NE/Prabhupada 0752 - कृष्णलाई बिछोडमा अझ बढी अनुभव गर्न सकिन्छ

Revision as of 21:23, 29 January 2021 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0023: VideoLocalizer - changed YouTube player to show hard-coded subtitles version)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Lecture on SB 1.8.39 -- Los Angeles, May 1, 1973

हमे हमेशा जप मै लगे हुए रहना चाहिए: हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे / हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे. ताकि कृष्ण हमें बचा सके जानबूझकर हम कोई भी पापी गतिविधिया नहीं कर सकते. यही एक बात है. अनजाने में भी हम ऐसा नहीं कर सकते हैं. वरना हम उत्तरदायी हो जाऍगे. इसलिए अगर तुम हमेशा कृष्ण भक्ती में रहते हो, अगर कृष्ण को अपने मन के भीतर रखते हो, तो.... जिस प्रकार से जब सुरज रेहता हे तब अन्ध्कार नहि रेहता. इसी तरह, अगर आप कृष्ण सूर्य रखोगे, कृष्ण सूरज ... वोह हमारा आदर्श वाक्य हे बैक तू ग़ोड़हेड़ मे: कृष्ण सुर्य समान , माया अन्धकार. कृष्ण, बस शानदार धूप की तरह है और माया, अज्ञान, सिर्फ अंधकार की तरह है. पर जब भी , जभि भी और जहा भी सुरज होता हेै, वहा अन्धेरा नहि हो सक्ता. इसि तरह से, तुम भी कृष्ण को अप्नी चेत्ना मे रखो, तोह अग्यान नही होगा, अन्धकार नही होगा. आप कृष्ण की चमकदार धूप में बहुत स्वतंत्र रूप से चलोगे. कृष्ण को अनुपस्थित मत बनाओ, येहि कुन्ति देवि कि प्रार्थना है. " मेरे प्यारे कृष्ण, तुम द्वारका जा रहे हो"... यह एक उदाहरण है. वे नहीं जा रहे हैं. श्री कृष्ण पांडवों से दूर नहीं जा रहे है. व्रिन्दावन कि तरह्. व्रिन्दावन मे , जब कृष्ण व्रिन्दावन से मथुरा के लिए... इसलिए शास्त्र में यह कहा जाता है: व्रिन्दावन परितयग्य पदम एकम गच्छति ना, कृष्ण व्रिन्दावन से एक कदम भी बाहर नहि जाते. वह नहि जाते. वह इत्ने आसक्त है व्रिन्दवन से. और हम देख्ते है कि वोह व्रिन्दावन छोध्कर मथुरा जा रहे है. तोह केैसे वो इत्ने दूर चले गये ? और कई वर्शो के लिये वापस नहि आये. नहि. कृष्ण असल मे विन्दावन छोद्के नहि गये थे. क्युकि जब कृष्ण व्रिन्दावन छोद के गये सब निवासि और गोपिया. केवल कृष्ण के बारे मे सोछ्कर रो रहे थे. बस इत्ना हि. यही उन्का व्यवसाय था. मा यशोदा , नन्द महाराज्, राधारानी, सब गोपिया, गाय और बछ्ड़ै. और सब ग्वाले, उन्का व्यवसाय बस कृष्ण के बारे मे सोछ्कर रोना था. अभाव, जुदाई. से कृष्ण को महसूस किया जा सकता है ... कृष्ण जुदाई में अधिक तीव्रता से मौजूद हो सक्ते है. विप्रलम्भ मे कृष्ण से प्यार् करने के लिए: कि चैतन्य महाप्रभु का शिक्षण है. गोविन्द विरहेना मे : बस जुदाई में चैतन्य महाप्रभु की तरह. सुन्यायितम जगत सर्वम गोविंदा- विरहेना मे वोह सोछ रहे थे , "सब कुछ कृष्ण के बिना, गोविंदा के बिना खाली है." सोच रहा था कि इतना सब कुछ खाली है, लेकिन कृष्ण चेतना है. कृष्ण चेतना है. वह उच्चतम सम्पुर्नता है ... सब कुछ कुछ भी नहीं है जब हम देखेंगे, बस कृष्ण चेतना परिसंपत्ति है ... यही कारण है कि सबसे ज्यादा है; कि गोपियों है. इसलिए गोपियों इत्ने ऊन्चे पथ पर है. एक भी पल के लिए वे कृष्ण को भुल नहि सक्ते . एक भी पल के लिए. कृष्ण, उनकी गायों और बछड़ों के साथ जंगल में जा रहे थे. और घर पर गोपियों, वे मन में परेशान थे, "ओह, कृष्ण. नंगे पैर चल रहे है तो कई पत्थर और खील् भी शामिल हैं. वह कृष्ण के कोमल्, कमल जैसे पैरो को चूभ रहे है. इत्ने नरम कि, हम सोचते ह्ऐ कि हमरारे स्तन अटल है, जब उन्के कमल जैसे पैर उस्पे होते है. फ़िर भि वोह चल रहे है." वोह इस सोछ मै डूबे हुये रेह्ते है और रोते है. इसलिए वे शाम को घर वापस कृष्ण को देखने के लिए इतनी उत्सुक रेह्ते है. कि वे छत पर, रास्ते में खड़े रेह्ते है. "अब कृष्ण वापस अपने साथ आ रहे है ..." यह कृष्ण चेतना है. यह है ... जो भक्त कृष्ण के सोच मे लीन है, उन्से कृष्ण अनुपस्थित नही हो सक्ते. यह कृष्ण चेतना की प्रक्रिया है. तो यहाँ कुन्तिदेवि बहुत ज्यादा चिंतित है , कि कृष्ण अनुपस्थित हो जयेंगे. पर प्रभाव होगा, जब कृष्ण शारीरिक रूप से अनुपस्थित हो जयेंगे. वोह और ज़्यादा , मेरे केह्ने क मत्लब है , अधिक उपस्थित हो जायेंगे भक्त के मन मे तो चैतन्य महाप्रभु के शिक्षण कि है विप्रलम्भ सेवा. उनका व्यावहारिक जीवन से.वोह कृष्ण को खोज रहे है . गोविंदा-विरहेना मे शुन्यायितम जगत सर्वम गोविंदा-विरहेना मे. कोन्सा श्लोक है ? चक्शुशा प्राव्रीशायितम्, चक्शुशा प्राव्रीशायितम शुन्यायितम जगत सर्वम गोविन्द विरहेना मे. आखो से झम झम वर्शा गिर्ति है , वैसे रो रहे थे. और वह कृष्ण, जुदाई के अभाव में सब कुछ खाली महसूस कर रहे है . विप्रलम्भा. तो सम्भोघा और विप्रलम्भा. कृष्ण बैठक के दो चरण हैं. सम्भोग का मतलब है वह व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना . इस्से सम्भोग कहा जाता है. व्यक्तिगत रूप से बात करे तो, व्यक्तिगत रूप से मिल्ना, व्यक्तिगत रूप से गले लगाना, को सम्भोग कहा जाता है. और दूसरा, विप्रलम्भ​ है. दो तरह से एक भक्त लाभान्वित हो सक्ते है.