HI/690413 - शिवानंद को लिखित पत्र, न्यू यॉर्क
13 अप्रैल, 1969
मेरे प्रिय शिवानन्द प्रभू,
कृपया मेरे अभिवादन स्वीकार कीजिए। मैं आपका बंगाली पत्र प्राप्त करके बहुत प्रसन्न हूँ और आशा करता हूँ कि आप मुझे क्षमा करेंगे कि मैं अंग्रेज़ी में उत्तर दे रहा हूँ, चूंकि इस प्रकार से मेरा बहुत समय बच रहा है। मैंने पहले ही बैक टू गॉडहेड के संपादक को निर्देश दे दिए हैं कि आपको पत्रिका कि प्रतियां नियमित रूप से भेजी जाती रहें। सदस्यता मूल्य 5 डॉलर प्रति 12 अंक है और आप ऐक्सचेंज निम्नलिखित पते पर भेज सकते हैः इस्कॉन प्रेस, 504 ईस्ट 6थ एवन्यू, न्यु यॉर्क, एन वाय 10003. कृपया अपना नाम और पता साफ-साफ लिख भेजिए, जिससे आपको यह पत्रिका नियमित रूप से प्राप्त होती रहे।
आपने मेरी पुस्तकों के संदर्भ में प्रश्न किए हैं और दरअसल भारत से यहां आने से पहले मैंने श्रीमद् भागवतम् के तीन भाग प्रकाशित किए थे, जिनमें से प्रत्येक लगभग 400 प्रष्ठों का था। जबसे मैं यहां आया हूँ, अनेकों पाण्डुलिपियां प्रकाशन के लिए तैयार हैं और मैंने मैकमिलन द्वारा प्रकाशित भगवद्गीता यथारूप व अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ द्वारा प्रकाशित चैतन्य महाप्रभू की शिक्षाएं, प्रकाशित की हैं। हम यहां अपनी पुस्तकों की बिक्री भली भांति कर पा रहे हैं और यदि आप भारत में हमारी पुस्तकों व पत्रिकाओं की बिक्री की व्यवस्था कर पाएं, तो इससे हमारी गतिविधियों की बहुत बड़ी सहायता होगी। मेरा एक शिष्य अच्युतानंद ब्रह्मचारी पहले से ही भारत में मौजूद है और यदि इस आंदोलन में मेरी सहायता करने का आपका विचार गंभीर है, तो वह भी आपसे जुड़ जाएगा। कठिनाई यह है कि भारतीय मुद्रांतरण के अनुसार ये पुस्तकें मंहगी हैं। मानक एक्सचेंज दर 7.5 रुपए प्रति डॉलर है। तो आप विचार कीजिए और मुझे बताइए कि आप हमारी सहयता कर सकते हैं या नहीं।
आपने हम गुरुभाइयों के बीच मतभेद की बात की है। वास्तव में यह सच है। जहां तक मेरा सवाल है, तो मैं अपनी मामूली सी सेवा करने में प्रयासरत हूँ। और यदि कोई इन गतिविधियों से असहमति रखता है तो भला मैं क्या कर सकता हूँ? पर जहां तक मुझे उनके पत्र मिले हैं, वे यहां चल रहे कार्य का पूरी तरह से सराहना करते हैं। और मैं नहीं जानता कि ये कौन सज्जन हैं जो इन कार्यक्रमों के विरुद्ध हैं। आप से दोबारा पत्र प्राप्त करके मुझे प्रसन्नता होगी। आशा है कि यह आपको अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त होगा।
स्नेहपूर्वक आपका,
ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
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