HI/670916 - जयानंद को लिखित पत्र, दिल्ली
दिल्ली सितम्बर १६, १९६७ [हस्तलिखित]
मेरे प्रिय जयानंद,
कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। मैं ३० अगस्त का आपका पत्र प्राप्त करके बहुत खुश हूं, और मैं यह भी जानता हूं कि आप भगवान कृष्ण के एक शुद्ध भक्त हैं। जब आप अपनी कार चलाते हैं तो आप हमेशा "हरे कृष्ण" का जाप करते हैं, और जब मैं आपके साथ था तो मैं समझ सकता था कि आपने कृष्ण भावनामृत के दर्शन को कितनी दिल से स्वीकार किया है। कृष्ण सभी पर बहुत उदार हैं, लेकिन वह अपने सच्चे भक्तों पर विशेष रूप से कृपालु हैं। कृष्ण हमेशा हमारे साथ है, हमारे ह्रदय में हैं, और वह हमें हमेशा राह दिखने के लिए तत्पर रहते हैं, लेकिन क्योंकि हर कोई स्वतंत्र है कृष्ण सहयोगात्मक प्रतिक्रिया करतें है। जो कोई स्वेच्छा से कृष्ण की इच्छा के साथ सहयोग करता है, वह उसके पुकार का बहुत उत्सुकता से जवाब देते हैं। कृष्ण हमें भगवत गीता सिखाने के लिए अवतरित होते हैं, और हमारे सहयोग की भीख मांगते हैं, और जो भी उनके साथ सहयोग करता है, वह धन्य हो जाता है। आप ईमानदारी से कृष्ण के साथ सहयोग कर रहे हैं, और इसलिए आप सैन फ्रांसिस्को में सभी लड़के और लड़कियों, सौहार्दपूर्वक एक साथ काम कर रहे हैं। समरसता का अर्थ है कृष्ण भावनामृत। कृष्ण भावनामृत के बिना संसार में समरसता नहीं हो सकती। मुझे जन्माष्टमी समारोह के सफल प्रदर्शन का विवरण मिला है। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि आप आगे की पढ़ाई के लिए भारत आने के इच्छुक हैं। मुझे दयानन्द या उनकी पत्नी नंदरानी का कोई पत्र नहीं मिला। मैं लॉस एंजिल्स केंद्र का विवरण प्राप्त करने के लिए उत्सुक हूं। मैं उनका पता नहीं जानता। आपकी पावती "कृष्ण मुझ पर बहुत दयालु रहे हैं" उल्लेखनीय है। आप जप के फल को साकार कर रहे हैं। जहाँ तक मेरे स्वास्थ्य का संबंध है, कृष्ण की कृपा से मैं सुधार कर रहा हूं, और यह मेरी अनुपस्थिति की अपनी भावना के कारण है, और मेरी वापसी के लिए व्यग्रता से इंतजार करना। कृपया अपने धर्मभाईओं के बीच सहयोग करते रहें। मैं हमेशा आपके साथ हूं, कभी ना मने कि मैं शारीरिक रूप से अनुपस्थित हूं। कृपया सभी लड़के और लड़कियों को मेरा आशीर्वाद दें, और उन्हें बताएं कि मैं लौटने के लिए बहुत उत्सुक हूं।
आपका नित्य शुभ-चिंतक,
मुकुंद, जानकी, जयानंद
सी/ओ इस्कॉन
५१८, फ्रेडेरिक गली
सैन फ्रांससिस्को
कैलिफ़ोर्निया [हस्तलिखित]]
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
२४३९, [अस्पष्ट]
दिल्ली ६ [हस्तलिखित]
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