"अब, तथ्य यह है कि, माता के गर्भ में, हमारे जन्म से पूर्व से ही हमारे शरीर का विकास होना शुरू हो जाता है,और ठीक उसी प्रकार माता के गर्भ से बाहर आने के बाद भी शरीर का विकास होता रहता है। किन्तु आत्मा में कोई परिवर्तन नहीं होता है। शरीर का विकास होता है। अत अब, यह विकास - छोटे शिशु से, बड़े बालक के रूप में, तत्पच्छात कुमार और फिर किशोर अवस्था और फिर धीरे-धीरे मेरी तरह वृद्ध अवस्था, और फिर धीरे-धीरे जब यह शरीर किसी काम का नहीं रहता तब, इसे त्यागना ही पड़ता है और दूसरा शरीर धारण करना पड़ता है। इस प्रक्रिया को आत्मा का देहान्तर कहते हैं । मेरे विचार से इस सरल प्रक्रिया को समझने में कोई कठिनाई नहीं है।"
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