HI/670929 - कृष्ण देवी को लिखित पत्र, दिल्ली
सितम्बर २९,६७ [हस्तलिखित]
मेरी प्रिय कृष्ण देवी,
कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। मैं आपकी शादी के संबंध में आपके संक्षिप्त लेख की प्राप्ति में हूँ। अब तक मैं जानता हूं कि आप मेरे सामने सुबल दास के साथ विवाहित हो चुके हैं, और आप अपनी पिछले सारे जनम भूल गएँ हैं। अब आप अन्य सभी दायित्वों से मुक्त हो गए हैं, क्योंकि आपने खुद को कृष्ण के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। ऐसे समर्पण का किसी के प्रति कोई अधिक बंधन नहीं है। जहाँ तक सुबल की बात है वह भी एक आत्मसमर्पण आत्मा है, और इस तरह आपका संयोजन भगवान की सेवा के लिए उचित है। आपके पास, कृष्ण के अनुग्रह से, एक पूर्ण आयोजित मंदिर विकसित करने के लिए बहुत अच्छी जगह मिली है, और आपके पति सेवा का संचालन करने के लिए सक्षम बन रहे हैं। मैंने पहले ही उन्हें निर्देश दिया है कि चीजों को कैसे करना है, और यह न्यू मैक्सिकन पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। कृपया दोनों पति और पत्नी निर्देशों का पालन करें, और अपने गुरु भाइयों और बहनों को ईमानदारी से निर्देशों का पालन करने में मदद करें। कृष्ण हमेशा आपके साथ हैं, बशर्ते आप उनकी सेवा में ईमानदार हों और अपने आध्यात्मिक गुरु के प्रति निष्ठावान हों, यही सफलता का रहस्य है। यह सादा और सरल है, कृपया वफादार और ईमानदार बनने की कोशिश करें। आप बहुत बुद्धिमान, और भगवान के भक्त हैं। कृपया यह जान लें कि मैं किसी के अलगाव को स्वीकार नहीं करता, जो मेरे द्वारा विवाहित हैं। यदि वे असहमत हैं, तो वे अलग-अलग रह सकते हैं, लेकिन तलाक नहीं हो सकता। जब कोई अलग होता है, तो पूरी तरह से कृष्ण में समर्पित हो सकता है, लेकिन दुबारा शादी नहीं। यदि इसका पालन नहीं किया जाता है, तो मैं भविष्य में किसी की शादी में भाग नहीं लूंगा। मुझे उम्मीद है कि आप मुझे गलत नहीं समझेंगे, और यथोचित कार्रवाई करेंगे। आशा है कि आप अच्छे हैं।
आपका नित्य शुभचिंतक
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
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