"ध्यान की पद्यति मन को संतुलित रखने के लिए है। इसे सम कहते टै। और दम अर्थात इंद्रियों का नियंत्रण। मेरी इंद्रियाँ सदैव मुझपर हुक्म चलाती रहती हैं, “तुम यह करो। इसे भोग करो।वह करो।" और मैं उसके आदेशों का पालन करता रहता हूँ। हम सब इंद्रियों के दास हैं। हम सब इंद्रियों के दास बन गये हैं। हमें भगवान के दास में परिवर्तित होना है, बस। यही कृष्ण भावनामृत है। आप पहले से ही सेवक हैं, परंतु आप इद्रियों के सेवक हैं। आप उसके आदेशों द्वारा चल रहे हैं, और हताश हो रहे हैं। आप भगवान के सेवक बनें। आप स्वामी नहीं बन सकते क्योंकी वह आपका पद नहीं है। आपको सेवक बनना होगा। अगर आप भगवान के सेवक नहीं बनेंगे तो आपको इंद्रियों का सेवक बनना परेगा। यही आपका स्तर है। इसलिए जो बुद्धिमान हैं, वे समझ सकते हैं कि "यदि मुझे सेवक रहना ही है, तो मैं इंद्रियों का सेवक क्यों बने रहूँ? कृष्ण का क्यों नहीं?’ यही बुद्धिमानी है। यही बुद्धिमानी है। और जो मूर्खतापूर्वक इंद्रियों के दास बने हुए हैं वे अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं। धन्यवाद।"
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