HI/510622 - आर. प्रकाश को लिखित पत्र, इलाहाबाद
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[पूर्ण हस्तलिखित]
श्री आर. प्रकाश एम.ए.
सामाजिक उत्थान और निषेध विभाग के प्रभारी अधिकारी
विभाग एन.पी. उत्पाद शुल्क,
इलाहाबाद।
जून २२, १९५१ को इलाहाबाद में दिनांकित
श्रीमान,
आपके माहात्म्य के साथ अपने व्यक्तिगत साक्षात्कार के संदर्भ में, मैं खुद को कृष्ण कृपा मूर्ति श्री श्रीमद भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी, नदिया स्थित श्रीधाम मायापुर के महाराज, जो श्री चैतन्य महाप्रभु का पवित्र जन्मस्थल है, जो संकीर्तन आंदोलन के दिव्य उद्घाटनकर्ता हैं, उनके एक विनम्र शिष्य के रूप में अपना परिचय देने की प्रार्थना करता हूं।
शिष्य परम्परा की आध्यात्मिक पंक्ति में श्री ब्रह्माजी, जो सबसे पहले वेदों के उत्तम शिष्य थे, उनसे लेकर मेरे आध्यात्मिक गुरु तक उपर बताए अनुसार, वैदिक संस्कृति का उद्देश्य निरपेक्ष सत्य के साथ जीवों के शाश्वत संबंध को फिर से स्थापित करना है, जो निरपेक्ष सत्य के अंश हैं।
उस सनातन संबंध को भूलना माया या भ्रम कहा जाता है। भगवान की यह भ्रामक शक्ति सांसारिक सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण के नाम पर प्रकृति के तीन गुणों के तहत संचलित है। संपूर्ण भौतिक संसार भगवान की बाहरी भ्रामक ऊर्जा का निर्माण है और जो जीव भगवान के साथ सनातन संबंध को भूल गए हैं, वे माया में फसकर प्रकृति के तौर-तरीकों के तहत सशर्त जीवन गुजार रहे हैं।
जीवन की अड़सठ लाख किस्मों या प्रजातियों में से मनुष्य की केवल चार लाख प्रजातियाँ हैं। मनुष्य की इन प्रजातियों में से, जो प्रकृति के तीन गुणों में से सत्व गुण को प्राप्त करते हैं, वे शुद्ध आत्म को भी अनुभव कर सकते हैं, जो भौतिक दुनिया का उत्पाद नहीं है।
वैदिक संस्कृति आत्मज्ञान के दर्जे के संदर्भ में सामाजिक उत्थान के मानक को निर्धारित करती है और सामाजिक विभाजन का अनुमान सतोगुण (बुद्धिमत्ता और उच्च शिक्षा), रजोगुण (दुनिया भर में इसे प्रभुत्व देने के लिए मार्शल भावना) रजोगुण-सह-तमोगुण (उत्पादकता की भावना) और तमोगुण (भौतिक प्रकृति के नियमों द्वारा नियंत्रित होने की निष्क्रिय स्वीकृति की भावना) के संदर्भ में था।
वैदिक शास्त्रों के अनुसार वर्तमान युग को कलियुग कहा जाता है और लगभग सभी मनुष्य अब तमोगुण के मानक से अवक्रमित हैं और इसलिए लोग सबसे भयानक तरीके से भौतिक अस्तित्व के तिगुना दुखों के कष्ट के अधीन हैं।
मानव की ऐसी कठोर स्थिति में रामबाण है "कृष्ण संकीर्तन" जिसे सभी शास्त्रों में सुझाया गया है। इस प्रक्रिया से, प्रभु के साथ अपने शाश्वत संबंध के मानव की विस्मृति पूरी तरह से दूर हो जाती है।
पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण के अवतार श्री चैतन्यमहाप्रभु ने इस संकीर्तन आंदोलन का उद्घाटन किया और उन्होंने सभी श्रेणी के जीवो के बीच, यहाँ तक की पशुओं के बीच भी पूर्ण सत्य से प्रेम की गतिविधियों और पारलौकिक संबंध को पुनः स्थापित किया। ठाकुर हरिदास जो एक मुसलमान परिवार में प्रकट हुए थे, उनके सिद्धांत सहयोगियों में से एक थे और उनके पारमार्थिक आंदोलन ने सबसे प्रतापी विद्वान ब्राह्मणों से लेकर यवना और चंडाल के परिवार में जन्म लिये सभी प्रकार के लोग को गले लगाया।
