HI/690121 - गुरुदास और यमुना को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस
जनवरी २१,१९६९
मेरे प्रिय गुरुदास और यमुना,
कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। मैं आप दोनों के १४ जनवरी, १९६९ के ,पत्रों को स्वीकार करता हूं और साथ ही गुरुदास के, दिनांक १६ जनवरी, १९६९ के एक पत्र के साथ एक तस्वीर और अखबार की कटिंग संलग्न है। यह तस्वीर निस्संदेह बहुत अनोखी है, क्योंकि शायद दुनिया के इतिहास में यह पहली बार है कि पश्चिमी लड़के और लड़कियां, वैष्णवों की पोशाक में पश्चिमी दुनिया के सबसे महान शहर लंदन के एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्वार्टर की सड़क पर जाप कर रहे हैं। तो कृष्ण के दया से आप सभी छह मिलकर बहुत अच्छा कृष्ण भावनामृत कार्य कर रहे हैं, और मैं बहुत प्रसन्न हूं। आपके पत्र से मैं समझ सकता हूं कि यूरोप और अफ्रीका के कई महत्वपूर्ण शहरों के लोग हमारे संकीर्तन आंदोलन में भाग ले रहे हैं, और लगभग हर रात निरंतर आप व्यस्त रहते है। यह बहुत उत्साहजनक है।
मुझे यह जानकर खुशी हुई कि जैसे ही आपके वित्त लगभग समाप्त हो जाते हैं, कृष्ण सब कुछ देखते हैं। यह कृष्ण भावनामृत की प्रक्रिया है। यदि हम ईमानदार हैं, तो कृष्ण हमारे जीवन की सभी आवश्यकताओं की आपूर्ति करेंगे। जब हम किसी सांसारिक गुरु की सेवा करते हैं, तो वह हमें पर्याप्त वेतन देता है, इसलिए जब हम सर्वोच्च गुरु की सेवा करते हैं, तो यह कैसे संभव है कि वह हमें उपवास रखेगा? वास्तव में हमारी कृष्ण भावनामृत की कमी के कारण कभी-कभी हम धन की कमी से परेशान हो जाते हैं। लेकिन हमें विश्वास होना चाहिए कि हमारी ज़रूरतें सर्वोच्च प्रभु द्वारा निश्चित रूप से पूरी होंगी। वही घटना कभी-कभी न्यूयॉर्क मंदिर में घटित होती है। जब धन की कमी होती है, तो कभी-कभी वे स्रोत को जाने बिना अकस्मात से पैसा पाते हैं।
मुझे श्री पारिख और अन्य से रिपोर्ट मिली है कि वे आपके व्यवहार, आपके चरित्र, और आपकी भक्ति से प्रभावित हैं। अखबार की कतरन में भी उन्होंने ऐसे संकेत दिए। दूसरे शब्दों में, हर कोई आपकी प्रस्तुति की सराहना कर रहा है। कृपया व्यवहार के इस मानक को बनाए रखें। आपस में कोई कृत्रिम विसंगति न करें, क्योंकि आप एक बहुत ही जिम्मेदार व्यवसाय पर काम कर रहे हैं। शायद आप जानते हैं कि किसी देश में कई राजनीतिक दल होते हैं, लेकिन जब देश की कुल जिम्मेदारी निभानी होती है, तो वे संयुक्त हो जाते हैं। आपस में थोड़े असहमति रखना बहुत ही अस्वाभाविक नहीं है, क्योंकि हम सभी व्यक्तिगत प्राणी हैं। लेकिन जैसा कि हम सभी कृष्ण के लिए काम कर रहे हैं, हमें हमेशा अपने व्यक्तिगत हितों को भूल जाना चाहिए और प्रमुख कारण देखना चाहिए।
मैंने बैठक के दिन पेश किए गए खाद्य पदार्थों की सूची को बहुत संतुष्टि के साथ नोट किया है, और उन्हें बहुत सराहा गया। मुझे अभी तक श्री फकीरचंद का कोई पत्र नहीं मिला है जो मंदिर शुरू करने में रुचि रखते हैं। मुझे उम्मीद है कि यह आप दोनों को बहुत अच्छे स्वास्थ्य में मिले ।
आपके नित्य शुभचिंतक,
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
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