HI/651108 - तीर्थ महाराज को लिखित पत्र, न्यू यॉर्क
सी/ओ राममूर्ति मिश्रा
१०० पश्चिम ७२ वें स्ट्रीट स्टूडियो ५०१
न्यूयॉर्क २३, एन.वाई. यु.एस.ए.
८ नवंबर, १९६५
पूजनीय श्रील तीर्थ महाराज,
आपके चरण कमलों में आदरणीय दंडवत स्वीकार करें। जब से मैं संयुक्त राज्य अमेरिका आया हूं, श्रीपद गोविंद महाराज के साथ मेरे कई पत्राचार हुए थे। जब मैं उस समय कलकत्ता में था, और साथ ही साथ पत्रों के हमारे अलग-अलग आदान-प्रदान में श्रीपद गोविंद महाराज की ओर से कुछ इशारा था, मुझे आपके साथ, परमपावन तीर्थ महाराज के साथ, सहयोग से मिलकर काम करना चाहिए। अपने पिछले पत्र में मैंने आपके साथ, परमपावन तीर्थ महाराज के साथ, सहयोग करने की तत्परता व्यक्त की है, और मुझे गोविंदा महाराज से उस सहयोग के मूल सिद्धांत के बारे में पूछना था। इससे पहले कि मैं संन्यास लेता, शायद आपको यह याद होगा कि यदि मेरे प्रकाशन को स्वीकार किया गया तो मैं आपसे जुड़ने की सम्भावन व्यक्त करता हूँ। किसी तरह या अन्य यह संभव नहीं हो पाया और हम मौका चूक गए।
अब एक दूसरा मौका है, और गोविंदा महाराज के साथ पत्राचार की लंबी श्रृंखला के बिना, मैं सीधे आपको अपने इरादे के बारे में लिख रहा हूं। श्रील प्रभुपाद की, पश्चिमी देशों में हमारे प्रचार केंद्र खोलने की तीव्र इच्छा थी, और बॉन महाराज तथा गोस्वामी महाराज दोनों को इस उद्देश्य के लिए नियुक्त किया गया था, बिना किसी ठोस परिणाम।
मैं इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस देश में आया हूं, और जहां तक मैं इधर अमेरिका में देखता हूं, भगवान चैतन्य के पंथ का प्रचार करने की बहुत अच्छी गुंजाइश है। यहां रामकृष्ण मिशन पिछले चालीस वर्षों से है। मैंने यहां उनके दो केंद्रों में भाग लिया, और मैंने पाया कि कोई सराहनीय सभा नहीं है। विवेकानंद ने दारिद्र नारायण सेवा का प्रचार किया। व्यावहारिक अमेरिकियों ने रामकृष्ण मिशन के स्वामियों से सवाल किया कि,‘भारत में अभी भी इतने सारे दारिद्र नारायण सड़कों और पैदल रास्तों पर क्यों पड़े हैं?’ अमेरिका में ऐसा कोई दृश्य देखने को नहीं मिलता जहाँ दरीद्र नारायण पैदल मार्ग पर पड़ा हो, या दूसरे शब्दों में कहें तो दारिद्र नारायण का यहाँ कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि हर एक के पास पेट भर खाने के लिए है, और घर बनाने के लिए पर्याप्त खाली जगह। मैंने यहां एक भी स्थान नहीं देखा है जो अच्छे घरों और अच्छी सड़कों से सजाया नहीं गया है। वास्तव में उन्होंने दुनिया के इस हिस्से में एक समृद्ध देश बनाया है, और इसलिए जहाँ तक भौतिक समृद्धि का संबंध है वे हर मामले में खुश हैं। इसलिए स्वाभाविक रूप से आध्यात्मिक उत्कंठा है, और क्योंकि भारत अपनी आध्यात्मिक संपत्तियों के लिए जाना जाता है, इसलिए वे पूर्व से कुछ आध्यात्मिक पूंजी लेने के लिए इच्छुक हैं। लेकिन दुर्भाग्य से या तो रामकृष्ण मिशन, या योगियों ने, उनके इच्छानुसार उन्हें पर्याप्त आध्यात्मिक ज्ञान नहीं दिया है। मैंने दूसरे दिन रामकृष्ण मिशन के स्वामी निखिलनाद से बातचीत की, और उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिकी भक्ति योग के लिए उपयुक्त हैं। मेरी राय भी यही है।