[पाठ अनुपस्थित] उनके आंदोलन की ख़ासियत यह थी कि पतित चंडाल अपने दीक्षा के बाद चंडाल नहीं रहता, बल्की उसका वैष्णव के मानक तक उठान किया गया था, जो ब्राह्मण की स्थिति और जीवन के अन्य श्रेणियों से बहुत ऊपर है। [पाठ अनुपस्थित]
यह सामाजिक उत्थान की प्रक्रिया है। और हम श्री चैतन्य महाप्रभु और उनके सहयोगियों के पद चिन्हों का अनुसरण करते हैं जो जन्म और व्यवसाय की परवाह किए बिना हर एक की सामाजिक स्थिति को बढ़ाने के लिए पर्याप्त है।
इस तरह की प्रक्रिया सभी प्रकार की सांसारिक अटकलों से न केवल श्रेष्ठ है, बल्कि बहुत सरल और निर्दोष है। यह सिद्धांत बीमारी को ठीक करने का एक प्रकार है जो न केवल उचित दवा का प्रबंधन करता है, बल्कि साथ ही उचित आहार की आपूर्ति भी करता है।
दवा का प्रबन्धन यानी कर्ण तंत्र से विन्रम "हरि संकीर्तन" का आह्वाहन जिसका अर्थ है
- (१) पूर्णपुरुषोत्तम और उनके अतीत की महिमा को गाने के लिए “भजन”।
- (२) भगवद-गीता, भागवत, रामायण की शिक्षाएँ, चैतन्य महाप्रभु, तुलसीदास आदि जैसे संतों के जीवन का प्रचार।
- (३) फलदायी कार्य या अनुभवजन्य दर्शन की सूखी अटकलों के विरुद्ध भक्ति जीवन के दर्शन को स्थापित करना और सभी तार्किक हथियारों के साथ विपरीत तत्वों को समाप्त करना। यानी "हरि संकीर्तन" की दवा को तीन तरीको द्वारा प्रशासित किया जाता है, अर्थात (क) मधुर संगीत (ख) प्रेस के माध्यम से प्रचार द्वारा और (ग) प्लैटफ़ार्म पर प्रचार द्वारा।
पारलौकिक उपचार के आहार भाग में प्रसादम का वितरण होता है। [पाठ अनुपस्थित] अर्थात् सभी सभाओं में श्रोताओं को केवल धार्मिक भजन संगीत की मधुर संगीतमय प्रस्तुति या आस्तिक प्रवचनों द्वारा ही नहीं, बल्कि उन्हें भगवान को अर्पित की जाने वाली खाद्य सामग्री के कुछ प्रकार के अवशेष दिए जाने चाहिए, जैसा कि भगवद-गीता में सुझाया गया है।
चिकित्सा उपचार की इस प्रक्रिया से [पाठ अनुपस्थित] लोग धीरे-धीरे निम्न चार प्रकार के पापों के व्यसनों से मुक्त हो जाते हैं-
- (१) महिलाओं के साथ अवैध संबंध।
- (२) पशु हत्या की आदत।
- (३) नशा करने की आदत।
- (४) जुए का लालच।
कलि-युग के प्रभाव के कारण बद्ध मनुष्यों को उपरोक्त चार विशेष [पाठ अनुपस्थित] प्रवृत्ति में लीन किया जाता है और हरि संकीर्तन के सर्वोत्तम उपचार द्वारा मानव के हृदय का दर्पण उपरोक्त सभी धूल मिट्टी से साफ हो जाता है। जैसे ही धूल हटा दी जाती है, मनुष्य अपने वास्तविक स्व की स्पष्ट अवधारणा की कल्पना करने में सक्षम हो जाता है और इस प्रकार वह शरीर और मन से संबंधित दुखों, अन्य जीवों से संबंधित दुखों और प्रकृति के अग्रदूतों से संबंधित दुखों से मुक्त हो जाता है।
