भगवद गीता में यह स्पष्ट वर्णित है कि, "मेरे प्रिय अर्जुन, तुम्हारे अनेकानेक जन्म हो चुके हैं। तुम मेरे निरन्तर साथी रहे थे और अभी भी हो। अत: जब भी मैं किसी भी ग्रह पर अवतरित होता हूँ, तब तुम भी मेरे साथ होते हो। अत: जब मैं सूर्य ग्रह पर अवतरित हुआ था और मैंने भगवद गीता सूर्य देव को सुनाई थी,तब तुम भी वहाँ पर उपस्थित थे, किन्तु दुर्भाग्यवश तुम्हे स्मरण नहीं है। क्योंकि तुम जीवात्मा हो और मैं परम भगवान हूँ।" भगवान और जीव में यही अन्तर है... जीवात्मा को स्मरण नहीं रहता। विस्मृति जीवात्मा का स्वभाव है।
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