तो श्री कृष्ण यहाँ क्या कहते हैं? कि कर्मजं-कर्मजं (भ.ग. २.५१), आपके प्रत्येक कर्म जो आप करते हैं, उसका प्रभाव आप के भविष्य के दुःख या सुख के रूप में होता है। किन्तु यदि आप बुद्धिमत्ता से परम चेतना युक्त होकर कर्म करते हैं, तो आप जन्म, मृत्यु, ज़रा और व्याधि के बन्धन से मुक्त हो जायेंगे और अपने अगले जन्म से ... यह आपका प्रशिक्षण का समय है। यह जीवन आप के लिए प्रशिक्षण का समय है और जैसे ही आप पूर्ण रूप से प्रशिक्षित हो जाते हैं, तो यह परिणाम होगा कि, तब आप इस शरीर को छोड़ने पर मेरे सनातन धाम को प्राप्त करेंगे। 'त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन (भ.ग. ४.९)। अत: यही पूर्ण विधि है।"
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