HI/670614 - ब्रह्मानन्द को लिखित पत्र, न्यू जर्सी
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लगुना शाखा, न्यू जर्सी
जून १४, १९६७
मेरे प्रिय ब्रह्मानंद,
कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। मैं जून १०, १९६७ के आपके पत्र की यथोचित प्राप्ति में हूं। हां, यह आपकी प्रार्थनाओं के कारण है कि इस बार मेरी जान बच गई। आंदोलन की आपकी सराहना बहुत उत्सुकतापूर्ण और दिलचस्प है। वास्तव में मैं भी अपने गुरु महाराज द्वारा आकर्षित किया गया था जब उन्होंने मुझे यकीन दिलाया कि भगवान होते हैं और हम उनके साथ रह सकते हैं। मैंने आप में भी वही दृढ़ विश्वास देखा और यह बहुत आमोदजनक है। हां, यह सबसे बड़ी खोज है। मानव समाज माया द्वारा सम्मोहित है, प्रत्येक व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी पर कार्य कर रहा है और वह भौतिक अस्तित्व में उलझते जा रहा है। मानव समाज में यही सबसे बड़ी भूल है। वे न केवल परमेश्वर को भूल गए हैं बल्कि उन्होंने खुले तौर पर घोषणा की है कि परमेश्वर मर चुका है। मूर्ख मानव समाज की यह घोषणा जीवन की सबसे बड़ी भूल है। इसलिए मैं आपके दृढ़ विश्वास की सराहना करता हूं और मुझे अभी बहुत खुशी हो रही है कि आप इस संदेश को बड़े पैमाने पर दुनिया में प्रचारित करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। मुझे यकीन है कि आप ऐसा कर सकते हैं क्योंकि आप सभी इस संदेश को बड़े पैमाने पर दुनिया में प्रचारित करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। मुझे विश्वास है कि आप ऐसा कर सकते हैं क्योंकि आप सभी जो मेरे पास आए हैं, वे सच्चे आत्मा हैं और आपने कृष्ण चेतना के भीतर के बल को समझा है। कृपया इस नए आंदोलन को संयुक्त रूप से प्रचारित करने का प्रयास करें।
मैं पहले ही सत्स्वरूप को समझा चुका हूं कि वर्तमान के लिए मैं शायद भारत लौट सकता हूँ और अपने स्वास्थ्य को सुधरने की कोशिश करूँगा और साथ ही वहां अमेरिकी घर शुरू करने की कोशिश करूँगा। मैं समझता हूं कि रब्बी न्यूमैन का रवैया बहुत उत्साहजनक नहीं है। इसलिए यदि मैं भारत जाकर भवन निधि का उपयोग करता हूं तो अच्छा होगा।
अगर हम वहां १०,००० डॉलर खर्च करते हैं तो हमारे कृष्ण चेतना के प्रचार के मामले में अमेरिकी युवाओं को प्रशिक्षण के लिए बहुत अच्छा आवास हो सकता है। हमने N.Y. में एक घर को प्राप्त करने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन अभी तक हम विफल रहे है और मुझे लगता है कि हम अपने घर के लिए और अधिक प्रयास किए बिना, किराए के घरों में हमारे केंद्रों को जारी रख सकते हैं। बल्कि हम प्रचार कार्य के लिए लड़कों को प्रशिक्षित कर सकते हैं, और उन्हें इस धर्मसिद्धान्त का प्रचार करने के लिए दुनिया के सभी हिस्सों में वापस भेज सकते हैं। ६ महीने के बाद अगर मैं स्वस्थ होता हूं तो मैं फिर से आपके साथ काम करने के लिए वापस आऊंगा। इसलिए मैं ऐसा ही करूंगा। आप, सत्स्वरूप और अन्य सदस्य इस मुद्दे पर चर्चा कर सकते हैं और निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं ताकि जब मैं न्यू यार्क लौटूंगा तब हम आवश्यक कार्य कर सकेंगे। इस बीच आप अपना फैसला कर सकते हैं। यहां तक कि मेरी अनुपस्थिति में भी गतिविधियों का कोई ठहराव नहीं होगा, पत्राचार के नियमित आदान-प्रदान से यह अच्छी तरह से चलेगा और कोई कठिनाई नहीं होगी। अंत में मैं आपको सूचित करना चाहता हूँ कि यदि मुझे अपना स्थायी वीजा मिलता है और यदि रब्बी न्यूमैन हमें घर देने के लिए सहमत हैं तो मैं भारत नहीं लौटूंगा--यह मेरी आंतरिक इच्छा है।
आपका नित्य शुभचिंतक,
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
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