HI/580826 - जुगलकिशोर बिरला को लिखित पत्र, बॉम्बे
अगस्त २६, १९५८
श्री जुगलकिशोर बिरला,
बिरला हाउस,
अलबुकर्क रोड,
नई दिल्ली
श्रीमान,
कृपया मेरे सम्मानजनक अभिवादन को स्वीकार करें। मैं आपको सूचित करना चाहता हूं कि यह विशेष रूप से हमारे लिए और आम तौर पर सभी के लिए बहुत संतोष की बात है कि पूरी दुनिया में भगवद गीता के सार्वभौमिक सत्य का प्रचार करने के लिए आप, माननीय महोदय बहुत चिंतित है।
हम यह भी जानते हैं कि आपने इस उद्देश्य के लिए अपनी बहुत सारी मूल्यवान ऊर्जाएँ खर्च की हैं, किंतु अभी तक यह आपके संतुष्टि स्तर तक नहीं है।
भगवद-गीता के उद्देश्य का प्रचार केवल तभी किया जा सकता है, जब इसे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान कृष्ण के वास्तविक भक्त द्वारा लिया जाए।
भगवान कृष्ण की उपस्थिति के दौरान, भगवान कृष्ण के असली भक्तों में से एक अर्जुन थे और इस तरह से भगवद गीता की परम्परा, जो कुरुक्षेत्र के युद्ध की घटना से पहले टूट गई थी, वह युद्ध के मैदान में पुनः स्थापित की गई और अर्जुन को भगवद गीता के उद्देश्य को समझने के लिए अधिकृत किया गया था। यदि हम पारलौकिक साहित्य के सिद्धान्त का प्रचार करने के लिए गंभीर हैं तो हमें इस महत्वपूर्ण बात को नहीं भूलना चाहिए।
जैसे कि शुरुआत में यह समझा जाता है कि जो अर्जुन के पदचिन्हों का पालन नहीं करता, वह भगवद-गीता के रहस्य में प्रवेश नहीं कर सकता और इसलिए कोई भी इसके रहस्य को जाने बिना गीता के सिद्धान्त का प्रचार नहीं कर सकता।
भारत और विदेशों में हजारों विद्वान हैं, लेकिन उनमें से वैष्णव आचार्य जैसे श्री रामानुज, श्री मध्य, भगवान चैतन्य, श्रीधर स्वामी, मधुसूदन सरस्वती, विश्वनाथ चक्रवर्ती, बलदेव विद्याभूषण, आदि को छोड़कर बहुत कम लोगों ने अर्जुन के पदचिन्हों का अनुसरण किया है। और कई अन्य लोग भी हैं जिन्होंने प्रामाणिक आचार्यों के उपदेशों का पालन किया है।
भक्तों के समूह, भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में भगवद गीता के शुद्ध पंथ के प्रचार के लिए प्रचारकों और प्रचारक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने के लिए पंजीकृत है - बिल्कुल प्रामाणिक आचार्यों की परंपरा के अंतर्गत जैसा कि भगवद-गीता में सुझाया गया है। और यह जाति, पंथ, रंग या राष्ट्रीयता के किसी भी भेद के बिना सभी के लाभ के लिए इस सार्वभौमिक सत्य के सफल प्रचार का सही तरीका है। न केवल मानवजाती बल्कि मानवजाती के अलावा भी अन्य, हर एक जीव पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण के पास जा सकता है। यह स्पष्ट रूप से भगवद-गीता में कहा गया है। जहां तक वर्णाश्रम व्यवस्था का संबंध है यह किसी का एकाधिकार व्यवसाय नहीं है और किसी भी योग्य व्यक्ति को वर्ण और आश्रम में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे कि यह भगवद गीता में वर्णित है।
हिंदू धर्म का पंथ या वर्णाश्रम की व्यवस्था भगवद गीता के भाव में उपयोग नहीं किया जा रहा है और ऊपर उल्लिखित पंथ दिन-प्रतिदिन घट रहा है। हमें आर्य हिंदू धर्म की इस तरह की गिरावट पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए और भगवद गीता के शुद्ध पंथ का प्रचार करने के लिए निर्धारित इस संस्था की मदद के लिए आपको आगे आने का अनुरोध करता हूँ। आपको अब सनातन धर्म के पंथ के घोर दुरुपयोग से विश्व शांति और समृद्धि को जोखिम में डालने की अनुमति नहीं देनी चाहिए, बल्कि आप इस महान मिशन में हमें सहयोग देने के लिए आगे आएं और अपनी पूरी ताकत से हमारी मदद करें।
