HI/661225 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"समस्त वैदिक साहित्य में एक ही बात है। वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्य: (भ.गी. १५.१५)। अंतिम लक्ष्य और अंतिम प्रयोजन, कृष्ण है। अत: भगवद् गीता में कहा गया है, सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज (भ.गी. १८.६६)। भागवतम कहता है, अकाम: सर्वकामो वा (श्री.भा. २.३.१०)। यदि आप भौतिक इच्छाएँ भी रखते हैं, तो भी आपको कृष्ण के ही शरण में जाना चाहिए। और श्री कृष्ण स्वयं पुष्टि करते हैं "भजते माम अनन्यभाक् साधुरेव स मन्तव्य: (भ.गी. ९.३०)। अपि चेत्सुदुराचारो।" व्यक्ति को भगवान् से पूछना नहीं चाहिए। किन्तु फिर भी, यदि कोई व्यक्ति पूछता भी है तो उसे स्वीकार किया जाता है, क्योंकि वह सही लक्ष्य, कृष्ण, के शरण पहुँचा है। वही उसकी उत्तम योग्यता है। वह कृष्णभावनामृत में है। इसलिए यद्यपि अनेक त्रुटियाँ भी क्यों न हो, किन्तु जब कोई कृष्णभावनाभावित हो जाता है तो सब सही ही हो जाता है।"
661225 - प्रवचन चै.च. मध्य २०.३३७-३५३ - न्यूयार्क