HI/690128 - मालती को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस
28 जनवरी, 1969
मेरी प्रिय मालती,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा पत्र मिला और उसे पढ़ कर मुझे बहुत हर्ष हुआ है। जिस राधा-श्याम जप के बारे में तुमने सुना है, वह बहुत अच्छा नहीं है। हमारे मन्दिरों में हमें हरे कृष्ण जप-कीर्तन पर ही ध्यानपूर्वक बल देना चाहिए। साधारण श्रद्धालुओं द्वारा रचे गए ऐसे अनेक गीत प्रचलित हैं। अधिकार प्राप्त महान भक्तों के आदेश पर टिके रहना ही हमारा सिद्धांत है। और सदा याद रहे कि हरे कृष्ण ही एकमात्र अधिकृत मंत्र है।
मैं यह जानकर बहुत प्रोत्साहित हूँ कि तुममे में इतनी निर्भीकता है कि तुम अभक्तों को चुनौती दे देती हो। जैसे तुमने उस निरकारवादी योग विद्यार्थी के साथ किया। हमारे सभी प्रचारकों का यही स्वभाव होना चाहिए। हमें आक्रामक नहीं होना चाहिए लेकिन हमें उनकी बकवास को सहन भी नहीं करना है। जो यह कहता हो कि भगवान दयालु नही हैं चूंकि उन्होने एक व्यक्ति को सुखी और एक व्यक्ति को दुःखी बनाया है, सबसे ज्यादा निरर्थक है। यह एक बात अकेले ही ऐसे व्यक्ति को एक भग्वद्विमुख दुष्ट सिद्ध कर देती है। इसीलिए ये सब तथाकथित योगी इत्यादि दुष्ट हैं क्योंकि वास्तविकता में इन्हें भगवान का कोई बोध नहीं है। भ्रम के वशीभूत ये स्वयं को भगवान मान लेते हैं और इनकी संगत से जहां तक संभव हो दूर ही रहना चाहिए।
जहां तक वृन्दावन से इन श्यामा-माताजी दासी की बात है, क्या ये हरे कृष्ण का कीर्तन करती हैं या नही? यदि वे हरे कृष्ण जप करती हैं तो ठीक है और अगर वे ऐसा नही करतीं तो तुम्हें उनसे पूछना चाहिए कि वे ऐसा क्यों नहीं करती। मैं उनके गुरुदेव, गौरांगीदास, को तो नहीं जानता लेकिन यदि उन्होंने इनको राधा-श्याम का गीत सिखाया है, तो वे भी अधिकृत नहीं हैं।
तुम्हारे पत्र के लिए एक बार फिर धन्यवाद। कृपया अपने पति, बालक एवं वहां तुम्हारे साथ मौजूद सभी भक्तों को मेरा आशीर्वाद पहुंचा देना। मैं आशा करता हूँ कि यह तुम सभी को अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
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