मुझे आशा है कि आप आचार्य के पद को गलत नहीं समझेंगे जो पारलौकिक विज्ञान सीखने के मामले में इतना महत्वपूर्ण है। आचार्य पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान कृष्ण के प्रत्यक्ष प्रतिनिधि होते हैं। और यदि कोई व्यक्ति जो इस मामले में प्राधिकृत पूर्व आचार्यों के पदचिह्नों का दृढ़ता से पालन नहीं किया हो, वह प्रामाणिक आचार्य होने का दावा नहीं कर सकता। केवल आचार्य के अनुसरण के इस सिद्धांत का उल्लंघन करके सनातन धर्म के समुच्चय में पूरी बात को तोड़ दी गई है। अब भगवद-गीता के संबंध में हर एक व्यक्ति, भले ही वह सांसारिक अर्थों में एक बहुत बड़ा विद्वान क्यों न हो, उसे अर्जुन की समझ की विधि के जैसे निश्चित स्थिति में होना चाहिए। यह एक गलत आचार्य के परीक्षण का महत्वपूर्ण बिंदु है। श्री अर्जुन गीता को समझने वाले पहले व्यक्ति हैं और उनकी समझ की विधि भगवद गीता में स्पष्ट रूप से परिभाषित है। अतः आचार्य के परीक्षण में कोई कठिनाई नहीं है कि वह झूठे हैं या प्रामाणिक।
भगवद-गीता के उपदेश का प्रचार करने का हमारा यह दृढ़ संकल्प उस परम्परा प्रणाली पर है जैसे भगवद्गीता में अनुशंसित है। भगवद-गीता के अंतिम भाग में भगवद्-गीता को समझने की आवश्यक योग्यता स्पष्ट रूप से बताई गई है।
योग्यता के इस सूत्र के अनुसार जो कृष्ण को पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान के रूप में स्वीकार नहीं करता - वह भगवद-गीता को समझने में असमर्थ है।
कृष्ण के ऐसे भक्त वास्तव में महात्मा हैं। ऐसे महात्मा बहुत दुर्लभ हैं। वे सदैव प्रभु की पारलौकिक सेवा में लगे रहते हैं, विशेष रूप से प्रभु के महिमाओं के प्रचार कार्य में जो भगवान की विभिन्न ऊर्जाओं यानी भौतिक तथा आध्यात्मिक में स्थित है, जिसे भगवद गीता में परा और अपरा प्रकृति के रूप में वर्णित हैं। ये महात्मा भगवद्-गीता में वर्णित शांति के सार्वभौमिक संदेश का प्रचार करने के लिए हमेशा उत्सुक रहते हैं और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह किस आश्रम में हैं। अर्जुन एक गृहस्थ क्षत्रिय थे और भगवान के हित के लिए लड़ रहे थे और परम्परा की पंक्ति में वे प्रथम आचार्य थे।
आर्त, अर्थार्थी, ज्ञानी और जिज्ञासु गीता को समझने की पंक्ति में नौसिखे हैं। महात्मा पुरुष इन सभी चार वर्गों से ऊपर हैं और वे श्रेणी में पोस्ट ग्रेजुएट पुरुष हैं। हम उन असुरों को भी जानते हैं, जिन्हें चार वर्गों में विभाजित किया गया है, जैसे कि दुष्कृतिन, मूढ़, नराधम और मूर्ख विद्वान। भगवद-गीता का उपदेश देने के लिए हमें महात्माओं का सृजन करना होगा, न कि मूर्ख विद्वानों का जिन्होंने अनादिकाल से भगवद्-गीता को बिना परम्परा की पंक्ति के अनुसरण में लिया है। वह एक महत्वपूर्ण बात है।
इसलिए कृपया भक्तों के समूह में शामिल हों और महात्माओं के माध्यम से भागवत गीता का प्रचार करने का प्रयास करें। जो कोई भी श्री अर्जुन के पदचिन्हों का सख्ती से पालन करता है, वह निश्चय ही महात्मा है। इसका मतलब यह नहीं है कि लाल कपड़े पहने आदमी एक महात्मा है और आपके जैसा एक अच्छा गृहस्थ महात्मा नहीं है। हम गृहस्थ जीवन में भी अर्जुन जैसे महात्माओं का पता लगा सकते हैं और कली के इस युग में हमें दूसरे वर्णाश्रम की तुलना में गृहस्थ जीवन में अधिक महात्माओं का पता लगाना चाहिए। हम पैसे की कमी के कारण मिशन को व्यावहारिक रूप देने के लिए बहुत संघर्ष कर रहे हैं। यह अभी तक स्थायी नहीं हुआ है और सिर्फ दो पत्र - एक हिंदी और दूसरा अंग्रेजी - का प्रकाशन हुआ है। और अगर आप जैसे अच्छे व्यक्ति जुड़ते है, तो दुनिया के कई अन्य अमीर लोग निश्चित रूप से जुड़ेंगे।
शुरूआती खर्च का अनुमान न्यूनतम ३०००/- रुपये प्रति माह है। इस नेक मिशन के तीन सौ सदस्य, प्रचारकों के प्रशिक्षण और अन्य आवश्यक खर्चों के लिए इस राशि को तुरंत एकत्र कर सकते हैं ।
इसलिए कृपया आगे आएं और इस संगठन के प्रमुख बनें। देखें कि धन का सही उपयोग हो रहा है या नहीं और साथ-साथ परिणाम को भी देखें। मुझे यकीन है कि कार्य के व्यावहारिक परिणाम से आप इस प्रचार काम में रुचि लेने के लिए अधिक प्रोत्साहित होंगे।
आपके शीघ्र उत्तर की प्रतीक्षा है में आपको धन्यवाद।
भक्तों के समूह के लिए,
आपका आभारी,
ए.सी. भक्तिवेदांत
संस्थापक सचिव
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