revision as of 01:18, 22 August 2015 by Rishab (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0848 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1974 Category:HI-Quotes - Lec...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

741227 - Lecture SB 03.26.18 - Bombay

जब चैतन्य महाप्रभु और रामानंद राया आध्यात्मिक बोध के बारे में बात कर रहे थे ... तो रामानंद राया एक शूद्र परिवार से थe और वे गृहस्थ थे और मद्रास के गवर्नर थे, राजनीतिज्ञ भी । तो चैतन्य महाप्रभु उनसे सवाल पूछ रहे हैं और ... यह चैतन्य महाप्रभु की लीला है : मूकम् करोति वाचालम वे एक शूद्र, गृहस्थ, राजनीतिज्ञ, को अपना गुरु, चैतन्य महाप्रभु का गुरु, बना रहे हैं । तो कोई भी चैतन्य महाप्रभु का गुरु नहीं बन सकता है, लेकिन वे एसा अभिनव कर रहे थे । वे प्रश्न कर रहे थे, और रामानंद राया जवाब दे रहे थे। तो ज़रो देखो कितनी ऊंचा थी उनकी स्थिति । तो वे थोड़ा झिझक रहे थे, और बहुत जटिल सवाल उनके सामने डाले जा रहे थे ... वे जवाब देने के लिए काफी सक्षम थे । वे जवाब दे रहे थे । तो वे थोड़ा झिझक महसूस कर रहे थे, "श्रीमान, आप एक बहुत उच्चे ब्राह्मण परिवार से अा रहे हैं और सबसे विद्वान व्यक्ति हैं, और अब आपने सन्यास ग्रहण कर लिया है, सबसे उच्चतम स्थान मानव समाज में ।" सन्यास बहुत सम्मानजनक स्थिति है। अभि भी यह भारत में सम्मानित किया जाता है । जहां भी एक सन्यासी चला जाता है कम से कम गांवों में, वे सम्मानपूर्वक दण्डवत प्रणाम प्रदान करते हैं और आराम की सभी प्रकार की सुविधाऍ देते हैं, अब भी । शास्त्र के अनुसार, यह कहा जाता है कि अगर एक सन्यासी को सम्मान या विधिवत सम्मानित नहीं किया जाता है, सजा यह है कि मनुष्य को कम से कम एक दिन का उपवास करना चाहिए। यह वैदिक प्रणाली है। लेकिन कई संन्यासिय इस का लाभ लेते हैं, इसलिए हम परवाह नहीं करते हैं । न तो चैतन्य महाप्रभु एक झूठे सन्यासी थे । वे असली सन्यासी थे । और वे असली गृहस्थ भी थे, रामानंद राया । तो वे थोड़ा सा झिझक महसूस कर रहे थे । उन्हे प्रोत्साहित करने के लिए, चैतन्य महाप्रभु नें तुरंत कहा, "नहीं, नहीं। क्यों तुम हीन महसूस कर रहे हो? क्यों तुम हिचकिचाहट महसूस कर रहे हो ? तुम गुरु हो ।" "अब, मैं कैसे गुरु हूँ?" "येइ कृष्ण तत्व वेत्ता सेइ गुरु हय (चै च मध्य ८।१२८) क्योंकि श्री कृष्ण का ज्ञाता होना साधारण बात नहीं है । यतताम अपि सि्दधानाम् कश्चिद वेत्ति माम त्तवत: (भ गी ७।३) जो यह जान गया है कि श्री कृष्ण साधारण आदमी नहीं हैं । यतताम अपि सिद्धानाम (भ गी ७।३) । वह सभी सिद्धों से ऊपर है। "तो क्यों तुम हिचकिचा रहे हो ? तुम्हे कृष्ण-तत्त्व पता है, इसलिए मैं तुम से पूछ रहा हूँ।" तो यह स्थिति है। तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन का मतलब उन लोगों को प्रशिक्षण देना जो हमारे पास आते हैं, उन्हे बनाने के लिए सिद्धों से बहुत बहुत उपर । और यह बहुत आसान है। एक के बाद एक गुरु की इस स्थिति को पकड़ कर सकते हैं, हो सकता है, जो है ... गुरु का मतलब है जो सिद्धों से ऊपर है । कृष्ण-तत्त्व-वेत्ता । येइ कृष्ण-तत्त्व-वेत्ता सेई गुरु हया (चै च मध्य ८।१२८) कोई भी गुरु नहीं बन सकता जब तक वह कृष्ण-तत्त्व नहीं जानता हो । साधारण आदमी नहीं। योगि, कर्मी, ज्ञानी, वे गुरु नहीं बन सकते हैं । इसकी अाज्ञा नहीं है< क्योंकि अगर वह ज्ञानी है भी, उसे श्री कृष्ण को समझना है कई जन्मों के बाद; एक जन्म में नही, कई जन्मों में। अगर वह अड़ा रहते है परम सत्य को जानने के लिए ज्ञान से, या अटकलों से, फिर भी उसे कई, कई जन्म लेने होँगे । फिर एक दिन वह भाग्यशाली हो सकता है। अगर वह एक भक्त के साथ संपर्क में आता है तो उसके लिए श्री कृष्ण को समझना संभव हो सकता है।

यह भगवद गीता में कहा गया है : बहुनाम् जन्मनाम अंते ज्ञानवान माम् प्रपद्यन्ते (भ गी ७।१९) कौन प्रपद्यन्ते है? जो श्री कृष्ण को समर्पण करता है । जब तक कोई पूरी तरह से श्री कृष्ण को समझता नहीं है, क्यों वह आत्मसमर्पण करेगा ? श्री कृष्ण कहते हैं, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम् व्रज (भ गी १८।६६) बड़े, बड़े विद्वान वे, "यह बहुत ज्यादा है," वे कहते हैं। "यह बहुत ज्यादा है। श्री कृष्ण मांग रहे हैं, माम एकम् शरणम व्रज । यह बहुत ज्यादा है ।" यह बहुत ज्यादा नहीं है; यह वास्तविक स्थिति है। अगर वह वास्तव में ज्ञान में उन्नत है, ... बहुनाम जन्मनाम अंते (भ गी ७।१९) । यह एक जीवन में प्राप्य नहीं होगा । अगर वह ज्ञान पथ पर बना रहता है, निरपेक्ष सत्य के समझने के लिए, कई कई जन्मों के बाद,वह जब वह ज्ञान में वास्तव अाएगा, तब वह श्री कृष्ण को समर्पण करेगा । वासुदव: सर्वम इति स महात्मा सुदुर्लभ : (भ गी ७।१९) । उस तरह का महात्मा ... तुम इतने महात्मा मिलेंगे, केवल वस्त्र बदलकर - उस तरह का महात्मा नहीं । स महात्मा सुदुर्लभ: । ऐसे महात्मा का पता लगाना बहुत मुश्किल है, लेकिन एसे हैं। अगर कोई भाग्यशाली है, वह ऐसे महात्मा से मिल सकता है और उसका जीवन सफल हो जाता है। स महात्मा सुदुर्लभ: