HI/670403 - मि. फुल्टन को लिखित पत्र, सैंन फ्रांसिस्को
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3 अप्रैल, 1967
मि. रिचर्ड फुल्टन इंक. 200 पश्चिम 57 वीं स्ट्रीट न्यू यॉर्क एन.वाई. 10019
प्रिय मि.रिचर्ड फुल्टन,
आपके 31 मार्च 1967 के पत्र के लिए मैं आपका बहुत धन्यवाद करता हूँ और मैंने इसे ध्यानपूर्वक पढ़ लिया है। पिक्सी रिकॉर्ड्स के मि.एलन कलमान मेरे शुभचिन्तक मित्र हैं और यह उनकी दया है कि उन्होंने मेरे ध्येय को आपके मूल्यवान प्रयासों के माध्यम से सहारा देने की इच्छा की।
मैं यहां अनुबंध को ठीक प्रकार हस्ताक्षर करके, मेरी गतिविधियों के संबन्ध में कुछ पत्रों सहित, भेज रहा हूँ। इन पत्रों में आप मेरे श्रीमद्भागवतम् साहित्य की एक प्रति प्राप्त करेंगे। और यदि आपको इस प्रकार के सहित्य की डाक प्राप्त करने में कोई आपत्ति न हो, तो मैं आपकी मनचाही मात्रा में प्रतियां आपको भेज सकता हूँ। आपके द्वारा, प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से, आए प्रत्येक ऑर्डर पर आपको वैसी ही कमीशन, अर्थात 33-1/3 प्रतिशत की कमीशन, मिलेगी।
आपका एक और बार धन्यवाद करते हुए मैं अपेक्षा कर रहा हूँ कि आप उत्तर जल्दी प्राप्त होगा। मैं 9 अप्रैल 1967 को युनाईटेड एयर लाईन के माध्म से न्यू यॉर्क लौट रहा हूँ।
निष्ठापूर्वक आपका,
ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी
संलग्नः हस्ताक्षर किया हुआ अग्रीमेंट व अन्य आठ पत्र
यह प्रमाणित किया जाता है कि श्री श्रीमद् त्रिदंडी-स्वामी भक्तिवेदान्त स्वामी महाराज, गौड़ीय मठ के संस्थापक आचार्य कृष्णकृपाश्रीमूर्ति श्री श्रीमद् भक्तिसिद्धांत सरस्वती प्रभूपाद के एक प्रामाणिक दीक्षा प्राप्त शिष्य हैं और उन्होंने नवम्बर 1959 में गौड़ीय वेदान्त समिति के संस्थापक-अध्यक्ष श्री श्रीमद् भक्ति प्रज्ञान केशव महाराज से सन्न्यास(जीवन का विरक्ति का आश्रम) ग्रहण किया था। भगवान चैतन्य महाप्रभू ने लगभग 500 वर्ष पूर्व पूरे भारत में कृष्णभावनामृत का प्रचार किया था और अपने सभी शिष्य वंषजों को भगवद्गीता एवं श्रीमद्भागवतम् के दर्शन को पूरे विश्व के सारे गाँवों और नगरों में प्रचार करने की मान्यता प्रदान की थी। इसलिए स्वामी भक्तिवेदान्त, चैतन्य महाप्रभू से चली गुरू परम्परा में, एक मान्यता प्राप्त प्रचारक एवं शिक्षक हैं। गौड़ीय वैष्णवों वेदान्तियों के लिए यह अपार हर्ष का विषय है कि त्रिदण्डी स्वामी भक्तिवेदान्त स्वामी महाराज इस सम्प्रदास का प्रचार पश्चिमी जगत में कर रहे हैं।
स्वामी बी.वी.नारायण
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