HI/690323 - दयाल निताई को लिखित पत्र, हवाई
२३ मार्च १९६९
मेरी प्यारी दयाला निताई,
कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। 19 मार्च के आपके बहुत अच्छे पत्र के लिए मैं आपको बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं, और मैं समझ सकता हूं कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं। हां, आप अपने मन में हमारे बीटीजी और अन्य पुस्तकों के साथ फ्रांसीसी आबादी तक इस संदेश को फैलाने के लिए तय कर लें, यही मेरा अनुरोध है। मुझे बीटीजी फ्रेंच संस्करण की दूसरी प्रति भेजने के लिए मैं आपका धन्यवाद करता हूं। तो अब मेरा आपसे और विशेष रूप से आप और जनार्दन दोनों से एक ही अनुरोध है कि आप कृपया इस फ्रेंच बीटीजी के हर महीने एक अंक नियमित रूप से प्रकाशित करें। इससे आपको बहुत खुशी मिलेगी और मैं हमेशा बहुत खुश रहूंगा। और इस प्रयास में कृष्ण आपको सभी आशीर्वाद प्रदान करेंगे। इस संबंध में यदि आप सोचते हैं कि योगी साहित्य को छापने से आपको कुछ आर्थिक सहायता मिलेगी, तो मैं आपको अनुमति देता हूं कि आप इसे छाप सकते हैं। लेकिन मेरा स्थायी अनुरोध यह है: आपस में कोई मतभेद नहीं होना चाहिए। आप जो भी करते हैं, संयुक्त परामर्श से करते हैं। क्योंकि हमारी गतिविधियों का केंद्र कृष्ण है, कृष्ण के लिए हम अपना जीवन, धन, शब्द, बुद्धि, सब कुछ बलिदान कर सकते हैं। बेशक, व्यक्तिगत रूप से, हमारे बीच कभी-कभी असहमति होती है, लेकिन हमारा ध्यान कृष्ण पर केंद्रित रखते हुए इसे समायोजित किया जाना चाहिए। तो जो हो गया सो हो गया ; इसलिए आगे, आप सब कुछ संयुक्त रूप से करें और हम हर महीने बीटीजी फ्रेंच संस्करण का कम से कम एक अंक प्रकाशित करेंगे - यहां तक कि इसमें केवल एक मुद्रित पृष्ठ हो सकता है, फिर भी इसे मासिक रूप से एक बार प्रकाशित किया जाना चाहिए। यही मेरी इच्छा है। हमारे अंग्रेजी संस्करण बीटीजी के रूप में एक पूर्ण पत्रिका होना निस्संदेह बेहतर है, लेकिन यदि आपके पास समय नहीं है, या आप ये या वो कर रहे हैं, तो इसे पूरी तरह से उपेक्षा न करें- एक पृष्ठ बीटीजी अंक को प्रकाशित और वितरित करना बेहतर है। हर महीने कोई समस्या नहीं। अब यह कार्य विशेष रूप से आपको और जनार्दन को सौंपा गया है; तो कृपया इसे निष्पादित करें।
मुझे आशा है कि यह आपके अच्छे स्वास्थ्य में मिलेगा, और वहां के अपने सभी देवत्व-भाइयों और बहनों को आशीर्वाद दें।
आपका सदैव शुभचिंतक,
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
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