HI/651110 - सुमति मोरारजी को लिखित पत्र, न्यू यॉर्क
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
शिविर: सी/ओ राममूर्ति मिश्रा
१०० पश्चिम ७२ वें सड़क स्टूडियो ५०१
न्यूयॉर्क २३, एन.वाई. यु.एस.ए दिनांक/१०/११/६५
मैडम सुमति मोरारजी बाईसाहेबा,
भगवान बाला कृष्ण का आशीर्वाद, और मेरा अभिवादन को स्वीकार करें। मुझे आशा है कि आपको पहले ही मेरे पिछले महीने के २७ वि तारीक का पत्र मिल चुका है, और मुझे आपका उत्तर बहुत जल्द मिलने की उम्मीद है। और मेरे पत्र की निरंतरता में जैसे उपर्युक्त, मैं आपको सूचित करना चाहता हूं कि कलयुग में हिरण्यकशिपुयों और रावणों की संख्या अन्य युगों की तुलना में अधिक है। हिरण्यकश्यप हमेशा भगवान के भक्तों के साथ अयोग्य होते हैं, भले ही ऐसा भक्त,उसका खुद का बेटा ही क्यों न हो। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को सताया, हालांकि वह ५ साल का लड़का हिरण्यकश्यप को बहुत प्यारा था। जैसा कि मैंने आपको पहले ही सूचित कर दिया है, कि सामान्य रूप से अमेरिकी लोगों को भारतीय संस्कृति से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की बहुत इच्छा है। वे भागवतम् संस्कृति के लिए प्रथम श्रेणी के प्राप्तकर्ता होंगे, बशर्ते इस उद्देश्य के लिए एक संगठित प्रयास किया जाए। संगठित विधि इस तरह है। उन्हें भगवान के भक्तों के संघ में होना चाहिए, उन्हें भगवान की महिमा मंडित करने वाले कीर्तन में शामिल होना चाहिए, उन्हें श्रीमद भागवतम् की उपदेश सुननी चाहिए, उन्हें भगवान के मंदिर या स्थान के साथ अंतरंग स्पर्श करना चाहिए, और मंदिर में भगवान की पूजा करने हेतु उन्हें पर्याप्त अवसर देना चाहिए। एक प्रामाणिक भक्त के मार्गदर्शन में उन्हें इस तरह की सुविधाएं दी जा सकती हैं, और श्रीमद भागवतम् का रास्ता हर एक के लिए खुला है। अमेरिकियों जैसे सभ्य पुरुषों के किरात, अलावा, आंध्र, पुलिंडा, पुक्कासा, अभिरा, सुंबा, यवाना, खसादया या अन्य किसी भी निचली जाति के जीवात्मा को, एक पवित्र और प्रामाणिक भक्त के मार्गदर्शन के तहत प्रशिक्षण द्वारा, भक्त बनाया जा सकता है। यही निर्देश सुखदेव गोस्वामी ने महाराज परीक्षित को दी।
इसलिए मुझे लगता है कि इस उद्देश्य के लिए न्यूयॉर्क में बाल-कृष्ण का एक मंदिर तुरंत शुरू किया जा सकता है, और भगवान बाल कृष्ण के भक्त के रूप में आपको इस महान और श्रेष्ठ कार्य को करना चाहिए। अब तक न्यूयॉर्क में हिंदुओं का कोई पूजा करने योग्य मंदिर नहीं है, हालांकि भारत में बहुत सारे अमेरिकी धर्म प्रचारक प्रतिष्ठान, और गिरजाभवन है। इसलिए मैं आपसे इस भव्य कार्य को करने का अनुरोध करूंगा। यह विश्व के इतिहास में दर्ज किया जाएगा कि पहला हिंदू मंदिर एक धर्मपरायण हिंदू महिला, श्रीमती सुमती मोरारजी, द्वारा शुरू किया गया है, जो भारत कि न केवल एक बड़ी व्यवसायी हैं, बल्कि एक धर्मपरायण हिंदू भी है साथ ही जो भगवान कृष्ण की महान भक्त भी हैं। यह कार्य आपके लिए है, और साथ ही यशस्वी भी है।
बस आकस्मिक प्रवचनों से किसी भी मूर्त कार्य की संभावना नहीं है, लेकिन उपर्युक्त मानक कार्य लोगों को प्रभावित करेगा की वास्तव में हिंदू संस्कृति क्या है। मैंने पहले से ही इस उद्देश्य के लिए एक अच्छा भवन देखा है। यदि आप इस भवन को अपनी निजी संपत्ति के रूप में खरीदते हैं और काम करने की सुविधा देते हैं, तो आप देखेंगे कि अमेरिका में न्यूयॉर्क से शुरू होने वाले भागवतम् पंथ के मिशन का प्रचार किस तरह से किया जा रहा है। मैं यहां अमेरिका में हिरण्यकशिपुयों के नाम का खुलासा नहीं करना चाहता, जो इस भागवतम् उपदेश के खिलाफ हैं। बहुत सारे भारतीय धर्म प्रचारक हैं जैसे रामकृष्ण मिशन, शिवानंद मिशन, आदि, और ये सभी भागवत संस्कृति के खिलाफ हैं। और उनमें से हर किसी ने भागवतम् संस्कृति पर बात करने की सुविधा देने से इनकार कर दिया है। उनमें से प्रत्येक का अपना भवन है, लेकिन उन्होंने पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की पूजा करने के बजाय अपने स्वयं के भगवान का निर्माण किया है, और वे भगवान कृष्ण के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए ऐसे निर्मित देवताओं को लगाने की कोशिश करते हैं। इसलिए जब तक मेरे लिए कोई जगह, और व्यवस्थित रूप से काम करने की सुविधा नहीं है, इस जगह पर मेरा भागवतम् मिशन का काम व्यवहारक्षम नहीं होगा। मुझे अमेरिका में किसी भी मंदिर या भवन का मालिक बनने की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है, क्योंकि मैं संन्यासी बनने के बाद उनका क्या करूंगा। लेकिन काम की सुविधा के लिए हमारा अपना एक भवन होना बहुत आवश्यक है।
इसलिए कृपया यहां न्यूयॉर्क में एक भवन खरीदें, और मुझे संस्कृति के इस मिशन के लिए बहुत गंभीरता से काम करने दें। मुझे यकीन है कि आपकी अच्छाई को न केवल भगवान स्वीकार करेंगे, बल्कि आप पूरे हिंदू समुदाय द्वारा पहचाने जाएंगे। कृपया इस काम को बहुत गंभीरता से लें, और आपके जवाब मिलने के साथ-ही-साथ मैं तुरंत आपको आगे का विवरण दूंगा।
अमेरिका में रहने का मेरा अवधि १७ नवंबर १९६५ तक समाप्त हो जाएगा, लेकिन अपनी दूरदर्शिता पर विश्वास करते हुए "आपको वहां रहना चाहिए जब तक आप पूरी तरह से
[पाठ अनुपस्तिथ]
आशा है मैं उन्हें प्राप्त कर सकूंगा। जिस भवन को मैंने इस उद्देश्य के लिए देखा है, वह इस महान प्रचार कार्य के लिए उपयुक्त है, जैसे कि इसे केवल इस उद्देश्य के लिए बनाया गया था। इस कार्य को करने की आपकी सरल इच्छा सब कुछ सुचारू रूप से पूरा करेगी। और यह सोचकर कि आप इससे सहमत होंगे, मैं आपको केवल स्थान आदि का एक अंदाज़ दे रहा हूं।
१. आयाम १८’६ “x १०२’२। पूरी तरह से वातानुकूलित १० टन केंद्रीय इकाई।
२. काँस्य वर्णी अग्र भाग सामने लगभग ४५०० वर्ग फीट।
३. भवन व्यावहारिक रूप से तीन मंजिला है। तल-कोष्ठ, तलघर, और उसके ऊपर दो मंज़िल जिसमे गैस, तापक, आदि सभी उपयुक्त व्यवस्था है।
भूतल का उपयोग बाला कृष्ण के भोग की तैयारी के लिए किया जा सकता है, क्योंकि प्रवचन केंद्र केवल शुष्क अटकलों के लिए नहीं बल्कि स्वादिष्ट प्रसादम के वास्तविक लाभ के लिए होंगे। मैंने पहले ही परीक्षण कर लिया है कि मेरे द्वारा तैयार किए गए सब्जियों का बना हुआ प्रसादम को यहां के लोग कितना पसंद करते हैं। वे मांस खाना भूल जाएंगे, और खर्च का भुगतान करेंगे। अमेरिकी भारतीय की तरह गरीब नहीं हैं, और अगर वे किसी चीज की सराहना करते हैं तो वे इस तरह के शौक के लिए कितने भी राशि खर्च करने के लिए तैयार रहते हैं। केवल शब्द-जाल और शारीरिक व्यायामविद्या से उनका शोषण हो रहा है, और फिर भी वे उसके लिए खर्च कर रहे हैं। लेकिन जब उनके पास वास्तविक वस्तु होगी और बाला कृष्ण के बहुत स्वादिष्ट प्रसाद खाने से खुशी महसूस होगी, मुझे यकीन है कि अमेरिका में एक अनोखी चीज पेश की जाएगी। जैसे ही सब कुछ व्यवस्थित हो जाता है, मैं भारत से अपने सहायकों को सभी विवरणों में मेरी मदद करने के लिए लाऊंगा। भवन की कीमत $ ११०,००० है, परिवर्तन और अन्य खर्च $ ५,१४४ के अधीन। तत्काल $ ३५,००० नकद का भुगतान किया जा सकता है, और मासिक किस्तों द्वारा शेष राशि को १५ वर्षों में पूरा किया जाना चाहिए, या पूरी राशि का भुगतान एक बार में किया जा सकता है बिना---
[पाठ अनुपस्तिथ]
- HI/1965 - श्रील प्रभुपाद के पत्र
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- HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र जो लिखे गए - अमेरीका, न्यू यॉर्क से
- HI/श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,वार्तालाप एवं पत्र - अमेरीका
- HI/श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,वार्तालाप एवं पत्र - अमेरीका, न्यू यॉर्क
- HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र - सुमति मोरारजी को
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