HI/Prabhupada 0923 - इन चार स्तम्भों को तोड़ो । तो पापी जीवन की छत गिर जाएगी

Revision as of 14:29, 21 June 2015 by Rishab (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Hindi Pages - 207 Live Videos Category:Prabhupada 0923 - in all Languages Category:HI...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

730422 - Lecture SB 01.08.30 - Los Angeles

अगर श्री कृष्ण को साधारण लड़के के रूप में लिया जाता है, मनुष्य, श्री कृष्ण साधारण इंसान के रूप में उसके साथ व्यवहार करेंगे । अगर श्री कृष्ण देवत्व के भगवान के रूप में स्वीकार किया जाता है, भक्त भगवान के संग का आनंद लेगा । अौर अगर मायावादी जो बहुत ज्यादा शौकीन है ब्रह्मतेज के, वे स्रोत हैं । तो इसलिए वे सब कुछ हैं । ब्रह्मेति परमात्मेति भगवान इति शब्दयते (श्री ब १।२।११).

तो ऐसे महान भगवान के साथ ये लड़के खेल रहे हैं । कैसे, क्यों वे इतने भाग्यशाली बने, भगवान के साथ खेलने के लिए ?

इत्थम सताम् ब्रह्म सुखानभूत्या
दास्यम गतानाम् पर दैवतेन
मायाश्रितानाम् नर दारकेण
साकम विजह्र: कृत पुण्य पुन्जा:
(श्री भ १०।१२।११)

ये लडक़े, गोप लडक़े, अब वे श्री कृष्ण के साथ खेल रहे हैं, वे भी साधारण नहीं हैं । उन्हे सभी उच्चतम पूर्णता मिली है कि वे भगवान के साथ खेलने में सक्षम हुए हैं । कैसे उन्हे यह स्थिति प्राप्त हुई ? कृत-पुण्य-पुन्जा: कई, कई पवित्र कर्मों का जीवन । क्योंकि इन लडक़ो नें बहुत से, कई जीवन के लिए तपस्या, तपस्या की जीवन की उच्चतम पूर्णता को प्राप्त करने के लिए । अब उन्हे मौका मिला है वे व्यक्तिगत रूप से श्री कृष्ण के साथ खेलने का समान स्तर पर । वे नहीं जानते हैं कि श्री कृष्ण भगवान हैं । यही वृन्दावन-लीला है । गोप लड़के, वे केवल श्री कृष्ण से प्रेम करते हैं । उनका प्रेम अंतहीन है । हर कोई वृन्दावन में । जैसे यशोदा-माता या नंद महाराजा । वे श्री कृष्ण के साथ वात्सल्य स्नेह में हैं । पिता और माता श्री कृष्ण से प्रेम करते हैं, सखा श्री कृष्ण से प्रेम करते हैं, सखियॉ, वे श्री कृष्ण से प्रेम करती हैं, पेड़ श्री कृष्ण से प्रेम करते हैं, पानी प्रेम करता है श्री कृष्ण से, फूल, गाय, बछड़े, हर कोई श्री कृष्ण से प्रेम करता है । यही वृन्दावन है । तो अगर हम केवल श्री कृष्ण से प्रेम करना सीख लेते हैं, फिर हम तुरंत वृन्दावन के रूप में इस दुनिया को बना सकते हैं, तुरंत । यह एकमात्र केंद्रीय विचार है । कैसे श्री कृष्ण से प्रेम करें । प्रेम पुम-अर्थो महान ।

इसलिए चैतन्य महाप्रभु ने कहा कि धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष (श्री भ ४।८।४२, चै च अादि १।९०). लोग इन चार बातों के पीछे हैं। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष । चैतन्य महाप्रभु नें इसकी अवहेलना की । "यह जीवन की उपलब्धि नहीं है ।" बेशक, एक मनुष्य ... मानव जीवन शुरू नहीं होता है, जब तक कि धर्म की अवधारणा नहीं है, धर्म । लेकिन वर्तमान समय में, कलयुग में धर्म व्यावहारिक रूप से नहीं के बराबर है। इसलिए वैदिक गणना के अनुसार, वर्तमान मानव सभ्यता, वे मनुष्य भी नहीं हैं । क्योंकि कोई धर्म नहीं है । कोई धर्म नहीं है । कोई नैतिकता नहीं । कोई धर्मपरायण कर्म नहीं । परवाह नहीं है । हर कोई कुछ भी कर सकता है परवाह किए बिना । पूर्व में धार्मिकता, नैतिकता, अनैतिकता, अधार्मिक थी । लेकिन कलयुग की प्रगति के साथ, सब कुछ परास्त हो रहा है । यह कहा गया है कि कलयुग में अस्सी फीसदी लोगों, वे पापी होंगे, सब पापी । और हम व्यावहारिक रूप से देख सकते हैं । हमने पापी कर्मों की सूची दी है< चार सिद्धांत, अवैध यौन जीवन, नशा, मांसाहार और जुआ । ये पापी जीवन के चार स्तंभ हैं । इसलिए हम हमारे छात्रों से अनुरोध करते हैं कि सब से पहले इन चार स्तंभों को तोड़ो । तो पापी जीवन की छत गिर जाएगी । फिर हरे कृष्ण मंत्र का जप करो, तुम दिव्य स्थिति में स्थिर रहो । सरल विधि । क्योंकि हम भगवान का एहसास नहीं कर सकते हैं, अगर उसका जीवन पापी है । यह संभव नहीं है । इसलिए श्री कृष्ण कहते हैं: येषाम संत गतम् पापम (भ गी ७।२८) अंत गतम मतलब समाप्त ।