HI/580802 - हरबंसलाल को लिखित पत्र, बॉम्बे

हरबंसलाल को पत्र (पृष्ठ १ से ?)
हरबंसलाल को पत्र (पृष्ठ २ से ?)


अगस्त ०२, १९५८

मेरे प्रिय हरबंसलाल जी,

मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि आप अब व्यवसाय के साथ-साथ सांस्कृतिक मिशन पर दौरे के लिए विदेश में गए हैं और मुझे आशा है कि आप अपने अच्छे स्वास्थ्य के साथ-साथ मछली पकड़ने के अनुभव का आनंद भी ले रहे होंगे। हमारे पास पिछले २० वर्षों से एक जर्मन व भारतीय अधिवासित मित्र थे, जो कई भाषाओं में विद्वान है। वे कहते थे कि जर्मनी में, जहाँ भी कोई भारतीय और विशेष रूप से छात्र गए हैं, उन्हें अपने भारतीय सांस्कृतिक ज्ञान के अनुपात में अच्छी तरह से आदर व सत्कार के साथ अभिनन्दित किया गया है। जर्मनी और रूस में विद्वानों और विचारकों को यह अच्छी तरह से पता है कि सांस्कृतिक ज्ञान के बारे में जानने के लिए, कोई भी अध्येता, उन भारतीयों से आगे नहीं निकल सकता है, जिनके पास आध्यात्मिक जांच में लगे सदियों का आधार है।

भारतीय विचार पद्धति के अनुसार, हर एक को सलाह दी जाती है कि वह न केवल मानव समाज का, बल्कि अन्य जीवों का उद्धार भी करे। अन्य लोगों के गलत व्याख्या के विपरीत भारतीय केवल गाय के उपासक न होकर, एक अति उत्कृष्ट भावना के अनुगत, शिशुओं को दूध की आपूर्ति मात्र के लिए, गाय की कई प्रजातियों का आभार व्यक्त करते हुए उन्हें सात माताओं मे से एक का दर्जा देते हैं। इसे भारतीय सांस्कृतिक मिशन कहते हैं। हमें हर जीवित प्राणी को अपने भाई-बंधु के रूप में देखना चाहिए और उससे प्रेम का आदान- प्रदान करना चाहिए। महात्मा गांधी का दर्शन सार्वभौमिक भाईचारे के इस अभिप्राय से शुरू हुआ था, जो केवल मानव प्रकार तक ही सीमित नहीं है बल्कि जीवन की सभी प्रजातियों के लिए है। यही वास्तविक बुद्धिमत्ता का संकेत है। भगवद-गीता में कहा गया है कि विद्वान व्यक्ति एक शिक्षित ब्राह्मण को, जो शिक्षा के साथ अच्छा व्यवहार करता है और एक चंडाल जो कुत्तों को खाने का आदी है, दोनो को सम्य दृष्टि से देखता है। और इस समान दृष्टि का उद्देश्य क्या है? उद्देश्य यह है कि हमें हर एक जीव को सर्वोच्च ब्रह्म के अंश के रूप में देखना, नाकि उसके बाहरी पोशाक को, जो जन्म जन्मांतर बदलता रहता है। मुझे आशा है कि आप इस भारतीय परिप्रेक्ष्य का हर उस स्थान पर प्रचार करेंगे जहाँ पर आपको अवसर मिलेगा। मुझे लगता है इस वक्त में, जब परमाणु बम्ब सबके सर पर मंडरा रहा है, लोगों को इन भारतीय संदेशों की आवश्यकता है।

आप जानते हैं कि मैं भक्तों के समूह नाम के एक सांस्कृतिक मिशन के साथ-साथ कांग्रेस के एक सांस्कृतिक मिशन से जुड़ा हुआ हूं जो परोपकार के इस संदेश को व्यापक रूप से देने का प्रयास कर रहा है। परोपकार का मानक ऐसा होना चाहिए जो वर्तमान जीवन के साथ-साथ मृत्यु के बाद के जीवन में भी उपयोगी हो। हर समझदार आदमी इसी तरीके से परोपकार के बारे में विमर्श करता है। अस्थायी इन्द्रिय तृप्ति परोपकार नहीं है। अतः कृपया कर इन प्राधिकृत परोपकारी गतिविधियों का निष्पादन विदेश में शुरू करें क्योंकि आप वहां जा चुके हैं। मुझे लगता है कि आपका वहाँ जाना __ भारतीय संस्कृति का उपर्युक्त उपदेश है। मुझे पत्राचार द्वारा आपसे संपर्क रखने में खुशी होगी, ताकि मैं आपको इस सेवा के लिए अपना विनम्र सुझाव दे सकूं।

साथ ही- मैं आपको सूचित करना चाहता हू कि मैं एक उपयुक्त आवासीय स्थान की चाह में बॉम्बे में अपने दिन काफी कष्टपूर्वक तरीके से गुजार रहा हूं। इस संबंध में श्रीमान, मैं आपको याद दिलना चाहता हूं की आपने मुझे अपने कुछ कमरों के खाली होने के पश्चात, उनमे जगह देने का वादा किया था। मैं समझता हूं कि कुछ कमरें जल्द ही खाली होने वाले हैं और मेरा आपसे अनुरोध है कि मुझे एक खाली कमरा दे मेरे कष्टों का निवारण करें। एक ऐसा फ्लैट जिसमे कम से कम

(पृष्ठ अनुपस्थित)