HI/670720 - सुमति मोरारजी को लिखित पत्र, स्टिनसन बीच
२० जुलाई, १९६७
मैडम सुमति मोरारजी बाई साहेबा,
कृपया भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद और मेरा अभिवादन स्वीकार करें। मैं १२ जुलाई, १९६७ के आपके पत्र की प्राप्ति में हूं। मैंने अपने शिष्यों को सलाह दी है कि वे आपके विज्ञापन को बैक टू गोडहेड में मुफ्त में प्रकाशित करें।
वृंदावन में वृंदावन बिहारी भगवान कृष्ण के कमल चरणों पर लौटने की मेरी प्रबल इच्छा है; और इसलिए मैंने तुरंत भारत लौटने का फैसला किया है। मैं समुद्र के माध्यम से लौटना चाहता था, जैसा कि आपने इतनी कृपा करके अपने पत्र में जलयात्रा की पेशकश की है, लेकिन स्वास्थ्य के अपने अनिश्चित स्थिति में संभव नहीं है। तो कृष्ण की दया से और यहां एक दोस्त के माध्यम से, किसी न किसी तरह, मुझे हवाई यात्रा प्राप्त हुई है, और मैं अगले शनिवार को नई दिल्ली के लिए यहां से रवाना होने की उम्मीद कर रहा हूं, दिनांक २४ को तुरंत, समय ७:३० बजे, पालम हवाई अड्डे पर पहुँचूँगा। वहां से मैं दिल्ली में कुछ दिनों के आराम के बाद वृंदावन के लिए प्रस्थान करूंगा।
मैं समझ सकता हूं कि वर्तमान में आप मेरे शिष्यों को मुफ्त यात्रा की अनुमति नहीं दे सकते हैं। लेकिन अगर आप कम से कम निकट भविष्य में ऐसा नहीं करते हैं, तो मेरा मिशन आधा समाप्त हो जाएगा या विफलता होगी। मैं सिर्फ प्रोफेसर डेविस हेरॉन से, और न्यू यॉर्क विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रॉबर्ट्स से, मेरे प्रमुख शिष्यों (ब्रूस शार्फ) में से एक के लिए, प्रशंसा का एक पत्र संलग्न कर रहा हूं। मुझे लगता है कि ये पत्र आपको समझाएंगे कि कृष्ण भावनामृत का मेरा आंदोलन पश्चिमी दुनिया में कितना मज़बूत हो रहा है। मेरी जानकारी में हरे कृष्ण के पवित्र नाम अब न केवल इस देश में बल्कि इंग्लैंड, हॉलैंड, और मेक्सिको में भी जपे जा रहें हैं। यह और भी व्यापक हो सकता है। मैंने आपको एक ग्रामोफ़ोन का रिकॉर्ड भेजा है जो मुझे आशा है कि आपको इस समय तक प्राप्त हुआ होगा। आपको यह जानने में ख़ुशी होगी कि कृष्ण के पवित्र नाम को पश्चिमी दुनिया द्वारा कैसे सराहा जा रहा है।
इसलिए यह आवश्यक है कि यह आंदोलन पूरे देश में फैलाया जाए। यह भारत के लिए और हिंदू धर्म के लिए गौरवशाली है। इसलिए कृपया मेरे साथ पूरा सहयोग करें। वर्तमान के लिए, मेरे दो शिष्यों को मेरे स्वास्थ्य के खातिर, और श्रीमद भागवतम के संपादकीय कार्य के लिए, वहां मेरी सहायता करने के लिए भारत आना ज़रूरी है। इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि मेरे मुफ्त यात्रा के बजाय, कृपया मेरे मुख्य शिष्यों में से एक श्रीमन हयग्रीव ब्रह्माचार्य, (श्री हावर्ड व्हीलर एम ए) को भारत के लिए मुफ्त यात्रा, और एक अन्य शिष्य, जो मेरी व्यक्तिगत देखभाल करेगा, उसके लिए आधा किराया लिए जाने की अनुमति दें। भविष्य के लिए आप बाद में विचार कर सकते हैं।
पूरा विचार यह है कि इस बुढ़ापे में मेरी उदासीन सेहत के कारण ऐसा हो सकता है कि मैं दोबारा वापस न आ सकूं। लेकिन मैं वृंदावन में अपने कुछ शिष्यों को प्रशिक्षित करना चाहता हूँ। मैं बहुत अच्छी तरह से किसी भी व्यक्तिगत हस्तांतरण के बिना, इस मिशन के कार्य को फैला सकता हूँ। इसलिए कृपया कृष्ण के लिए जहां तक संभव हो मेरे साथ सहयोग करें।
आपको यह जानकर खुशी होगी कि निम्नलिखित स्थानों पर केंद्र पूरे जोरों पर चल रहे हैं: (१) न्यू यॉर्क; (२) मॉन्ट्रियल, कनाडा; (३) सैन फ्रांसिस्को; और अगले कई महीनों के भीतर निम्नलिखित स्थानों पर निम्नलिखित केंद्र खोले जाने वाले हैं: (१) बोस्टन; (२) वाशिंगटन, डी.सी. (३) वैंकूवर, कनाडा; (४) लॉस एंजिल्स; और (५) न्यू मैक्सिको (सैन्टा फै)।
भारत में मेरे कुछ मित्र श्री मूर्तियों को(राधा-कृष्ण) भेज रहे हैं, और हम स्थानीय रूप से जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा कि मुर्तियों को मंदिरों में स्थापित करने के लिए प्राप्त कर रहे हैं। मूर्तियों को फूलों और फलों से पूजा की जा रही है, और सुबह-शाम दोनों जगह कीर्तन और श्रीमद भागवतम का पाठ किया जा रहा है। क्या आपको नहीं लगता कि यह आंदोलन भारत और विश्व दोनों के लिए गौरवशाली है? कृपया, इसलिए पूरे मन से मेरा सहयोग करें।
मैं उत्सुकता से आपके उत्तर का इंतजार करूंगा, जो कृपया संबोधित करें:
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
सी/ओ परम पावन बी.वी. नारायण महाराज
केश्वजी गौडिया मठ
पी.ओ. मथुरा
यू.पी.
उत्तर पत्र न्यू यॉर्क भी भेजी जा सकती है।
आपको एक बार फिर धन्यवाद।
आपका नित्य शुभचिंतक,
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
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