तो यह लड़का, हालांकि नास्तिको के परिवार में पैदा हुआ है - उसका पिता बहोत बड़ा नास्तिक था - लेकिन क्योंकि उसे एक महान भक्त, नारद, द्वारा आशीर्वाद दिया गया था, वह एक महान भक्त बन गया । अब उन्होंने कृष्ण भावनामृत फैलाने का अवसर ले लिया, कहा ? अपनी पाठशाला में । अपनी पाठशाला में । वह पांच साल का लड़का था, और जैसे ही उसे अवसर मिलता, वह अपनी कक्षाओं में कृष्ण भावनामृत को फैलाता । यही उनका कार्य था । और कई बार प्रहलाद महाराज के पिता ने शिक्षकों को बुलाया, 'तो, आप मेरे बच्चे को क्या शिक्षा दे रहे हैं ? वह हरे कृष्ण क्यों जप रहा है ?' (हंसी) 'तुम मेरे लड़के को क्यों बिगाड़ रहे हो ?' (हंसी) आप देख रहे हैं ? तो, ऐसा मत सोचो कि मैं इन लड़कों और लड़कियों को हरे कृष्ण का पाठ पढ़ाकर बिगाड़ रहा हूं । (हँसी) ।
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