मूल रूप से विचार यह है कि, समाज में, जो लोग बुद्धिजीवी हैं, जो बौद्धिक कार्य में लगे हैं, उन्हें ब्राह्मण कहा जाता है । ब्रह्म को समझने के लिए, इस दुनिया की स्थिति को समझने के लिए, वे आध्यात्मिक ज्ञान को समझते हैं । जो लोग इस ज्ञान को समझने में लगे हुए होते है, उन्हें ब्राह्मण कहा जाता था । लेकिन वर्तमान समय में जो कोई भी ब्राह्मण के परिवार में पैदा होता है, उसे ब्राह्मण कहा जाता है । लेकिन वास्तव में वह एक मोची भी हो सकता है । लेकिन यह विचार नहीं है । मानव समाज के आठ विभाग, मानव समाज के वैज्ञानिक विभाजन, अब खो गए हैं । इसलिए चैतन्य महाप्रभु ने निर्देश दिया कि कलौ, 'इस युग में', इस युग में नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा (CC Adi 17.21), 'मानव समाज के जीवन के लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिए कोई अन्य विकल्प नहीं है' । क्योंकि मानव समाज जीवन के लक्ष्य में आगे बढ़ने के लिए है, और जीवन का लक्ष्य है कृष्ण भावनामृत ।
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