HI/680124 - मधुसूदन को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस
त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
आचार्य:अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
शिविर:इस्कॉन राधा कृष्ण मंदिर
5364 डब्ल्यू. पिको बुलेवार
लॉस एंजेल्स कैल 90019
दिनांक: 24 जनवरी, 1968
मेरे प्रिय मधुसूदन,
मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। रायराम के हाथों भिजवाये गये तुम्हारे पत्र के लिये तुम्हारा आभारी हूँ। हाँ, 15 मिनट के लिए भोग को भगवद्विग्रहों के समक्ष रखना पर्याप्त है। भगवान जगन्नाथ को शय्या पर लिटाने की आवश्यकता नहीं है। मंत्रों के माध्यम से कहो के, हे भगवन्, कृपया विश्राम ग्रहण करें। मंदिरों में श्रीविग्रहों के दो जोड़े होते हैं। बड़े विग्रह सदा सिंहासन पर विराजमान रहते हैं, जबकि छोटे व्यवहारिकता में, विहार पर जाते हैं, शय्या पर शयन करते हैं इत्यादि। वस्तुतः इन बड़े और छोटे जोड़ों में कोई अन्तर नहीं है।
उस प्रार्थना का अर्थ – मैं विनीत भाव से सम्मान युक्त साष्टांग प्रणाम अर्पित करता हूँ अपने गुरुदेव को, जिन्होने मुझ अन्धकार में पड़े हुए की आंखें ज्ञान की मशाल से खोल दीं।
भक्तिसारंग महाराज के भाषणों की वह पुस्तक सम्भाल कर रखी जा सकती है। उसे वापस किया जाएगा। इसी बीच में, यदि तुम चाहो तो टाइपराइटर द्वारा उसे कॉपी कर सकते हो।
मेरे प्यारे बेटे, कृष्ण के लिये भाषण देने का इस शरीर से कोई सम्बन्ध नहीं है। यदि मैंने भाषण न दिये होते, तो तुम कैसे आ पाते। तो जहाँ तक संभव हो, मैं अपने स्वास्थ्य का ध्यान तो रख रहा हूँ, किन्तु कृष्ण की सेवा प्राणों को संकट में डालकर भी करनी ही है। जीवात्मा को शरीर धारण करने के तो लाखों अवसर प्राप्त हो जाते हैं। लेकिन बड़े ही विरले कभी कृष्ण की सेवा का अवसर लाभ होता है। सब कुछ ताक पर रख कर भी कृष्ण की सेवा तो करनी ही है। पर निश्चिन्त रहो। गौरसुन्दर की सहायता से मैं अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख रहा हूँ। आशा करता हूँ कि तुम अच्छे हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षर)
इस्कॉन
26 सेकेण्ड ऐवेन्यू
न्यू यॉर्क, न्यू यॉर्क, 10003
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