HI/680224 - ब्रह्मानंद को लिखित पत्र, लॉस एंजेलिस
ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी
शिविर: इस्कॉन- राधा कृष्ण मंदिर
५३६४ डब्ल्यू। पिको ब्लड, एल. ए. कैल। ९००१९
२४ फरवरी, १९६८
मेरे प्रिय ब्रह्मानंद,
कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। मैं आपके दिनांक १९ फरवरी, १९६८ के पत्र की प्राप्ति की स्वीकृति देना चाहता हूँ और मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई कि आपने मेरे गुरु महाराज की आविर्भाव तिथि पर मैकमिलन एंड कंपनी को भगवद्गीता की पांडुलिपि वितरित किया। आपने मुझे जो प्रश्नावलियाँ भेजी हैं, उनका उत्तर मैं अलग-अलग टाइप किए हुए कागज पर दे रहा हूँ और दोनों प्रश्न और उत्तर इसके साथ संलग्नित हैं। कृपया इसे ग्रहण करें और आवश्यक कार्य करें। मुझे मारियो विंडिश के पत्र भी मिले हैं। यह सज्जन मेरे जर्मन गुरु-भाई सदानंद स्वामी के शिष्य प्रतीत होते हैं। ऐसा लगता है, कि वह हमारे आंदोलन में बहुत रुचि रखते हैं और बहुत जल्द ही वह मॉन्ट्रियल का दौरा करेंगे। संभवतः मैं जून में उनसे मिलूँ, क्योंकि तब मैं वहाँ जाऊँगा और वहाँ दो केंद्र खोलने की पूरी संभावना है। एक स्वीडन में और दूसरा ऑस्ट्रिया में। चमकदार फोटो के संबंध में, मैं गुरुदास को लिख रहा हूँ, परंतु मेरे अनुसार रायराम के पास मेरी तस्वीर के कई नमूने उपलब्ध हैं। आप चाहें, तो उनमें से किसी एक का चुनाव कर सकते हैं। मैं इस संबंध में गुरुदास को भी लिख रहा हूँ। मेरी समझ में, आपने गौड़ीय मठ से कुछ पुस्तकें मँगवाई हैं और श्री कलमन आपको उसमें सहयोग दे रहे हैं।
भारत में छपाई के संबंध में, मैंने पहले ही आपको छपाई की एक प्रति नमूने के रुप में भेज दी है, जिसकी छपाई भारत में की जा रही है और यदि वांछित हो तो ऐसा मुद्रण कार्य भारत में बिना किसी कठिनाई के किया जा सकता है। लेकिन यदि दाई निप्पॉन कंपनी आपके उस पत्र से सहमत हो जाती है जिसकी प्रति आपने मुझे भेजी है, तो आप जितनी जल्दी हो सके पांडुलिपि उन्हें सौंप सकते हैं। प्रेस की खरीद के संबंध में, मुझे नहीं पता कि प्रेस की क्या स्थिति है लेकिन मैं एक पूर्ण प्रेस चाहता हूँ, जहाँ सभी प्रकार की किताबें मुद्रित की जा सकें। यदि हमारे लोग न्यूयॉर्क या भारत में एक अच्छे प्रेस का कार्यभार संभाल सकते हैं, तो यह एक आदर्श प्रस्ताव होगा। लेकिन जिस प्रेस को आप खरीदने का प्रस्ताव दे रहे हैं, वह हमारी पुस्तकों को छापने के लिए उपयुक्त नहीं है। यदि श्री कलमन हमारे प्रेस को पुस्तकों, विशेष रूप से भागवतम् और अन्य पुस्तकों को भी छापने के लिए ले सकें और यदि हमारे लड़के और लड़कियाँ मुद्रण कार्य कुशलता से कर सकें, तो यह बहुत अच्छा होगा। यदि हमारे पास पूर्ण उपकरणों से युक्त एक प्रेस नियंत्रण में है तो यह एक बड़ा वरदान होगा। यदि ऐसा कार्यसाधन संभव नहीं है, तो मैं चाहता हूँ कि हमारी भारतीय शाखा में एक अच्छा प्रेस आरंभ हो और वहाँ हमारी सभी पुस्तकें और छपाई का कार्य वहीं हो।
हमारी भारतीय शाखा की एक अच्छी व्यवस्था के लिए, मैं पहले से ही भारतीय मित्रों के साथ बातचीत कर रहा हूँ और मैंने एक बड़े उद्योगपति को भारतीय शाखा का अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव दिया है। भारत में आपके देश की तुलना में श्रम बहुत सस्ता है। और विशेष रूप से, यदि वृंदावन में हमारी भारतीय शाखा होती है, तो हम वहाँ अपने संस्था के सहवासियोॆ से श्रम ले सकते हैं। बहुत से वैष्णव हैं, जो बिना किसी पुरस्कार के केवल अपने भोजन और आवास के प्रतिरुप कार्य करने के लिए तैयार होंगे। अगर हम वहाँ अमेरिकी मशीनें और अपने कुछ अमेरिकी छात्रों को प्रबंधन देखने के लिए ले जाएँ, तो हम वहाँ बिना किसी शुल्क के व्यावहारिक रूप से श्रम प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन इस विचार को पालन तब किया जा सकता है, जब हमें सब कुछ समायोजित करने के लिए एक अच्छा घर मिल पाए। कानपुर में प्रस्तावित शाखा अभी तक स्थायी नहीं हो पाई है। मुझे अच्युतानंद का एक पत्र मिला है, जो बहुत उत्साहजनक नहीं है। रायराम भारत के लिए तब तक अग्रसर नहीं हो सकता, जब तक हमारी भारतीय शाखा के लिए अच्छी व्यवस्था नहीं हो जाती। उनका वर्तमान में न्यूयॉर्क से दूर जाना, बी.टी.जी के कार्य में एक बड़ी बाधा होगी। जैसाकि आपके द्वारा सूचित किया गया है, मैं भारत में प्रेस और मुद्रण कार्यों के संबंध में रायराम के पत्र की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। इस बीच, यदि आपको दाई निप्पॉन से टी.एल.सी के लिए $5000 स्वीकार करने के लिए सहमत होने की पुष्टि मिलती है, तो आप उनसे बिना किसी विलंब के प्रिंट करवा सकते हैं। भगवद्गीता के स्केच कवर के संबंध में, गोविंद दासी अगले सप्ताह तक भेजने का वचन देती है।
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