HI/490327 - पूज्यपाद केशव महाराज को लिखित पत्र
27 मार्च, 1949 कलकत्ता
पूज्यपाद केशव महाराज,
कृपया मेरे दण्डवत् प्रणाम स्वीकार करें।
कल आपके द्वारा भेजी श्री गौड़ीय पत्रिका प्राप्त कर मैं अत्यन्त प्रसन्न हो गया। हालांकि पत्रिका मध्यमाकार है, किन्तु इसकी प्रस्तुती बहुत सुन्दर है और काग़ज़ एवं छपाई भी अच्छे हैं। छपाई में बहुत कम त्रुटियाँ देखने को मिलती हैं, जो कि न के बराबर हैं और नज़रअंदाज़ की जा सकती हैं। इससे पता चलता है कि पत्रिकका का पर्यवेक्षण बहुत अच्छे ढंग से किया गया है। आपकी विस्तृत एवं व्यापक प्रचार चेष्टाएं सदा मेरे ह्रदय को लुभा आकर्षित करती हैं।
आपको सदा मेरा स्मरण है, इससे आपके चरित्र की महानता का बोध होता है, जिसके लिए आप अपने जीवन के पिछले आश्रम में, मठ के सदस्य बनने से पहले भी सुप्रसिद्ध थे। किन्तु मैं अभागा आपको कोई भी सेवा अर्पित कर पाने में अक्षम हूँ। इसलिए आप कृपया अपनी उदारता से मेरे अपराध एवं त्रुटियाँ क्षमा करें। मेरी बैक टू गॉडहेड पत्रिका की पहली छपाई के समय आपने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया था। बहुत सारी गतिविधियों में व्यस्त रहते हुए भी, आपने मेरे दीन घर को अपनी चरण रज से धन्य किया।
अपनी श्री गौड़ीय पत्रिका के पहले ही लेख में आपने हमें श्रीपाद् नरहरी दा का स्मरण करने को प्रेरित किया। इसके लिए हम आपके सर्वतोभावेन आभारी हो गए। श्रीपाद् नरहरी दा का स्नेहपूर्ण एवं मधुर व्यवहार, सदैव मेरे ह्रदय में प्रकाशमान रहेगा। उनसे विरह की पीड़ा, किसी भी प्रकार से श्रील प्रभुपाद से विरह की पीड़ा से कम नहीं है।
श्री गौड़ीय पत्रिका में लेख बिलकुल ठीक क्रम से लगाए गए हैं। आपने श्रील बलदेव विद्याभूषण पर एक लेख को पत्रिका के प्रारंभ में रखकर उत्कृष्ट कार्य किया है। पत्रिका में, एक के बाद एक पूर्ववर्ती आचार्यों के जीवन चरित्र प्रकाशित करने से हमारे सम्प्रदाय को बहुत लाभ होगा।
मैंने एक प्रस्ताव देखा कि, आपकी पत्रिका बंगाली के अलावा अन्य भाषाओं में भी लेख प्रस्तुत करेगी। श्रील प्रभुपाद के आदेशानुसार मैंने अंग्रेज़ी भाषा में विचार-विमर्श प्रस्तुत करने के लिए बैक टू गॉडहेड प्रारंभ करी थी।
जब आप अपनी पत्रिका में अंग्रज़ी लेख छापें, तो कृपया मेरी थोड़ी सेवा स्वीकार कर मुझे अनुग्रहीत करें। मैंने अंग्रेज़ी में अनेकों लेख व निबन्ध लिखे हैं, जिन्हें मैं आपकी सुविधानुसार आपको भेज सकता हूँ।
श्री अभय चरण डे 6 नं. सीताकांत बैनरजी लेन पोस्ट ऑफिस हाटखोला कलकत्ता 27 मार्च 1949 (श्री गौड़ीय पत्रिका संख्या 1.2 से अनूदित)
- नरहरी दा श्रील नरहरी सेवाविग्रह प्रभु का प्रेमपूर्ण नाम है। बांग्ला में दा का अर्थ होता है बड़ा भाई।
श्री श्रीमद् नारायण महाराज के अनुयायियों द्वारा प्रकाशित, रेज़ ऑफ दि हार्मोनिस्ट पत्रिका के 2001 के ग्रीष्मकाल के संस्करण में पुनर्मुद्रित अनुवाद से सम्पादित।
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