जैसे हजारों और हजारों मील दूर आप टेलीविजन चित्र या अपनी रेडियो ध्वनि स्थानांतरित कर सकते हैं, उसी तरह, यदि आप खुद को तैयार कर सकते हैं, तो आप हमेशा गोविंद को देख सकते हैं । यह मुश्किल नहीं है । यह ब्रह्म-संहिता मे कहा गया है - प्रेमाँजन छुरित भक्ति विलोचनेन । बस आपको अपनी आंखें, अपने दिमाग को उस तरह से तैयार करना होगा । आपके दिल के भीतर एक टेलीविजन बॉक्स है । यह योग की पूर्णता है । यह नहीं है कि आपको एक मशीन, या टेलीविज़न सेट खरीदना है । यह वहां है ही, और ईश्वर भी वहीं है । आप देख सकते हैं, आप सुन सकते हैं, आप बात कर सकते हैं, बशर्ते आपको मशीन मिल गई हो, आपको उसकी मरम्मत करना है, बस । ये मरम्मत की प्रक्रिया कृष्ण भावनामृत है ।
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