HI/661215 - श्रीपाद नारायण महाराज को लिखित पत्र, न्यू यॉर्क
१५ दिसंबर, १९६६
श्री श्री गुरु गौरांग जया
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
२६ द्वितीय मार्ग, कोष्ठ बी१ पृष्ठ भाग
न्यूयॉर्क, एन.वाई.
श्री श्री वैष्णव चरणे दंडवत नति पुरवीकेयम्
मैं अपने दंडवत प्रणाम को वैष्णवों के कमलचरणों में अर्पित कर रहा हूं और फिर लिख रहा हूं।
श्रीपाद नारायण महाराज,
१३ नवंबर के आपके पत्र को प्राप्त करने और आपकी कठिनाई को सुनने के बाद, मैंने आपको १९ नवंबर को उत्तर दिया। उस पत्र में मैंने आपको वृंदावन पंजाब नेशनल बैंक में, अपने खाते में, १५००/- रुपये जमा करने का निर्देश दिया था। यदि आपने अभी तक धनराशि जमा नहीं की है, तो कृपया मुझे बताएं कि आपने माल खरीदा है या नहीं। मुझे पता चला कि दिल्ली में मेरे शिष्य चंद्रशेखर ने आपको एक पत्र लिखा था। चंद्रशेखर ने मुझे आपके उत्तर, जो आपने उसे लिखा, उसकी एक प्रति मुझे भेजी। उस चिट्ठी में मुझे पता चला कि मूर्ख चंद्रशेखर ने आपकी निंदा की थी। मूर्ख लोग वैष्णवों का सम्मान करना नहीं जानते। आपकी महानता से, कृपया उसे क्षमा करें। मैंने उसे ऐसा करने का निर्देश नहीं दिया है। मैंने ही उसे आपसे मिलने को कहा था। वैसे भी, उसके अपराद को माफ़ करे। चंद्रशेखर एक अच्छा आदमी है, लेकिन मूर्खता में आकर उसने आपके लिए बुरे शब्दों का इस्तेमाल किया। आप अपने अच्छे गुणों द्वारा उसे और मुझे क्षमा करें।
यदि आपने पंजाब नेशनल बैंक में धनराशि जमा नहीं की है, तो आप मूर्तियों (श्री विग्रहों) की खरीद की व्यवस्था कर सकते हैं। उन्होंने मूर्तियों की एक जोड़ी के लिए ७००/- रुपये मांगे। लेकिन अगर वे दो जोड़ी मूर्तियों के लिए १२००/- रुपये स्वीकार करते हैं, तो उन्हें खरीद लें। इसे एक बक्से में ठीक से पैक करें, और इसे मेरे आपूर्ति एजेंट (बटेश्वर) को भेजें मैं कैसे लिखूं, मुझे नहीं पता। लेकिन मुझे इस तरह लिखे। जैसा-
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
न्यूयॉर्क पोर्ट (यू.एस.ए.)
के माध्यम से हावड़ा
यूनाइटेड शिपिंग कॉर्पोरेशन
१४/२, ओल्ड चाइना बाज़ार सड़क
मेरे पत्र प्राप्त करने के तुरंत बाद मुझे बताएं कि आपने क्या व्यवस्था की है। आशा है, आप कुशल हैं।
स्नेह से आपका,
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
© गौड़ीय वेदांत प्रकाशन सीसी-बीवाय-एनडी
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