Category:HI-Quotes - in USA, Philadelphia
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- HI/Prabhupada 0018 - गुरु के शब्द सर्वस्व
- HI/Prabhupada 0138 - ईश्वर बहुत दयालु है। तुम जो इच्छा करते हो, वह पूरी करेंगे
- HI/Prabhupada 0782 - जप करना छोड़ना नहीं । फिर कृष्ण तुम्हारी रक्षा करेंगे
- HI/Prabhupada 1001 - कृष्ण भावनामृत हर किसी के हृदय में सुषुप्त है
- HI/Prabhupada 1002 - यदि मैं भगवान से किसी लाभ के लिये प्रेम करूँ, तो वह व्यापार है; वो प्रेम नहीं है
- HI/Prabhupada 1003 - व्यक्ति भगवान के पास गया है, भगवान आध्यात्मिक है, लेकिन वो भौतिक लाभ मांग रहा है
- HI/Prabhupada 1004 - बिल्लियों और कुत्तों की तरह काम करते रहना और मर जाना । ये बुद्धिमता नहीं है
- HI/Prabhupada 1005 - कृष्ण भावनामृत के बिना, आपकी केवल बकवास इच्छाए होंगीं
- HI/Prabhupada 1006 - हम जाति व्यवस्था प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 1007 - जहाँ तक कृष्ण भावनामृत का संबंध है, हम समान रूप से वितरित करते हैं
- HI/Prabhupada 1008 - मेरे गुरु महाराज ने मुझे आदेश दिया 'जाओ और पश्चिमी देशों में इस पंथ का प्रचार करो'
- HI/Prabhupada 1009 - अगर तुम गुरु को भगवान की तरह सम्मान देते हो, तो उन्हे भगवानकी तरह सुविधा भी देनी चाहिए
- HI/Prabhupada 1010 - तुम लकड़ी, पत्थर देख सकते हो । तुम आत्मा नहीं देख सकते
- HI/Prabhupada 1011 - धर्म क्या है यह तुम्हे भगवान से सीखना होगा । तुम अपने मन से धर्म का निर्माण नहीं कर सकते
- HI/Prabhupada 1046 - तय करो कि क्या एेसा शरीर पाना है जो कृष्ण के साथ नृत्य करने में, बात करने में सक्षम है
- HI/Prabhupada 1047 - उसने कुछ मिथ्या कर्तव्य को अपनाया है और उसके लिए कडी मेहनत कर रहा है, इसलिए वह एक गधा है
- HI/Prabhupada 1048 - तुम कभी सुखी नहीं रहोगे - पूर्ण शिक्षा - जब तक तुम भगवद धाम वापस नहीं जाते हो
- HI/Prabhupada 1049 - गुरु भगवान का विश्वसनीय सेवक । यही गुरु है
- HI/Prabhupada 1050 - 'तुम ऐसा करो और मुझे पैसे दो और तुम सुखी हो जाओगे' - वह गुरु नहीं है
- HI/Prabhupada 1051 - मैने गुरु के शब्दों को अपनाया, जीवन के एकमात्र लक्ष्य के रूप में