HI/680911- श्यामा-दासी को लिखित पत्र, सैन फ्रांसिस्को
11 सितम्बर, 1968
मेरी प्रिय श्यामा दासी,
कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। मैं 10 सितम्बर, 1968 के आपके पत्र तथा आपकी सुन्दर प्रस्तुतियों के लिए आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ, जिन्हें मैंने सहर्ष स्वीकार किया है। वेदों में कहा गया है कि कृष्ण को समझ लेने मात्र से ही व्यक्ति सब कुछ समझ जाता है। इसका अर्थ है कि दो विभागीय शिक्षा नीतियाँ हैं; एक विभागीय शिक्षा आध्यात्मिक शिक्षा है, तथा दूसरी विभागीय शिक्षा प्रणाली भौतिक शिक्षा है। जो व्यक्ति भौतिक शिक्षा में बहुत ऊँचा है, वह आध्यात्मिक किसी भी चीज़ को नहीं समझ सकता। लेकिन जो व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक शिक्षा में बहुत ऊँचा है, वह भौतिक किसी भी चीज़ को समझ सकता है। दूसरे शब्दों में, सभी भौतिक वस्तुएँ आध्यात्मिक आत्मा पर निर्भर हैं। जैसे आपका शरीर, मेरा शरीर, यह भौतिक शरीर, वे आत्मा के आधार पर विकसित हुए हैं। इसलिए, कृष्ण परम आत्मा हैं, जो व्यक्ति कृष्ण को समझने का प्रयास करता है, वह बाकी सब कुछ समझ सकता है। उत्तर में दिए गए पत्र के आपके कथन से, मैं समझ सकता हूँ कि कृष्ण की कृपा से, आप कृष्ण भावनामृत में सुधार कर रहीं हैं। और यदि आप इसी भावना से अपना दृष्टिकोण बनाए रखेंगी, तो निश्चित रूप से इसी जीवन में आप पूर्णता की अवस्था तक पहुँचने में सफल होंगी। आपकी आँखें खोलना मेरा कर्तव्य है, क्योंकि आध्यात्मिक गुरु वह है जो अपने शिष्यों को अज्ञान, भ्रम के अंधकार से बचा सकता है। इसलिए मैं अपना कर्तव्य निभाने की पूरी कोशिश कर रहा हूँ, और यदि आप मेरा पूरा सहयोग करेंगी, तो निश्चित रूप से आप और मैं दोनों अपने मिशनरी कार्य में सफल होंगे।
आप ध्यान दें कि कल रात मैंने आपको मंत्रों के बारे में जो कागज़ दिया था, उसमें तीसरा मंत्र इस प्रकार सुधारा जाना चाहिए: धियो यो नः प्रचोदयात् के स्थान पर, यह तन्ना गुरो प्रचोदयात् होना चाहिए। धियो यो नः के स्थान पर तन्ना गुरो शब्द होना चाहिए। कृपया इस पर ध्यान दें।
स्वादिष्ट आम के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद, और मैं बना रहूँगा
आपका सदैव शुभचिंतक,
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
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