HI/690222 - श्रीमती क्लाइन को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस
२२ फरवरी, १९६९
मेरी प्रिय श्रीमती क्लाइन,
कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। १८ फरवरी, १९६९ के आपके इस विनम्र पत्र के लिए मैं आपको बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूँ और मुझे इसे पढ़कर बहुत हर्ष हो रहा है। निश्चित रूप से आप पर कृष्ण का आशीर्वाद है अन्यथा आप इतनी अच्छी बातें नहीं लिख सकते थे। हालाँकि हमारे आंदोलन से आपका संबंध बहुत नया है। जब आप यह कहने के लिए लिखते हैं कि, "जो घर कभी 'हमारा' था, अब हम उसे कृष्ण के घर के रूप में पहचानते हैं।" इससे ऐसा प्रतीत होता है कि आप पहले से ही कृष्णभावनामृत में उन्नत थे। किसी न किसी तरह से, रास्ता बाधित हो गया था और अब आप फिर से अपनी चेतना में वापस लौट आए हैं। इसलिए कृपया इस अवसर को हाथ से न जाने दें और अपनी इस वर्तमान चेतना की स्थिति को प्रद्युम्न के सहयोग से बनाएँ रखें। अभी के लिए प्रद्युम्न वहाँ अकेला है और उसके साथ आपका सहयोग उसे शक्ति प्रदान करेगा जिसके लिए मैं आपका बहुत आभारी रहूँगा।
अगली बार जब मैं कोलंबस आऊँगा, तो मैं निश्चित रूप से आपको और आपके पति को दीक्षा दूँगा। मैं जानता हूँ कि आपके पति मनोविज्ञान के छात्र हैं और कृष्णभावनामृत मनोवैज्ञानिक अध्ययनों की परिकाष्ठा है। श्रीमद् भागवतम् से हम समझते हैं कि मूल चेतना कृष्ण हैं और सभी मनोवैज्ञानिक गतियों अर्थात् सोच, भावना और इच्छा के केंद्र हैं। हम सभी परम विचार, भावना और इच्छा के अंश हैं लेकिन हमारी वर्तमान सोच, भावना और इच्छा अज्ञान के बादल से दूषित है। हम विकृत तरीके से विचार, अनुभव और इच्छा कर रहे हैं। संपूर्ण कृष्णभावनामृत आंदोलन उसी विचार, भावना और इच्छा को उनकी मूल विशुद्ध स्थितियों की ओर मोड़ने का एक प्रयास है। आप एक शिक्षित दंपत्ति हैं और इस आंदोलन के साथ आपका सहयोग मानव समाज के लिए इस अतिबृहत और आवश्यक संदेश को प्रचारित करने में बहुत सहायता कर सकता है।
आपके विनम्र पत्र के लिए पुनः धन्यवाद। अधिक चर्चा हम मिलने पर करेंगे।
आपका परम शुभचिंतक,
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
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