भगवद-गीता के अनुयायियों के रूप में, हम दृढ़ता से मानते हैं कि प्रकृति का आक्रमण जो लगातार मानव समाज पर प्रहार किए जा रहा है, वह पूर्णपुरुषोत्तम के कानूनों द्वारा एक प्रकार की पुलिस कार्रवाई है और जैसे ही हम सर्वशक्तिमान की दिव्य इच्छा के अनुसार आत्मसमर्पण करते हैं, हम केवल महात्मा और संत नहीं बनते हैं, साथ ही प्रकृति के हमले भी तुरंत समाप्त हो जाते हैं। यही भगवद-गीता का उपदेश है और यही भगवान चैतन्य महाप्रभु का प्रदर्शनकारी उपदेश है। वास्तविक जीवन की शुरुआत तब होती है जब हम माया के चंगुल से मुक्त हो जाते हैं जो भौतिकवादी जीवन की भयावह अवधारणा के अलावा कुछ नहीं है। श्री चैतन्य महाप्रभु ने इसका चेहरा आध्यात्मिक रूप से बदल दिया।
भगवद-गीता में कहा गया है कि आम लोग समाज के प्रमुख पुरुषों का अनुसरण करता है। लोकतांत्रिक युग के वर्तमान समय में राज्य की सरकार समाज के प्रमुख पुरुषों द्वारा संचालित की जाती है। यह एक अच्छा संकेत है कि सरकार ने सामाजिक उत्थान के इस कार्य को सही समय पर सही उपाय के रूप में लिया है। और योजना को एक सही दिशा देने के लिए सरकार भगवद गीता जैसे शास्त्रों से प्रामाणिक संकेत ले सकती है।
यह एक आम कहावत है कि उदाहरण उपदेशों से बेहतर है। सही दिशा में अग्रणी पुरुषों का उदाहरण बहुत जल्द आम लोगों द्वारा अनुगामी होगा।
महात्मा गांधी ने अपने जीवन के अंत में मिसाल कायम की और उनके घोर राजनीतिक व्यवसाय के बीच भी उनकी दैनिक प्रार्थना सभाओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए। भगवद गीता में भी यही है। युद्ध के सबसे कठिन क्षण में अर्जुन ने भगवद गीता की शिक्षाओं को सीखा और उन्होंने लड़ाई के तौर तरीके पर अपनी व्यक्तिगत राय बदल दी।
इसलिए भौतिक लाभ के लिए मानवीय सोच की वर्तमान प्रक्रिया को भगवद-गीता के एक संगठित प्रचार कार्य द्वारा बदलना होगा, जैसा कि भगवान चैतन्य ने न केवल भारत के लोगों के लिए बल्कि दुनिया के सभी लोगों के लिए भी किया है। भगवान चैतन्य के उपदेश का तरीका [पाठ अनुपस्थित] है लेकिन भगवद-गीता के तरीके का एक व्यावहारिक प्रदर्शन है। जब तक हम उपर्युक्त के रूप में भगवान चैतन्य के व्यावहारिक तरीके नहीं अपनाते हैं, तब तक आरामकुर्सी में स्थित सूखी दार्शनिकों द्वारा लगाई अटकलें भगवद गीता की शिक्षाओं को लागू करने में सक्षम नहीं होंगी। [पाठ अनुपस्थित]
मुझे लगता है कि तुरंत भक्तों के एक संगठित निकाय को सभी प्रकार के लोगों को गले लगाने के लिए उपयुक्त ज्ञापन और लेखों की समिति के साथ पंजीकृत किया जा सकता है और फिर वैयक्तिक सदस्यों को भगवान के खातिर अपनी आय के एक हिस्से का त्याग करना होगा। उन्हें न केवल भगवान के अभिकर्ताओं से जीवन की सुविधाओं को स्वीकार करना चाहिए, बल्कि अब उन्हें कुछ व्यक्तिगत बलिदान द्वारा उधार को चुकाना होगा। यह भगवद गीता में कहा गया "यज्ञ" का तरीका है।
यदि आपका विभाग मुझे उचित प्रोत्साहन देगा, तो मैं इस पारगमन आंदोलन को श्रमिक के एक समूह के साथ एक __ __ दे सकता हूं, जो इस कार्य के लिए जीवन समर्पित हैं। हम व्यक्तिगत प्रतिफल के रूप में कुछ भी नहीं चाहते हैं। क्योंकि जो भौतिक लाभ के लिए काम करता है वह इस पारलौकिक लेन-देन को नहीं लिख सकता। यही इस आंदोलन का रहस्य है। प्रत्येक सदस्य और कार्यकर्ता को भगवान के लिए बलिदान करना सीखना चाहिए जो इस आंदोलन का सिद्धांत है।
