HI/Prabhupada 0952 - भगवद भावनामृत का लक्षण है कि वह सभी भौतिक क्रियाओ के विरुद्ध है

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740700 - Garden Conversation - New Vrindaban, USA

अतिथि: मुझे नहीं लगता है कि हमें चिंता करने की ज़रूरत है अापके शिष्यों के बारे में कि वे आपराधिक अदालतों में होंगे ? हम उस बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है । आपके बहुत अच्छे अनुयायी हैं ।

प्रभुपाद: हाँ ।

अतिथि: यह समुदाय, उत्कृष्ट समुदाय ।

प्रभुपाद: हाँ ।

अतिथि: अच्छे लोग । (तोड़)

प्रभुपाद: एक मजिस्ट्रेट या एक वकील पहले से ही ग्रेजुएट है । तो अगर वह एक वकील है, यह समझ लेना चाहिए कि उसने अपनी ग्रेजुएट की परीक्षा उत्तीर्ण की है । इसी तरह, अगर कोई वैषणव है तो यह समझना चाहिए कि वे पहले से ही ब्राह्मण है । यह स्पष्ट है ? क्यों हम अापको जनेऊ देते हैं ? इसका मतलब है ब्राह्मणवादी मानक है । जब तक कोई एक ब्राह्मण नहीं है, वह वैषणव नहीं बन सकता । जैसे जब तक कोई ग्रेजुएट नहीं है, वह वकील नहीं बन सकता है । तो एक वकील मतलब वह पहले से ही विश्वविद्यालय का ग्रेजुएट है, इसी प्रकार एक वैषणव वह पहले से ही एक ब्राह्मण है ।

भक्त: तो इसलिए सभी वैषणव, वे सभी, इसलिए, उनमे रजो गुण अौर तमो गुण का संदूषण नहीं होनी चाहिए । वे, उन्हे उस मंच पर होना चाहिए ...

प्रभुपाद: हाँ, वैष्णव मतलब, भक्ति मतलब, भक्ित: परेशानुभवो विरक्तिर अंयत्र स्यत (श्री भ ११।२।४२) । भक्ति मतलब भगवान भावनामृत का बोध । और भगवान भावनामृत का लक्षण है कि वह सभी भौतिक गतिविधियों के विरुद्ध है । उसे कोई दिलचस्पी नहीं है । भक्त: तो फिर ब्राह्मण को कोई दिलचस्पी नहीं है, मुझे माफ कीजिए, वैष्णव को कोई दिलचस्पी नहीं है बनने में एक ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, या शूद्र, लेकिन वह कुछ विशिष्ट कार्य लेता है...

प्रभुपाद: यह, वह सर्वोच्च स्थिति पर है वास्तव में । उसे कोई दिलचस्पी नहीं है । लेकिन जब तक वह परिपूर्ण नहीं होता है, उसे रुचि है । तो यह रूचि ताल मेल खानी चाहिए, या क्या कहा जाता है, ब्राह्मणवादी के अनुसार समायोजित, क्षत्रिय ... (तोड़)

... क्योंकि, उस समय, लोग इतने बेकार थे, कि वे समझ नहीं पाए कि भगवान क्या हैं । इसलिए उन्होंने तय किया कि, "सबसे पहले उन्हें निष्पाप होने दो । फिर एक दिन आएगा, वह भगवान क्या हैं यह समझेगा । प्रभु मसीह नें भी कहा, "तुम मारोगे नहीं " अब, उस समय लोग हत्यारे थे । अन्यथा क्यों वे कहते हैं: "तुम नहीं मारोगे ।" क्यों यह पहली आज्ञा ? क्योंकि हत्यारों से भरा । बहुत अच्छा समाज नहीं । अगर एक समाज में लगातार हत्या है, हिंसा, क्या यह बहुत अच्छा समाज है ? तो इसलिए सब से पहले उन्होंने हत्या न करने को कहा, सब से पहले उन्हें निष्पाप बनना है, फिर वे भगवान क्या हैं यह समझेंगे । यहाँ भगवद गीता की पुष्टि है : येषाम् त्व अंत गतम् पापम् (भ गी ७।२८) । जो पूरी तरह से निष्पाप हो गया है । तो भगवान भावनामृत है उस व्यक्ति के लिए जो निष्पाप है । तुम भगवान भावनाभावित नहीं हो सकते पापी होते हुए । यह धोखा है । एक भगवानभावित व्यक्ति मतलब उसमें कोई पाप नहीं है । वह पापी गतिविधियों के क्षेत्राधिकार में नहीं हो सकता है । यही भगवान भावनामृत है । तुम भगवान भावनाभावित नहीं हो सकते हो पापी होते हुए । यह संभव नहीं है । तो हर कोई समझ सकता है कि क्या मैं वास्तव में भगवान भावनाभावित हूं या नहीं अपनी ही गतिविधियों को पहचानने से । बाहरी प्रमाण पत्र पूछने की कोई जरूरत नहीं है । क्या मैं इन सिद्धांतों पर तय हूँ : कोई अवैध सेक्स नहीं, कोई मांस नहीं खाना, कोई जुआ नहीं, कोई नशा नहीं ... अगर कोई ईमानदार है, वह खुद अांक सकता है कि क्या मैं वास्तव में उस मंच पर हूँ या नहीं । जैसे अगर तुम भूखे हो, अगर तुमने कुछ खाया है तो तुम संतोष, ताकत महसूस कर सकते हो । बाहरी प्रमाणपत्र की कोई जरूरत नहीं है । इसी तरह, भगवान भावनामृत मतलब क्या तुम सब पापी गतिविधियों से मुक्त हो या नहीं । तो फिर तुम बनोगे । एक भगवान भावनाभावित व्यक्ति किसी भी पापी गतिविधि करने के लिए इच्छुक नहीं होगा ।