आज मैं अमरीकी या भारतीय हूं, कल या अगले जन्म में, मुझे नहीं पता कि मेरे साथ क्या होने वाला है । लेकिन अच्छे के लिए यह शरीर खत्म हो जाएगा । मुझे यह शरीर कभी नहीं मिलेगा । मुझे एक और शरीर मिलेगा । शायद एक देव का शरीर या एक पेड़ का शरीर या पौधे का शरीर या जानवर का शरीर - मुझे दूसरा शरीर मिलेगा ही । तो जीवात्मा इस तरह से भटक रहा है, वासांसि जीर्णानि (भ.गी. २.२२) । जिस तरह से हम अपना वस्त्र एक वस्त्र से दूसरे मैं बदलते है, उसी तरह से हम माया के प्रभाव से अलग पद बदल रहे है । प्रकृति क्रियमाणानि गुणै: कर्माणी (भ.गी. ३.२७) । जैसे ही मैं किसी चीज़ की इच्छा करता हूँ, तुरंत मेरा वैसा शरीर बन जाता है । तुरंत एक विशेष प्रकार का शरीर बनना शुरू हो जाता है, और जैसे ही मैं बदलने के लिए परिपक्व हो जाता हूँ, मेरा अगला शरीर मुझे मेरी इच्छा के अनुसार मिलता है । इसीलिए हमे हमेशा कृष्ण की इच्छा रखनी चाहिए ।
|