कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, सर्वधर्मान् परित्यज्य मामे एकम शरणं व्रज (भ.गी. १८.६६): "मेरे प्रिय अर्जुन, तुम समस्त प्रकार के कार्यो का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । बस मेरी सेवा में प्रवृत्त हो या फिर मेरे आदेशों का पालन करो ।" "फिर अन्य चीजों के बारे में क्या?" कृष्ण आश्वासन देते है, अहं त्वाम सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि । अगर कोई यह सोचता है कि "अगर मैं अन्य सभी कार्यो को छोड़ दूं और बस आपकी सेवा में लगा रहूं, आपके आदेश को पूरा करने के लिए, तो मेरे अन्य कार्यो का क्या होगा ? मेरे और भी कई कर्तव्य हैं । मैं अपने पारिवारिक मामलों में व्यस्त हूं, मैं अपने सामाजिक मामलों में व्यस्त हूं, मैं अपने देश के मामलों में व्यस्त हूं, सामुदायिक मामलों में व्यस्त हूं, बहुत सी चीजें... फिर उन चीजों के बारे में क्या ?" कृष्ण कहते हैं कि "वो मैं देखूंगा, की आप इसे ठीक से कैसे कर सकते हैं ।"
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