सरकार केवल इस आंदोलन का __ देने के लिए केवल प्रारंभिक खर्चों को पूरा करेगी और धीरे-धीरे यह सार्वजनिक सहानुभूतिदाताओं द्वारा समर्थित होगी। मैंने इस संबंध में कहा कि श्री एम.एस. ___ ___ बिहार के राज्यपाल और इस विषय पर साक्षात्कार के साथ थे। मेरे लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद की भी शुभकामनाएं हैं। लेकिन मैं वित्तीय कठिनाइयों के कारण शुरुआत नहीं दे सका, मैं इसे शुरू करने के लिए १०,०००/- रुपये चाहता हूं।
संकीर्तन आंदोलन द्वारा चिकित्सा उपचार के संदर्भ में कार्य का सामान्य कार्यक्रम उपर्युक्त होगा। मेरे समूह में नि: स्वार्थ कार्यकर्ता ब्रह्मचारी और संन्यासी का एक जत्था है, जिसके साथ मैं इसे शुरू कर सकता हूं, लेकिन छात्रों और निस्वार्थ युवकों को काम आगे बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी होगी।
मुझे पूरा विश्वास है कि काम शुरू करते ही बहुत से आत्म त्यागी नौजवान हमसे जुड़ेंगे। हमें इस योजना को गाँव से गाँव और शहर से शहर तक लागू करना होगा जिसे हमें एक क्रमिक प्रक्रिया द्वारा विकसित करना होगा।
पूरे भारत में लाखों मंदिर हैं और इन केंद्रों का उपयोग स्थानीय उपदेश केंद्रों के रूप में किया जाता है। सभी वर्गों के लोगों से सदस्यों को भर्ती किया जाना है और मुझे यकीन है कि जब वास्तविक काम शुरू होगा तो आर्थिक मदद में कोई कमी नहीं होगी। इस संकीर्तन आंदोलन के आयोजन के लिए हम पूरे देश में गांधी स्मारक केंद्रों का उपयोग कर सकते हैं और अगर हम इस काम को सही तरीके से करते हैं तो सरकार इस आंदोलन की मदद के लिए गांधी स्मारक कोष की सिफारिश कर सकती है।
मैं पहले से ही एक अमेरिकी फेडरेशन के साथ बातचीत कर रहा हूं और अगर उचित काम किया जाता है, तो ऐसे विदेशी महासंघ भी हमारी मदद करेंगे। बात यह है कि आजकल कोई भी किसी भी व्यावहारिक काम के लिए अंधा नहीं है। इसलिए जैसे ही लोग इसे एक व्यावहारिक उपयोगिता में पाएंगे, निश्चित रूप से वे आएंगे और पुरुषों और धन के साथ जुड़ेंगे।
मेरी इच्छा है कि आप अपनी सरकार से इस योजना की सिफारिश करें और संस्था के अंतर्नियम और लेखों के अनुसार बनाए गए बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को वित्तीय मदद दी जा सकती है और मैं जीवन भर संघ के लिए __ __ के रूप में काम करूंगा जैसा कि मेरे आध्यात्मिक गुरु ऊँ विष्णुपद श्री श्रीमद भक्ति-सिद्धान्त गोस्वामी महाराज की आज्ञा है। [पाठ अनुपस्थित]
प्रदर्शनी:-
- (१) बैक टू गोडहेड
- (२) [अस्पष्ट] का दौरा
- (३) राजेन्द्र प्रसाद का पत्र
- (४) शिक्षा मंत्री का पत्र
- (५) दो [अस्पष्ट]
- (६) संगठन का अनुबोधक
- (७) पत्रिका [अस्पष्ट] आदि
- HI/1947 से 1964 - श्रील प्रभुपाद के पत्र
- HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र जो लिखे गए - भारत से
- HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र जो लिखे गए - भारत, इलाहाबाद से
- HI/श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,वार्तालाप एवं पत्र - भारत
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- HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र - सरकारी अधिकारियों को
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