HI/680807 - नेथन बरुच को लिखित पत्र, मॉन्ट्रियल

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


7 अगस्त, 1968

मेरे प्रिय नेथन बरुच,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। बिना दिनांक के तुम्हारे पत्र को प्राप्त कर मैं बहुत प्रसन्न हूँ।(भविष्य में पत्राचार करते हुए दिनांक इंगित करने का प्रयास करना।)मुझे तुम्हारा पत्र दो दिन पहले प्राप्त हुआ था, लेकिन डाक हड़ताल के कारण उसका उत्तर नहीं दे पाया। डाक हड़ताल कल तक समाप्त होने की आशा है, चूंकि उनके समझौते की घोषणा हुई है। फिर भी, मुझे पक्का नहीं मालूम। इसलिए मैं तुम्हारे पत्र के उत्तर को बॉस्टन से भेज रहा हूँ। आशा है कि यह तुम्हें विधिवत् प्राप्त हो जाएगा।

तुम्हारा पत्र बहुत उत्साहवर्धक है और मैं सोचता हूँ कि भविष्य में तुम्हारे उत्साह व ऊर्जा को कृष्ण की प्रेममयी सेवा में बहुत अच्छी तरह से लगाया जा सकता है। हममें से प्रत्येक में, कृष्ण से निःसृत अच्छी ऊर्जा, किसी परिमाण में उपस्थित होती है। और जब उसे आध्यात्मिक गुरु के दक्ष निर्देशन के अंतर्गत लगाया जाता है, तो जीवन सफल हो जाता है। यही कृष्णभावनामृत का गोपनीय सूत्र है। आध्यात्मिक गुरु अवश्य ही कृष्ण के एक प्रामाणिक प्रतिनिधि होने चाहिएं जिन्होंने गुरु परम्परा द्वारा, अपने वरिष्ठजनों से निर्देश प्राप्त किए हों। और शिष्य को गुरु के आदेशों के अनुरूप चलना स्वीकार करना चाहिए।

आध्यात्मिक प्रगति करने का यही सरल मार्ग है। यदि तुम इस सिद्धांत को स्मरण रखो, तो बहुत ही अच्छा रहेगा। यदि तुम राधा कृष्ण मूर्ति को अच्छी तरह से तराश सको, तो संघ के लिए एक बहुत बड़ी सेवा होगी। एक किस्म की लकड़ी है जो बहुत कठोर व बलशाली होती है और काली एवं भारी भी। भारत में हम उसे आयरन वुड कहते हैं। मैं सोचता हूँ कि यहां उसे एबनी कहा जाता है। यदि तुम इस एबनी लकड़ी से कृष्ण और एक और किस्म की स्वर्णिम व अत्यन्त कठोर लकड़ी से राधारनी व भगवान चैतन्य तराश सको(सभी ऊंचाई में 24 इंच और राधारानी थोड़ी कम), तो तुम तरन्त इस कार्य को शुरु कर सकते हो। मैं यह जानकर बहुत प्रसन्न हूँ कि तुम हर प्रकार से कृष्ण की सेवा करना चाहते हो। यह मनोस्थित बहुत विरली है और मेरा अनुमान है कि अपने पिछले जीवन में तुम कृष्ण की सेवा में संलग्न थे। कई पुण्यमय जीवनकाल बीतने पर कृष्ण की सेवा करने को उत्सुक होना, सबसे बड़ी उपलब्धि है। तो मैं तुम्हें तत्काल यह कार्य प्रारम्भ करने की जिम्मेदारी देता हूँ। और इस कला को पूर्णतः दक्ष बनाने में अपनी ऊर्जा को केन्द्रित करो। जहां तक राधा कृष्ण मूर्तियों की बात है, तो वहां सैन फ्रांसिस्को में तुम्हारे पास कई तस्वीरें हैं। और तुम उनके अनुरूप कर सकते हो। और जहां तक चैतन्य महाप्रभु मूर्ति की बात है, मैं एक अपरिष्कृत रूपरेखा यहां तुम्हें दे रहा हूँ। (मुरारी के पास गौरसुन्दर द्वारा मेरे निरीक्षण में बनाई गई एक रूपरेखा है। तुम उसे भी देख सकते हो।)

जहां तक संकीर्त्तन की बात है, वह हर स्थिति में चलते रहना चाहिए। हरे कृष्ण का जप, संकीर्त्तन हमारा प्राणधन है। उसके साथ-साथ यदि संभव हो तो तुम इस्कॉन रेस्तरां व प्रसाद वितरण का प्रयास कर सकते हो। लेकिन मैं सोचता हूँ कि वह अमुख्य है। तुम्हारे पत्र से मुझे पता चलता है कि तुम्हारे पास विभिन्न ऊर्जाएं हैं और तुम उन सभी को कृष्ण की सेवा में लगाना चाहते हो। कृपया उपरोक्त निर्देशों के अनुसार कार्य करो। इससे मुझे बहुत आनन्द मिलेगा और अन्य सभी को हर्ष होगा।

आशा करता हूँ कि तुम ठीक हो और जवाबी डाक से तुम्हारा उत्तर प्राप्त कर मुझे खुशी होगी। कृपया वहां सभी शिष्यों को मेरे आशीर्वाद देना और कृष्ण दास को सूचना दे देना कि मुझे उसकी माताजी द्वारा भेजा एक पत्र मिला है और मैं एक या दो दिन में उसका उत्तर दूंगा। कृष्ण दास की माताजी के पत्र के लिए मैं उनका बहुत आभारी हूँ और आशा करता हूँ कि वे स्वस्थ एवं प्रसन्नचित्त हैं।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी

ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी