HI/670328 - ब्रह्मानन्द इत्यादि को लिखित पत्र, सैन फ्रांसिस्को
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ इंक.
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आचार्य:स्वामी ए.सी. भक्तिवेदान्त
28 मार्च, १९६७
मेरे प्रिय ब्रह्मानन्द,
मेरे प्रिय सत्स्वरूप
मेरे प्रिय रायराम
मेरे प्रिय गर्गमुनि,
मेरे प्रिय रूपानुग
मेरे प्रिय डॉनल्ड,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा २४ मार्च १९६७ का पत्र मिला है और इससे पहले मुझे एम एस विलियम अल्फ्रेड व्हाइट इंक. को सम्बोधित पत्र की एक प्रति भी प्राप्त हुई थी। मैंने मि.गोल्डस्मिथ के पत्र का उत्तर देते हुए इस गोरख धंधे का पूरा वृत्तान्त बताया है। यह समझा गया है कि मि.गोल्डस्मिथ का कथन है कि धन वापस मिलने की आशा बहुत ही कम है। ऐसे हालात में बिगड़े धन के पीछे अच्छा धन लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है। ६००० डॉलर पहले ही बिगड़ चुका है और इसके बाद और मात्रा में अच्छा धन नहीं खर्च करना चाहिए। इस बात को भूल जाओ। यह मान लो कि तुम्हारी समझी-बूझी मूर्खता के कारण कृष्ण ने यह धन तुमसे छीन लिया है। भविष्य में बहुत सतर्क रहना और कृष्ण के आदेशों का पालन करना। यदि तुम कृष्ण के आदेशों का पालन करोगे तो कृष्ण तुम्हें वह सबकुछ दे सकते हैं जिसकी तुम्हें आवश्यकता है। खुश रहो और बिना किसी प्रकार के दुःख के हरे कृष्ण जपो। जैसा कि मैंने तुम्हें पहले कई बार बताया है, मेरे गुरु महाराज कहा करते थे कि यह जगत किसी सज्जन के योग्य जगह नहीं है। उनके मत की पुष्टी श्रीमद्भागवतम् के निम्नलिखित श्लोक में की जाती है। कहा गया है किः
यस्यास्ति भक्तिर्भगवति अकिन्चना
सर्वै गुणैस्तत्र समासते सुराः
हरावभक्तस्य कुतो महद्गुणा
मनोरथेनसतो धावतो बहिः
जो व्यक्ति कृष्णभावनामृत में स्थित नहीं है, उसमें कोई भी सद्गुण नहीं है। भले ही वह कितना ही तथाकथित सज्जन अथवा शिक्षित क्यों न हो, वह केवल भौतिक आयाम में ही विचरतारहता है और फलतः वह बहिरंगा शक्ति द्वारा प्रभावित होकर कोई न कोई कुचेष्टा करने को बाध्य होता है। जबकि ऐसे व्यक्ति में, जिसकी परम पुरुष भगवान में सुदृढ़ श्रद्धा है, देवताओं के सभी सद्गुण विद्यमान रहते हैं। अन्य शब्दों में कहें तो, तुम्हें इस जगत के तथाकथित सज्जनों पर विश्वास नहीं करना चाहिए, फिर भले ही वे कितने ही अच्छे परिधान पहने हुए क्यों न हों। कृष्णभावनामृत का हमारा मिशन आगे चलाते हुए हमें ऐसे अनेकों तथाकथित सज्जनों के साथ मिलना होता है। लेकिन हमें इनके साथ में व्यवहार करते हुए उतना ही सतर्क रहना चाहिए, जितना सांपों के साथ में सावधानी रखी जाती है।
मैंने गीतोपनिषत् को छपवाने के लिए सैन फ्रांसिस्को के अच्छे छपाईखानों से दरें पूछीं हैं और हिसाब मिला है कि सजिल्द व सुनहरे शीर्षक के साथ में पांच हज़ार प्रतियों का खर्च कुछ ११००० डॉलर पड़ेगा। मेरे पास में यहां पर ५००० डॉलर होंगे। और मुझे यह जानकर प्रसन्नता होगी कि तुम कितना योगदान कर सकते हो, ताकि मैं यह कार्यभार ले सकूं। मेरी इच्छा है कि तुम बकाया राशि का योगदान मेरी पुस्तकें(श्रीमद्भागवतम्)बेचकर अथवा धन जुटा कर करो।
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