मैं यहां हूं और इस देश को अपने कार्य के लिए उपयुक्त पा रहा हूं, लेकिन मैं जीव आत्माओं और पैसे के बिना अकेला हूं। यहां एक केंद्र शुरू करने के लिए हमारे पास अपनी इमारतें होनी चाहिए। रामकृष्ण मिशन या अन्य कोई भी मिशन जो यहां काम कर रहे हैं, सभी की अपनी इमारतें हैं। इसलिए यदि हम यहां एक केंद्र शुरू करना चाहते हैं तो, हमारे पास अपना भवन भी होना चाहिए। खुद की इमारत बनाने का मतलब है कि कम से कम ५००००० / -पांच लाख, या एक लाख डॉलर का भुगतान करना। और अपने भवन को नवीनतम तरीके से सजाना मतलब २ लाख और। यदि प्रयास किया जाता है तो यह धनराशि भी हो सकती है। लेकिन मुझे लगता है कि यहां मठ और मंदिर स्थापित करने के लिए आप कार्यभार संभाल सकते हैं, और मैं उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में सक्षम होऊंगा। विनिमय की कठिनाई है, और मुझे लगता है कि जब तक चैतन्य मठ की एक शाखा शुरू करने के लिए खास व्यवस्था नहीं करतें हैं, तब तक धन-राशि अंतरित करना मुश्किल है। लेकिन अगर आप बंगाल या केंद्र सरकार की मदद से ऐसा कर सकते हैं तो, यहां न्यूयॉर्क में तुरंत एक केंद्र खोलने का अच्छा मौका है। मैं यहां कुछ दलालों के साथ बातचीत कर रहा हूं जो हमें एक घर दे सकते हैं, और उन्होंने उपरोक्त सुझाव दिया है। हमारे अपने घर के बिना, अपना केंद्र खोलना संभव नहीं होगा। मेरे लिए इसमें अधिक समय लगेगा, लेकिन आपके लिए यह बहुत आसान है। श्रील प्रभुपाद की कृपा से कलकत्ता के मारवाड़ी आपकी मुट्ठी में हैं। यदि आप चाहें तो आप तुरंत न्यू यॉर्क में एक केंद्र खोलने के लिए, १०,००,००० / - दस लाख रुपये का निधि जुटा सकते हैं। यदि एक केंद्र शुरू हुआ तो, मैं कई अन्य केंद्र को भी शुरू कर पाऊंगा। इसलिए यहां हमारे बीच सहयोग का एक मौका है, और मुझे यह जानकर खुशी होगी कि क्या आप इस सहयोग के लिए तैयार हैं। मैं यहां स्थिति का अध्ययन करने के लिए आया था, और मुझे यह बहुत अच्छा लगा। अगर आप भी इसमें सहयोग करने के लिए सहमत हैं तो प्रभुपाद की कृपा से यह सब बहुत अच्छा होगा। इसलिए मैं आपकी राय जानने के लिए सीधे आपको यह पत्र लिख रहा हूं। यदि आप सहमत हैं तो यह मान लें कि, मैं श्री मायापुर चैतन्य मठ के कार्यकर्ता में से एक हूं। मुझे किसी मठ या मंदिर का मालिक बनने की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है, लेकिन मैं काम करने की सुविधा चाहता हूं। मैं अपने भागवत प्रकाशन के लिए दिन-रात काम कर रहा हूं, और मुझे पश्चिमी देशों में केंद्रों की आवश्यकता है। यदि मैं न्यू यॉर्क में एक केंद्र शुरू करने में सफल रहा, तो मेरा अगला प्रयास कैलिफोर्निया और मॉन्ट्रियल में भी केंद्र शुरू करना होगा जहां कई भारतीय भी हैं।