HI/Prabhupada 0954 - जब हम इन नीच गुणों पर विजय पाते हैं, तब हम सुखी होते हैं

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750623 - Conversation - Los Angeles

बहुलाश्व: श्रील प्रभुपाद, हमारी भौतिक दूषित हालत में, जब हम मूर्खता या पागलपन में कार्य करते हैं, तो हम उसे तमस, या अज्ञान कहते हैं । लेकिन आध्यात्मिक जगत में जब जीव अपनी शुद्ध चेतना की अवस्था में रहता है, क्या कार्य करता है ... क्या कुछ उस पर काम करता है कि वह भ्रमित हो जाता है उस स्थित में भी ?

प्रभुपाद: हाँ । जैसे जय-विजय । उन्होंने अपराध किया । उन्होंने चार कुमारों को प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी । यह उनकी गलती थी । और कुमार बहुत क्रोधित हुए । तब उन्होंने शाप किया कि "तुम इस जगह में रहने के लायक नहीं हो ।" तो कभी-कभी हम गलती करते हैं । वह भी स्वतंत्रता का दुरुपयोग है । या हम निम्न हैं तो नीचे गिरने के अासार ज्य़ादा हैं । जैसे आग का छोटा सा टुकड़ा, हालांकि यह आग है, उसके बुझने की संभावना है । बड़ी आग बुझाती नहीं है । तो श्री कृष्ण बड़ी आग है, और हम अंशस्वरूप हैं, चिंगारी, बहुत छोटे । तो आग के भीतर चिंगारी होती है, "फट फट !" बहुत सारी होती है। लेकिन अगर चिंगारी नीचे गिर जाती है, तो यह बुझा जाती है । ऐसा ही है। गिरने का मतलब है, भौतिक दुनिया, तीन अलग अलग ग्रेड हैं: तमो-गुण, रजो-गुण और सत्व-गुण । अगर... जब चिंगारी नीचे गिरती है । अगर यह सूखी घास पर गिरती है, तो घास जल उठती है । तो उग्र गुणवत्ता अभी भी है, हालांकि यह नीचे गिर गया है । सूखी घास के गुण के कारण, यह फिर से एक और आग बन जाती है, और उग्र गुणवत्ता बनी रहती है । यही सत्व-गुण है । अौर अगर यह चिंगारी हरी घास पर गिरती है, तो यह बुझा जाती है । और सूखी घास, अगर, जब हरी घास सूख जाती है, तो फिर प्रज्वलन होने की संभावना है । लेकिन अगर चिंगारी पानी में गिर जाती है, तो बहुत मुश्किल है । इसी तरह, अात्मा जब भौतिक संसार में आता है, तीन गुण हैं । तो अगर वह तमो-गुण के संपर्क में अाता है तो वह सबसे घृणित हालत में है । अगर यह रजो-गुण के साथ गिरता है, तो थोड़ी गतिविधि होती है । जैसे वे काम कर रहे हैं । अौर अगर वह सत्व-गुण में गिरता है, तो वह कम से कम ज्ञान में खुद को रखता है कि "मैं आग हूँ ।" यह सुस्त भौतिक्ता मेरी जगह नहीं है । "

तो इसलिए हमें उसे लाना होगा फिर से सत्व-गुण में, ब्राह्मणवादी योग्यता, ताकि वहi समझ सके अहम् ब्रह्मास्मि, "मैं आत्मा हूं । मैं यह पदार्थ नहीं हूँ ।" फिर उसकी आध्यात्मिक गतिविधि शुरू होती है । इसलिए हम उसे सत्व-गुण के मंच तक लाने की कोशिश कर रहे हैं, मलतब रजो-गुण, तमो-गुण को छोडऩा । कोई मांसाहार नहीं, कोई अवैध सेक्स नहीं, कोई नशा नहीं, कोई जुआ नहीं । तो कई "नहीं" हैं - उसे भौतिक गुणों के प्रभाव से बचाने के लिए । पीर, अगर वह सत्व-गुण में स्थित है, तो वह मंच पर रहता है ... जब वह सत्व-गुण में रहता है, फिर राजस-तम:, अन्य नीच गुण, वे उसे परेशान नहीं कर सकती हैं । नीच गुण, नीच गुण का अाधार हैं ये : अवैध सेक्स, मांसाहार, नशा, जुआ । तो तदा रजस तमो भावा: काम लोभादयष् च ये (श्री भ १।२।१९) । जब कोई कम से कम इन दो नीच गुणों से मुक्त है ... नीच गुण मतलब काम, कामुक इच्छाऍ, और लोभ । भौतिक जगत में, आम तौर पर वे इन नीच गुणों के तहत होते हैं, मतलब हमेशा कामुकइच्छाओं से भरे और असंतुष्ट, लालची । तो जब हम इन नीच गुणों पर विजय हो जाते हैं, तो हम सुखी हो जाते हैं । तदा रजस तमो भावा: काम लोभादयष् च ये चेत एतैर अनाविद्धम.... (श्री भ १।२।१९) । जब चेतना इन नीच गुणों से प्रभावित नहीं होती है, चेत एतैर अनाविद्धम. ... स्थित: सत्तवे प्रसीदति । सत्व-गुण के मंच पर स्थित होकर, वह सुख महसूस करता है । यही आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत है । जब.....जब तक मन कामुक इच्छाओं और लोभ से परेशान है, आध्यात्मिक जीवन का कोई सवाल ही नहीं है । इसलिए, पहला काम है मन को नियंत्रित करना, ताकि यह प्रभावित न हो सके नीच गुणों से, कामुक इच्छाऍ और लोभ से । हमने पेरिस में देखा है बूढ़ा आदमी, पचहत्तर साल का, वह क्लब में जा रहा है क्योंकि कामुक इच्छा है । वह क्लब में प्रवेश करने के लिए पचास डॉलर का भुगतान करता है, और फिर वह अन्य बातों के लिए आगे भुगतान करता है । तो पचहत्तर साल का हो कर भी, कामुक इच्छा है ।