HI/671009 - श्री कृष्णा पंडितजी को लिखित पत्र, दिल्ली
[हस्तलिखित]
श्री गुरु और गौरांग के महिमा की जय हो
दिल्ली
९/१०/६७
मेरे प्रिय श्री कृष्णा पंडितजी,
कृपया मेरा अभिवादन स्वीकार करें। मैं आज कलकत्ता के लिए जा रहा हूँ क्योंकि यह पहले से ही तय था। आपने कल दोपहर २ बजे मुझसे मिलने आने का वादा किया था। लेकिन आप नहीं आए; जब मैं वृंदावन में था तो आपने कई बार मुझे दिल्ली आने के लिए कहा और मैं आया और यहां एक महीने तक रहा, लेकिन आपने कमरे के बारे में कुछ नहीं किया, मैं दिल्ली नहीं आया होता, कम से कम मेरा स्वरधर यन्त्र चोरी न होता, अब आप निश्चित रूप से मुझे अपने निर्णय के बारे में मेरे कलकत्ता के पते पर बता सकते हैं जो पृष्ठ के दूसरी तरफ है।
(१) यदि आप ट्रस्ट को अंतराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ को स्थानांतरित करना चाहते हैं तो संस्था मंदिर के सुधार के लिए सब कुछ करेगी, और संस्था की ओर से आपको भुगतान पूर्णकालिक प्रबंधक के रूप में भी नियुक्त करेगी। आपने ३००/- रुपये प्रति माह मांगा और यह इसके साथ सहमत है।
(२) यदि नहीं तो मैं अपने बैंक कार्मिक को बिना किसी चूक के आपको २५/- रुपये प्रति माह का भुगतान करने की सलाह देने के लिए तैयार हूं, लेकिन कमरे की चाबी मेरे पास रहेगी।
(३) मैंने अपना मुद्रण का कार्य शुरू नहीं किया है, क्योंकि आपने कमरे के बारे में कुछ नहीं कहा है। यदि आप उपरोक्त में से किसी एक में कमरे के बारे में तय करते हैं (१) और (२) (प्रस्तावित)(?) मैं कलकत्ता से वापस (आऊं?), जरूरी कार्य करूंगा, और फिर मैं यू.एस.ए. वापस जाऊं। यदि आप कुछ भी तय नहीं कर रहे हैं(?) कमरे के विषय में, तो शायद मैं दिल्ली वापस नहीं आऊंगा। मैं कलकत्ता से प्रशांत (मार्ग ?) से सीधे यू.एस.ए. जाऊंगा, जिसके लिए श्री डालमिया सेठ ने पहले ही टिकट के लिए रु ५,५००/- देना का वादा किया है। तो कृपया इस पत्र का मेरे कलकत्ता के पते पर उत्तर दें, और (?) आशा है कि यह पत्र आपको स्वस्थ रूप में प्राप्त होगा।
आपका स्नेही,
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
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