काम करने की पर्याप्त गुंजाइश है, लेकिन दुर्भाग्य से हमने बस एक दूसरे के साथ झगड़ा करके समय बर्बाद किया है, जबकि मिथ्या निरूपण वाले रामकृष्ण मिशन ने पूरी दुनिया में अपना स्थान बनाया है। हालाँकि वे इन विदेशी देशों में इतने लोकप्रिय नहीं हैं, उन्होंने केवल महान प्रचार प्रसार किया है। और इस तरह के प्रचार प्रसार के परिणामस्वरूप वे भारत में बहुत समृद्ध हैं, जबकि गौड़ीय मठ के लोग भूके हैं। हमें अब होश में आना चाहिए। यदि संभव हो तो हमारे अन्य भगवत बंधू के साथ जुड़ें, और पश्चिमी देशों के प्रत्येक शहर और गांव में गौर हरि के पंथ का प्रचार करने के लिए संयुक्त रूप से प्रयास करें।
यदि आप मेरे साथ सहयोग करने के लिए सहमत हैं जैसा कि मैंने उपरोक्त सुझाव दिया है, तो मैं अपना वीज़ा अवधि बढ़ाऊंगा। मेरा वर्तमान वीज़ा अवधि इस नवंबर के अंत तक समाप्त हो रहा है। लेकिन अगर मुझे तुरंत आपकी पुष्टि मिल जाती है तो मैं अपना वीज़ा अवधि बढ़ा दूंगा, अन्यथा मैं भारत लौट आऊंगा। मैं चाहता हूं कि तुरंत कुछ अच्छे सहायक मेरे साथ काम करें। उन्हें शिक्षित होना चाहिए, और अंग्रेजी में बात करने में सक्षम होना चाहिए। संस्कृत भी अच्छी तरह से पढ़नी चाहिए। यहां प्रचार के लिए दो भाषाओं अंग्रेजी और संस्कृत की बहुत सराहना की जाएगी। मुझे लगता है कि आपके नेतृत्व में, हमारे भगवत बंधू के प्रत्येक शिविर को इस उद्देश्य के लिए एक आदमी की आपूर्ति करनी चाहिए। उन्हें मेरे निर्देशन में काम करने के लिए सहमत होना चाहिए। यदि यह संभव है तो आप देखेंगे कि हमारी प्रिय श्रील प्रभुपाद हम सभी से कितने संतुष्ट होंगे। मुझे लगता है कि हम सभी को अभी पिछले भ्रातृभाव मतभेद को भूलकर, एक अच्छे कारण के लिए आगे आना चाहिए। यदि वे सहमत नहीं हैं तो स्वयं करें, और मैं आपकी सेवा में हूं। इसलिए कृपया इस पर विचार करें, और यदि आप सहमत हैं तो मुझे टेलीग्राम द्वारा बताएं। अन्यथा मैं अपनी वीज़ा अवधि का विस्तार नहीं करूंगा, किन्तु मैं अपने पहले दौरे में कुछ भी करने में सक्षम हुए बिना भारत लौट जाऊँगा। आशा है कि आप इस मामले को बहुत जरूरी मानेंगे, और अपने निर्णय को तत्काल डाक द्वारा या मेरे उपरोक्त पते पर विद्युतसंदेश द्वारा भेजेंगे और उपकृत करेंगे। आशा है कि आप सभी कुशल-मंगल हैं, और आपको प्रत्याशा में धन्यवाद देते हुए। आपका आज्ञाकारी,
[अहस्ताक्षरित]
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
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