HI/690311 - हंसदूत को लिखित पत्र, हवाई
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11 मार्च, 1969
मेरे प्रिय हंसदूत,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा 28 फरवरी, 1969 का पत्र प्राप्त हुआ है, और मैं यह जानकर बहुत ही हतप्रभ हूँ कि दयाल निताई द्वारा अन्य फ़ालतू पत्रिकाओं का प्रकाशन किया जा रहा है और जनार्दन का कहना है कि मैं इस सबसे वाकिफ हूँ! मैं यह सब जानकर बहुत ही हैरान हूँ। दयाल निताई को एक पत्र मैं यहां संलग्न भेज रहा हूँ, और तुम्हारी जानकारी के बिना यह सब कैसे हो पा रहा है? अवश्य ही तुम इस सबसे बहुत परेशान होगे---मेरे लिए भी यह सब बहुत परेशान कर देने वाला है!
कृपया फ्रांसीसी बीटीजी पर कार्य करो और तुम दयाल निताई को तुरन्त ही यह अवश्य कह देना कि यह छपाई का काम बन्द करे। मुझे उसपर संदेह था चूंकि अभी भी उसका रुझान उस योग पद्धति की ओर है, और अब मेरा शक सही साबित हो रहा है। वह अच्छी तरह से हमारे दर्शन को नहीं समझता है।
मैं यहां गत सोमवार, 3 मार्च को पंहुचा हूँ। धूप, सागर का दृश्य और ताज़ा हवा के साथ यह स्थान बहुत बढ़िया है। लेकिन यह लड़का, कार्तिकेय बीमार पड़ गया है और डर है कि इसे अपैंडिसाइटिस की परेशानी पैदा हो रही है।
मैं शीघ्र ही मुख्य भूमि लौटुंगा और मेरी योजना अप्रैल के पहले सप्ताह में न्यू यॉर्क जाने की है। कृपया यह पत्र मिलने पर इस छपाई की अवस्था के बारे में मुझे आगे का समाचार देना और बताना कि स्थिति को सुधारने के लिए क्या किया जा रहा है। आशा करता हूँ कि तुम ठीक हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
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